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आग लगने पर जलने के साथ दम घुटने से मौत कैसे होती है

ऋषभ कुमार शर्मा
८ दिसम्बर २०१९

आग लगने पर क्या करना चाहिए और क्या नहीं? दम घुटने से कैसे बचा जा सकता है? दम घुटने पर शरीर में क्या होता है? आग से बचने के लिए किस तरह के उपाय किए जा सकते हैं?

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Pneumokokken
तस्वीर: Imago Images/Science Photo Library

भारत में 2011 से 2015 के बीच इकट्ठा किए गए आंकड़ों के मुताबिक इन चार सालों में आग लगने की वजह से 1.13 लाख लोगों की मौत हुई. इसका मतलब रोज 48 लोगों ने अपनी जान आग की घटनाओं में गंवाई. अधिकतर घटनाओं में आग लगने की वजह इलेक्ट्रिक शॉर्ट सर्किट को बताया गया. जब भी आग लगने की वजह से मौत की बात होती है तो दो बातें सामने आती हैं. एक जलने से और दूसरा दम घुटने की वजह से. जलने से मौत होने में शरीर की त्वचा, रक्त और अंग आग की चपेट में आ जाते हैं. ऐसे में अगर शरीर का बड़ा हिस्सा जल जाए तो मौत की आशंका होती है. दूसरा कारण दम घुटने की वजह से मौत का होता है. दम घुटने का मतलब जरूरी नहीं कि इंसान के शरीर में धुआं जाए तभी उसकी मौत हो. दम घुटने के कारण दूसरे भी हो सकते हैं. दम घुटने की वजह से तुरंत मौत हो जाए ऐसा भी जरूरी नहीं है. अगर आप किसी इमारत में हैं और इमारत के किसी दूसरे हिस्से में आग लगी है तब भी आप दम घुटने के शिकार हो सकते हैं.

क्या होता है दम घुटना

सामान्य परिस्थितियों में हमारा शरीर ऑक्सीजन लेता है और कार्बन डाय ऑक्साइड बाहर निकालता है. ऑक्सीजन के साथ नाइट्रोजन और दूसरी गैसें भी सांस में जाती है लेकिन वो सांस छोड़ने के साथ ही बाहर आ जाती है. सांस अंदर लेने को श्वास प्रक्रिया और सांस छोड़ने को प्रश्वास प्रक्रिया कहते हैं. शरीर में गई ऑक्सीजन फेफड़ों में पहुंचती है. ये ऑक्सीजन हीमोग्लोबिन के साथ मिलकर रक्त के जरिए शरीर के दूसरे हिस्सों में पहुंचती है. सांस लेने और छोड़ने का काम करने वाले सभी अंगों को मिलाकर श्वसन तंत्र कहा जाता है. जब कहीं आग लगती है तो बड़ी मात्रा में धुआं निकलता है. धुएं की मात्रा और उसका जहरीलापन इस पर भी निर्भर करता है कि आग किस चीज में लगी है. इस धुएं का शरीर और श्वसन तंत्र पर चार तरह से असर होता है.

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तस्वीर: Getty Images/AFP/O. Gimanov

धुएं में मौजूद कार्बन डाय ऑक्साइड और मीथेन जैसी दमघोंटू गैसें सांस में जाने वाली ऑक्सीजन की जगह शरीर में जाने लगती हैं. इससे फेफड़ों में ऑक्सीजन की मात्रा कम होने लगती है. फेफड़े ऑक्सीजन की जगह आ रही इन गैसों को खून में पहुंचाने लगते हैं. इन गैसों के शरीर में पहुंचने से कोशिकाएं मरने लगती हैं और इंसान की मौत हो जाती है.

धुएं में मिलने वाली जहरीली गैसें शरीर में अंदर पहुंचने पर कई रसायनिक क्रियाएं करती हैं. इससे हाइड्रोक्लोरिक एसिड, अमोनिया और फार्मएल्डिहायड जैसे घातक कारक शरीर में बन जाते हैं. ये कारक श्लेष्मा झिल्ली को नुकसान पहुंचाते हैं. साथ ही इनसे आंखों और श्वसन तंत्र को सीधा नुकसान होता है.

आग लगने पर आसपास के तापमान में तेजी से बढ़ोत्तरी होती है. जब यह तापमान मनुष्य की त्वचा द्वारा बर्दाश्त किए जा सकने वाले तापमान की मात्रा से ज्यादा पहुंच जाता है तो शरीर की कोशिकाएं जलने लगती हैं. इससे त्वचा और फिर भीतरी शारीरिक अंग जलने लगते हैं. शरीर के परिचालन में सबसे जरूरी अंग जब आग की चपेट में आ जाते हैं तो मौत होना स्वभाविक है. आग जलने के लिए ऑक्सीजन जरूरी होती है. ऐसे में जब किसी बंद जगह में आग लगती है तो आग वहां मौजूद सारी ऑक्सीजन को इस्तेमाल कर लेती है. ऐसे में ऑक्सीजन की जगह कार्बन डाय ऑक्साइड जैसी दूसरी गैसें ले लेती हैं जो जानलेवा हैं.

कुछ पदार्थों में आग लगने पर कार्बन मॉनो ऑक्साइड और साइनाइड भी बनते हैं. ये दोनों तत्व सबसे जहरीले होते हैं. जब सांस के जरिए ये दोनों कारक फेफड़ों में जाते हैं तो श्वसन तंत्र के साथ-साथ तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं. ये दोनों तत्व कोशिकाओं को तेजी से मारते हैं. अगर धुएं में ये दोनों कारक मौजूद होते हैं तो मौत निश्चित है.

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तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/F. Ivan

जब हम खुली हवा में सांस लेते हैं तो उस सांस में करीब 21 प्रतिशत ऑक्सीजन, 78 प्रतिशत नाइट्रोजन और बाकी एक प्रतिशत दूसरी अन्य गैसें होती हैं. लेकिन जैसे ही ऑक्सीजन की मात्रा कम होती है उसका असर हमारे शरीर पर दिखता है. ऑक्सीजन की मात्रा 17 प्रतिशत होने पर कमजोरी का एहसास, 12 प्रतिशत होने पर सिरदर्द और चक्कर आना, 9 प्रतिशत होने पर बेहोशी और 6 प्रतिशत होने पर सांस रुक जाना, दिल की धड़कन रुकना और मौत तक हो सकती है.

आग से बचने के लिए क्या करें

चाहे रिहायशी इमारत हो या वाणिज्यिक इमारत हर जगह पर आग से बचाव वाले उपकरण जैसे फायर अलार्म, आग लगने पर आपातकालीन इंतजाम, आग बुझाने के उपकरण जरूर होने चाहिए. भारत में अधिकतर जगहों पर ऐसे इंतजाम नहीं होते हैं. यही वजह है कि रात के समय आग लगने पर कोई चेतावनी नहीं मिल पाती और लोग मारे जाते हैं.

आग लगने पर तुरंत आपातकालीन सेवाओं जैसे पुलिस और फायर ब्रिगेड को फोन कर मदद लें. हड़बड़ाहट में इमारत से कूदने जैसा फैसला ना लें.

किसी इमारत में आग लगने पर धुआं फैलने लगा है तो दौड़ने की जगह संभव हो तो जमीन पर रेंगकर बाहर निकलने की कोशिश करें. फ्लोर पर ऑक्सीजन की मात्रा भी ऊपर से ज्यादा होती है और भागने पर ज्यादा सांस की जरूरत होती  है. ऐसे में ज्यादा मात्रा में ऑक्सीजन की जगह विषैली गैसें शरीर में जाएंगी.

अगर कमरा बंद है और दरवाजे के बाहर आग है तो खिड़कियां खोल लें और बाहर की साफ हवा कमरे में आने दें. मुंह पर एक गीला कपड़ा बांध लें. दरवाजे के नीचे अगर जगह है तो उसको बंद कर दें जिससे धुआं अंदर ना आ सके. साथ ही कमरे में जो ऐसी चीजें हैं जिनमें तेजी से आग लगती हो उन्हें खिड़की से बाहर फेंक दें. आग लगने पर रूम में लगे एयर कंडीशनर या पंखे को बंद कर दें. इससे धुआं तेजी से नहीं फैलेगा.

मुंह पर गीला कपड़ा बांध लें. इससे कम मात्रा में जहरीली हवा आपके शरीर में जाएगी और आपके फेफड़े सुरक्षित रहेंगे. अगर आप किसी होटल में रुक रहे हैं तो देख लें कि आपातकालीन स्थितियों में वहां से निकलने के क्या इंतजाम हैं.

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