जाति आधारित जनगणना पर बीजेपी का दोहरा रुख
३ जून २०२२बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तो लंबे समय से राज्य में जाति आधारित जनगणना कराने की बात कर रहे थे, लेकिन उन्हें उनके सहयोगी दल बीजेपी का साथ नहीं मिल पा रहा था. अब ऐसा लग रहा है कि हिचकते हुए ही सही बीजेपी ने इस कदम के लिए अपनी हामी भर दी है.
बुधवार एक जून को जिस सर्वदलीय बैठक में इस जनगणना को कराने की मंजूरी दी गई, उसमें बीजेपी के दो बड़े नेता भी शामिल थे - उप मुख्यमंत्री ताराकिशोर प्रसाद और प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल.
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बिहार में बीजेपी का रुख
जायसवाल ने कुछ ही दिनों पहले पत्रकारों के साथ बातचीत के दौरान जाति आधारित जनगणना की मांग को नकारते हुए बयान दिया था, "बीजेपी के लिए दो ही जातियां हैं - अमीर और गरीब."
लेकिन बुधवार की बैठक में वो मुख्यमंत्री की घोषणा को बीजेपी का समर्थन दिखाने के लिए मौजूद रहे. हालांकि बैठक के बाद एक बयान में उन्होंने जनगणना को जाति से ज्यादा धर्म से जोड़ने की कोशिश की.
बैठक के बारे में उन्होंने फेसबुक पर लिखा कि उसमें "इस बात की सहमति व्यक्त की गई कि जातीय एवं जाति में भी उपजातिय आधारित सभी धर्मों की गणना या सर्वेक्षण होगा."
जायसवाल ने तीन आशंकाएं भी व्यक्त कीं. पहली, जातीय गणना में किसी "रोहिंग्या और बांग्लादेशी" की गिनती ना हो जाए इसका ध्यान रखा जाए; दूसरी, मुस्लिमों में जो अगड़े हैं वह खुद को पिछड़ा दिखा कर पिछड़ों का हक ना मार लें; और तीसरी, जातियों का गलत विवरण ना दर्ज हो जाए.
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2011 में हो चुकी है जातिगत जनगणना
देखने में ये आशंकाएं सरल लगती हैं लेकिन ऐसा लग रहा है कि असल में इनके जरिए बीजेपी नीतीश कुमार के दबाव के आगे झुकने के साथ साथ अपने रुख पर कायम रहने का दिखावा भी बनाए रखना चाहती है.
दरअसल देश में जातिगत जनगणना पहले ही हो चुकी है. 2011 में जो जनगणना कराई गई थी उसके साथ ही एक सामाजिक, आर्थिक और जातिगत जनगणना भी कराई गई थी. लेकिन केंद्र सरकार ने उसकी रिपोर्ट कभी जारी ही नहीं की.
पिछड़े वर्गों का नेतृत्व करने वाली पार्टियों ने रिपोर्ट को जारी करने की कई बार मांग की, लेकिन एनडीए सरकार ने हर बार यह कह कर मांग को ठुकरा दिया कि राज्यों से गलत डाटा मिला है.
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कुछ समय से दोबारा जातिगत जनगणना कराने की मांग ने तूल पकड़ लिया है, लेकिन एनडीए सरकार इस मांग को भी स्वीकार नहीं कर रही है. केंद्रीय गृह मंत्रालय में राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने कुछ ही महीने पहले संसद में बयान दिया था कि केंद्र सरकार की जातिगत जनगणना कराने की कोई योजना नहीं है.
क्या दूसरे राज्य भी आगे आएंगे?
इसके बावजूद बिहार में उन्हीं की पार्टी के गठबंधन वाली सरकार ने जाति आधारित जनगणना कराने की घोषणा कर दी है. गुरुवार दो जून को बिहार कैबिनेट ने इसी मंजूरी दे दी और इसके लिए 500 करोड़ रुपयों का बजट भी आबंटित कर दिया.
सभी धर्मों की जातियों और उपजातियों को गिना जाएगा और जाति के साथ साथ लोगों के आर्थिक दर्जे का सर्वेक्षण भी किया जाएगा. पूरी प्रक्रिया को फरवरी 2023 से पहले पूरा कर लेने के आदेश भी जारी किए गए हैं.
अब देखना यह है कि दूसरे राज्यों में भी पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टियां अपने अपने राज्यों में जातिगत जनगणना करवाती हैं या नहीं. उत्तर प्रदेश विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता अखिलेश यादव ने हाल ही में राज्य सरकार से जातिगत जनगणना करवाने की मांग की थी.
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अगर बिहार के बाद दूसरे राज्यों में भी यह अभियान तूल पकड़ लेता है जो बीजेपी पर राष्ट्रीय स्तर पर इसे करवाने का दबाव बढ़ जाएगा. लेकिन उससे पहले देखना होगा कि कोई और राज्य इस दिशा में आगे बढ़ता है या नहीं.