भविष्य के लिए भूजल को बचाना जरूरी
२३ अक्टूबर २०२०वॉटरएड, अर्थवॉच और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के लिए शोध करने वाले जूड कॉबिंग कहते हैं, "यह बड़ी मात्रा में क्षमता वाला एक संसाधन है." भारत, बांग्लादेश, नेपाल, नाइजीरिया और घाना में भूजल का प्रबंधन कैसे किया जाता है इस पर कॉबिंग ने शोध किया है. जल विशेषज्ञ कहते हैं कि इस बात की जानकारी बहुत कम है कि भूजल कितना उपलब्ध है, खास कर स्थानीय स्तर पर. साथ ही स्थानीय एजेंसियों और सरकार के बीच तालमेल की कमी के कारण लोगों तक पानी प्रभावी ढंग से नहीं पहुंच पा रहा है. कॉबिंग कहते हैं, "हम उसी चीज को महत्व देते हैं जो दिखता है, जो नहीं दिखता उसका महत्व नहीं है."
कॉबिंग ने उल्लेख किया कि जल योजनाकर्ता और सरकारी अधिकारी जो अक्सर दिखने वाले जल पर ही ध्यान देते हैं उनमें यह एक तरह से "सिजोफ्रेनिया" पैदा कर सकता है. वैज्ञानिकों का अनुमान है पृथ्वी के ताजा पानी का संग्रह करीब 30 फीसदी भूजल करता है. तुलना के तौर पर सतह के स्रोत जैसे तालाब, नदी, झील, मिट्टी, पेड़ और वातावरण से करे तो सिर्फ 0.4 फीसदी ही वैश्विक ताजा जल मिल पाता है.
दुनिया के कई भागों में जमीन से बेहिसाब पानी खींचा जा रहा है. इनमें पश्चिमी अमेरिकी और उत्तरी चीन भी शामिल है, जिस वजह से जमीन के भीतर जलीय चट्टान सूख रहे हैं. लेकिन कुछ स्थानों पर-विशेष रूप से उप-सहारा अफ्रीका में विशाल भूजल उपलब्ध है और इसको अभी छेड़ा नहीं गया है. इस रिपोर्ट में कहा है कि जलवायु परिवर्तन और अन्य तरह की समस्या से जूझ रहे समुदायों की मदद इन स्रोतों से जा सकती है. शोध में कहा गया है कि अन्य जगह जहां भूजल का संकट है वहां सही से प्रबंधन की जरूरत है ताकि भूजल खत्म समाप्त ना हो पाए.
हर साल सिर्फ 8 फीसदी जल को नैचुरल रिचार्ज की मदद से धरती के भीतर पहुंचाया जा सकता है. यह शोध कहता है कि पहले से ही बिगड़ते सूखे और सतह के पानी की कमी के कारण भूमि से जल निकालने के नए नए तरीके लोग अपना रहे हैं.
सुरक्षित पानी
बांग्लादेश के ग्रामीण इलाकों में पंपों के माध्यम से सुरक्षित भूजल सप्लाई किया जा सकता है. लेकिन इसको सुनिश्चित करने के लिए बिजली आपूर्ति के साथ आर्सेनिक युक्त पानी के ट्रीटमेंट की जरूरत है.जलवायु परिवर्तन अनुकूलन में अग्रणी बांग्लादेश ने जलवायु जोखिमों से निपटने में बड़ी प्रगति हासिल की है और आर्सेनिक पानी एक बड़ी आबादी को प्रभावित करता है. दशकों से बांग्लादेश इस चुनौती से निपटता आया है.
कॉबिंग कहते हैं कि हालांकि भारत में एक "अपेक्षाकृत प्रगतिशील" भूजल प्रबंधन प्रणाली है जो सालाना आंकड़े तैयार करती है और यह भी बताती है कि पानी की उपलब्धता और गुणवत्ता कैसी है. साथ ही प्रबंधन प्रणाली भूजल को रिचार्ज करने के प्रयासों का समन्वय करती है.
शोधकर्ताओं का कहना है कि भूजल को समझने के लिए बेहतर समझ और प्रयास नहीं विकसित किए जाते हैं तो भविष्य खतरे से भरा नजर आता है. उनके मुताबिक इस महत्वपूर्ण संसाधन को सुरक्षित रखा जाए और जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन रणनीतियों का पालन किया जाना चाहिए.
एए/सीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
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