महिलाओं को यौन शोषण से बचाने वाला फेसबुक ग्रुप
२५ जून २०२१पिछली गर्मियों में, मोहम्मद एलियामनी इस खबर से हैरान हो गए थे जब अपने पूर्व प्रेमी से यौन शोषण की धमकी मिलने के बाद एक 17 वर्षीय लड़की उनके पास मदद के लिए पहुंची थी लेकिन बाद में उसने आत्महत्या कर ली.
जब लड़की ने 35 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता एलियामनी को इस बारे में संदेश भेजा, उन्होंने लड़की को पुलिस के पास जाने की सलाह दी. एलियामनी यौन उत्पीड़न और यौन शोषण के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए फेसबुक का उपयोग करते हैं और उनके खिलाफ अभियान चलाते हैं जो यौन शोषण के बाद पीड़ितों की निजी और संवेदनशील सामग्री सार्वजनिक करने की धमकी देते हैं.
लड़की के संदेश भेजने के अगले ही दिन, एलियामनी को पता चला कि लड़की के पूर्व प्रेमी ने उसके पिता के पास उसकी कुछ अंतरंग तस्वीरें भेज दीं, जिसके बाद लड़की ने आत्महत्या कर ली. जब एलियामनी ने उस लड़के के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने के लिए लड़की के परिवार से संपर्क किया, तो उनकी प्रतिक्रिया थी, "हम बात का बतंगड़ नहीं बनाना चाहते. हमारी लड़की भी अब इस दुनिया में नहीं है."
अपराध बोध से ग्रसित एलियामनी ने संकल्प किया कि वो किसी भी पीड़ित को इस तरह की दुर्भाग्यपूर्ण घटना से बचाने के लिए हरसंभव कोशिश करेंगे. जून 2020 में उन्होंने फेसबुक पर कावेम नाम से एक पेज और एक ग्रुप बनाया, जो यौन शोषण पीड़ितों की मदद करता है. आज इस फेसबुक पेज के 2,50,000 से अधिक फॉलोअर्स हैं.
सामना कैसे किया
कावेम के नेटवर्क में 200 स्वयंसेवक शामिल हैं. नेटवर्क की महिला स्वयंसेवक फेसबुक समूह चलाती हैं और पीड़ितों के संदेशों का जवाब देती हैं तो अन्य लोग जबरन वसूली करने वालों के बारे में जानकारी एकत्र करते हैं. जरूरत पड़ने पर उनके परिवारों, सहकर्मियों इत्यादि की भी जानकारी इकट्ठा करते हैं.
जब स्वयंसेवकों को किसी घटना के बारे में रिपोर्ट मिलती है, तो वे ऑनलाइन जबरन वसूली करने वाले से संपर्क करते हैं. वे उससे पीड़ित के खिलाफ उसकी सभी सामग्री को हटाने के लिए कहते हैं, उसके कृत्यों के परिणामों के बारे में सचेत करते हैं और उस व्यक्ति को उसके परिजनों, दोस्तों और उसके कार्यस्थल पर बेनकाब करने की धमकी भी देते हैं.
अभियुक्त से कहा जाता है कि सामग्री हटाने के दौरान उसका वो वीडियो बनाए और फिर उस वीडियो को कावेम के पास पीड़ित से माफी मांगते हुए भेज दे.
पीछे हटने का दबाव
एलियामनी कहते हैं कि कुछ अभियुक्त तो जब ये जान लेते हैं कि पीड़ित अकेले नहीं हैं तो ऐसा करना स्वीकार कर लेते हैं लेकिन ज्यादातर तब तक ऐसा नहीं करते जब तक कि उन्हें बेनकाब करने की धमकी न दी जाए.
वह कहते हैं, "कभी कभी हम लोग अपने स्वयंसेवकों को अभियुक्तों के पास अकेले में मिलने के लिए भेजते हैं. ये स्वयंसेवक ज्यादातर अभियुक्त के पड़ोसी या आस-पास के लोग ही होते हैं ताकि उस पर दबाव बने. बहुत कम मामलों में, हमें पीड़ित के साथ समन्वय में पुलिस का सहारा लेना पड़ा. ऐसा तब करना पड़ा जब अभियुक्त पकड़ में नहीं आता था.”
कावेम समूह के मुताबिक, इस समय उनके पास हर रोज करीब पांच सौ मामले आ रहे हैं जिनमें से हर हफ्ते करीब दो सौ मामले सुलझाए जा रहे हैं. 29 वर्षीय रानदा को बचाने में भी कावेम ने मदद की थी जब उनके पुरुष मित्र ने संबंध तोड़ने की स्थिति में रानदा की नग्न तस्वीरें सार्वजनिक करने की धमकी दी थी.
पीड़ित डरते हैं
पिछले साल अगस्त में मिस्र में यौन उत्पीड़न से पीड़ित महिलाओं की पहचान उजागर न करने संबंधी कानून को मंजूरी दी है लेकिन रानदा इसके बावजूद पुलिस में जाने से डर रही थीं.
अजीजा एल्ताविल इजिप्शन इनिशियेटिव फॉर पर्सनल राइट्स नामक स्वतंत्र मानवाधिकार संस्था से जुड़ी एक वकील हैं. उनके मुताबिक, रानदा का डर स्वाभाविक था. एल्ताविल कहती हैं कि कई पीड़ित इसलिए पुलिस के पास जाने से डरते हैं क्योंकि उन्हें यह खबर परिजनों, मीडिया या फिर सोशल मीडिया में फैल जाने का डर लगा रहता है.
एल्ताविल कहती हैं, "कभी-कभी अभियुक्तों के परिजन और उनके वकील पीड़ितों को बदनाम करने की कोशिश करते हैं. कानूनी प्रक्रिया अक्सर चलती रहती है और 18 वर्ष से कम आयु के पीड़ितों को अपने कानूनी अभिभावक के माध्यम से आधिकारिक शिकायत दर्ज करनी चाहिए.”
यौन उत्पीड़न से संबंधित मामलों को देखने वाले वकील यासिर साद कहते हैं कि मिस्र के कानून यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं को संरक्षण प्रदान करते हैं और अभियुक्तों को सजा देने वाले हैं. लेकिन इन कानूनों का अनुपालन और शिकायत दर्ज कराने की प्रक्रिया बेहद जटिल है.
साद के मुताबिक, आधिकारिक शिकायत दर्ज करने और जांच शुरू होने के बीच का समय अभियुक्त को इतना समय देता है कि वे पीड़ित को धमका सकें. वहीं पुलिस थानों में पुरुषवादी संस्कृति अक्सर ऐसे अपराधों के लिए पीड़ितों को ही दोषी ठहराने लगती है.
30 वर्षीय नूरहान कहती हैं कि दक्षिणी मिस्र के असिउत राज्य में उसके पूर्व मंगेतर से पूछताछ करने में 40 दिन लगा दिए. नूरहान ने पिछले साल अक्तूबर में अपने पूर्व मंगेतर के खिलाफ आधिकारिक रूप से यौन शोषण का मामला दर्ज कराया था.
एताविल कहती हैं कि शिकायत दर्ज कराने और पुलिस कार्रवाई में समय इस बात पर निर्भर करता है कि अभियुक्त का आईपी एड्रेस पुलिस को कितनी जल्दी मिल पाता है.
नूरहान कहती हैं कि हालांकि पुलिस में केस दर्ज कराने की वजह से आखिरकार उनके पूर्व-मंगेतर को पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा लेकिन उन्हें डर था कि उस दौरान उनकी हत्या भी हो सकती थी.
दक्षिणी मिस्र को उसकी परंपरागत संस्कृति और पितृसत्तात्मक समाज के लिए जाना जाता है और साथ ही तथाकथित ऑनर किलिंग के लिए भी, जहां किसी महिला की हत्या कथित तौर पर अनैतिक आचरण के लिए कर दी जाती है.
कुछ मामले मुश्किल हैं
एलियामनी स्वीकार करते हैं कि कावेम के सामने सबसे बड़ी चुनौती तब आती है जब पीड़ित ब्लैकमेलर के बारे में नहीं जानती. वह कहते हैं, "कुछ महिलाएं कई बार अपना फोन किसी दूसरे को बेच देती हैं. बेचने से पहले हालांकि वे तस्वीरें और वीडियो हटा देती हैं लेकिन उन्हें ये नहीं पता होता कि इन तस्वीरों और वीडियोज को तकनीक के जरिए रीस्टोर किया जा सकता है. ऐसी स्थितियों में फोन खरीदने वाला महिला को ब्लैकमेल करने लगता है, जबकि महिला उसे जानती भी नहीं.”
इन मामलों में वे पीड़ित को सीधे पुलिस के पास जाने की सलाह देते हैं.
एलियामनी कहते हैं कि वे ऐसे मामलों को भी नहीं देखते जिनमें संगठित अपराधी समूह यानी गैंग्स शामिल होते हैं. वह कहते हैं, "कई मामले ऐसे होते हैं जिनमें मॉडलिंग या विज्ञापन फिल्मों के लिए किसी पीड़ित से तस्वीर मांगी जाती है और फिर उसे ब्लैकमेल किया जाता है. कोविड काल में इस तरह की घटनाएं काफी देखने को मिली हैं.”
काहिरा के उत्तर पूर्व में जगाजिग विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान के अध्यापक अहमद अब्दुल्ला कहते हैं कि अरब देशों में ज्यादातर लोग मामलों को कानूनी तरीकों के बजाय परंपरागत तरीकों से निबटाना पसंद करते हैं. उनके मुताबिक, "पीड़ित केवल यह चाहते हैं कि उस सामग्री को हटा दिया जाए जिससे कोई अभियुक्त उन्हें ब्लैकमेल कर रहा है. इसके लिए यदि कानूनी रास्ते की बजाय अनौपचारिक रास्ता मिलता है, तो वो इसी रास्ते को प्राथमिकता देते हैं.”