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समाजभारत

कश्मीर में आप्रवासियों को सेना के कैंपों में रखने के आदेश

१८ अक्टूबर २०२१

भारत सरकार ने फैसला किया है कि कश्मीर में काम कर रहे आप्रवासी मजदूरों व अन्य कामगारों को पुलिस और सेना के कैंपों में रखा जाएगा. एक के बाद एक हो रही आप्रवासियों की हत्याओं के बाद भारत सरकार ने यह फैसला किया है.

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तस्वीर: Mukhtar Khan/AP Photo/picture alliance

रविवार को कश्मीर के पुलिस प्रमुख ने बताया कि सरकार ने आप्रवासी लोगों को सुरक्षा के लिए पुलिस और सेना के कैंपों में रखने का फैसला किया है. विजय कुमार ने कहा कि उन्होंने अपने अफसरों को निर्देश दिया है कि जल्द से जल्द इन लोगों को सुरक्षित जगहों पर भेजा जाए.

रविवार को और तीन लोग हमले का शिकार हुए जिनमें से दो की मृत्यु हो गई. इसके बाद आईजी विजय कुमार ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, "मैंने अफसरों को निर्देश दे दिया है कि जिन लोगों को खतरा है उन्हें तुरंत सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया जाए.”

कश्मीर के पैलेट पीड़ितों का दर्द

कश्मीर में दसियों हजार आप्रवासी काम कर रहे हैं जो दूसरे राज्यों से आए हैं. इनमें से कितने लोगों को सुरक्षित कैंपों में रखा जाएगा, इस बारे में अभी कोई स्थिति साफ नहीं हो सकी है. यह भी साफ नहीं हो पाया है कि ये लोग कैंपों में ही रहेंगे या वहां से काम कर सकेंगे.

जारी हैं हत्याएं

पिछले करीब दो हफ्ते से कश्मीर में एक के बाद एक मासूम लोगों की हत्याओं का सिलसिला जारी है. रविवार को तीन लोगों को गोली मार दी गई जिनमें से दो की मौत हो गई, और तीसरा घायल है.

मारे गए दोनों लोग बिहार के रहने वाले थे और कश्मीर में मजदूरी कर रहे थे. खबर है कि वानपो और कुलगाम में आतंकवादियों ने रविवार को मजदूरों पर गोलीबारी की जिसमें इन दोनों की मौत हो गई. इसके साथ ही कश्मीर में इस महीने मारे जानेवाले लोगों की संख्या 11 हो गई है.

शनिवार को दो लोगों को गोली मार दी गई थी जिनमें बिहार के एक रहने वाले अरविंद कुमार साह थे जो वहां गोलगप्पे बेचने का काम करते थे. एक अन्य व्यक्ति उत्तर प्रदेश का रहने वाला था जिसे गोली मार दी गई थी. साह को श्रीनगर में बहुत करीब से गोली मारी गई. पुलवामा में मारे गए सगीर अहमद उत्तर प्रदेश के रहने वाले थे और वहां बढ़ई का काम कर रहे थे.

कश्मीर के महंगे मशरूम

इस महीने जिन 11 लोगों की मौत हुई है उनमें से पांच अन्य राज्यों के हैं जबकि छह कश्मीर के ही रहने वाले हैं. इनमें हिंदू और मुस्लिम दोनों ही धर्मों के लोग शामिल हैं. एक अधिकारी ने बताया कि ऐसा लगता है कि आतंकवादी लोगों को कश्मीर से भगाने के लिए इस तरह की हत्याएं कर रहे हैं.

घाटी में दहशत

मरने वालों में  माखन लाल बिंद्रू भी शामिल हैं जो कश्मीरी पंडित समुदाय के एक जाने माने नेता थे और श्रीनगर में फार्मेसी चलाते थे. इसके अलावा एक टैक्सी ड्राइवर मोहम्मद शफी और दो अध्यापकों दीपक चंद और सुपूंदर कौर की भी गोली मारकर हत्या की गई. वीरेंद्र पासवान नाम के एक मजदूर को भी गोली मारी गई थी.

इन हत्याओं के चलते कश्मीर में डर का माहौल है और बहुत सारे लोग अपने घर छोड़कर जाने लगे हैं. ऐसे दर्जनों लोग जो कश्मीरी आप्रवासियों के लिए चलाई गई प्रधानमंत्री की विशेष योजना के तहत घाटी में लौटे थे अब वापस चले गए हैं. इनमें सरकारी कर्मचारी भी शामिल हैं.

धारा 370 हटने के दो साल बाद कश्मीर

हमलो के चलते सुरक्षा बलों ने कड़ी सख्ती बरती हुई है और 900 से ज्यादा लोगों को अलगाववादियों से संपर्कों के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया है. सुरक्षाबलों ने आतंकवाद रोधी अभियान भी तेज कर दिए हैं और पुलिस के मुताबिक पिछले एक हफ्ते में 13 आतंकवादी मार गिराए गए हैं.

इंस्पेक्टर जनरल विजय कुमार ने बताया, "नौ मुठभेड़ों में 13 आतंकवादियों को मार गिराया गया है. हमने पिछले 24 घंटे में श्रीनगर में तीन आतंकवादियों को मारा है.”

साजिश की आशंका

नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने कहा है कि हाल में हो रही नागरिकों की हत्याओं में कश्मीरी लोग शामिल नहीं हैं. उन्होंने कहा कि ये घटनाएं कश्मीरियों को बदनाम करने के लिए की जा रही हैं.

अब्दुल्ला ने मीडिया को बताया, "ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण हत्याएं हैं और इन्हें एक साजिश के तहत अंजाम दिया जा रहा है. कश्मीरी इन हत्याओं में शामिल नहीं हैं. ये कश्मीरियों को बदनाम करने की कोशिश है.”

भारत और पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के बीच होने वाली बातचीत के संबंध में जब फारूक अब्दुल्ला से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि ऐसे हर कदम का स्वागत किया जाना चाहिए जो दोस्ती की ओर बढ़ता हो. उन्होंने कहा, "हमें प्रार्थना और उम्मीद करनी चाहिए कि दोनों देशों के बीच दोस्ती कायम होगी और हम शांति से जी सकेंगे.”

रिपोर्टः विवेक कुमार

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