वादियों के बीच ओपन एयर स्कूल में पढ़ते बच्चे
२९ जुलाई २०२०हरी घास, आस-पास पहाड़ियों और देवदार के पेड़ के बीच तस्लीम बशीर अपनी किताब में खोई हुई है. इन वादियों के बीच दोबारा स्कूल लौटने की तस्लीम की खुशी का ठिकाना ही नहीं है. बडगाम जिले के दूधपथरी की वादियों में तस्लीम की तरह कई बच्चे ओपन एयर स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं. देशभर में कोरोना वायरस के मामले तेजी से बढ़ते जा रहे हैं. तस्लीम कहती है, "इस तरह की ताजी हवा में स्कूल आना कितना अच्छा लगता है. मैं घर पर बहुत ज्यादा पढ़ाई नहीं कर पाती थी. घर पर मुझे कई और काम भी करने पड़ते थे."
समाचार एजेंसी एएफपी से तस्लीम कहती है, "क्लास के बाद मैं अपने दोस्तों के साथ बैठती हूं और घर जाने के पहले हम साथ खेलते भी हैं." तस्लीम की ही तरह और बच्चों को भी इस तरह के स्कूल में पढ़ने में मजा आ रहा है. हर रोज अभिभावक या दादा-दादी बच्चों को चढ़ाई पार कर यहां तक स्कूल के लिए छोड़ जाते हैं. क्लास के दौरान ब्रेक होने पर बच्चे पास बहती धारा में अपने पांव ठंडे पानी में डालकर मस्ती करते हैं जबकि कुछ बच्चे स्कूल खत्म हो जाने के बाद नदी में डूबकी लगाकर नहा लेते हैं.
कोरोना वायरस महामारी के पहले से ही कश्मीर में स्कूली शिक्षा प्रभावित हुई है. भारत सरकार ने पिछले साल अनुच्छेद 370 हटाकर विशेष राज्य का दर्जा समाप्त कर दिया था. इसके बाद वहां कर्फ्यू लगाया दिया गया. भारत में कोरोना वायरस संक्रमण का आंकड़ा 15 लाख को पार करने जा रहा है जबकि यह सबसे ज्यादा संक्रमण के साथ दुनिया में तीसरे स्थान पर है. इन हालात के बीच अब तक स्पष्ट नहीं है कि स्कूल दोबारा कब खुलेंगे. स्मार्टफोन खरीदने में असमर्थता और सुदूर गांवों तक सीमित इंटरनेट पहुंच के कारण बहुत सारे छात्र ऑनलाइन क्लास में शामिल नहीं हो पा रहे थे. इसलिए अभिभावकों ने शिक्षा विभाग से मदद करने को कहा.
स्थानीय शिक्षा विभाग के अधिकारी मोहम्मद रमजान के मुताबिक, "हमने इन बच्चों के लिए खुली हवा में कक्षाएं कराने का फैसला किया. हम यहां भी सोशल डिस्टेंसिंग के नियम का पालन करते हैं." इस घास के मैदान पर चलने वाले स्कूल में 15 गांवों के बच्चे पढ़ने के लिए आते हैं. क्लास शुरू होने से पहले उन्हें फेस मास्क और हैंड सैनेटाइजर दिया जाता है. सभी बच्चों को आठ समूहों में उनकी उम्र के मुताबिक बिठाया जाता है.
टीचर मंजूर अहमद कहते हैं, "घर पर बैठकर वेतन लेने में अच्छा नहीं लगता है. स्कूल की इमारत की तंग कक्षाओं की तुलना में इन मोहक वादियों में पढ़ाने में बहुत आनंद आता है." 12 साल की शबनम जो कि क्लास में पढ़ने के लिए डेढ़ किलोमीटर से अधिक पैदल चलकर सफर तय करती है, बताती है कि कैसे उसे शुरूआत में मास्क पहनने में घुटन महसूस होती थी. शबनम कहती है, "अब मुझे अच्छा लगता है और यहां पढ़ने आने में मुझे बहुत मजा आता है."
एए/सीके (एएफपी)