भारत में क्यों नहीं खत्म होती बंधुआ मजदूरी
८ अप्रैल २०२१राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) को मिली शिकायत के बाद अलीगढ़ जिला प्रशासन ने बंसाली गांव में एक ईंट भट्टे से 127 बंधुआ मजदूरों को छुड़ाया है. इन लोगों में 67 बच्चे भी शामिल हैं. छुड़ाए गए सभी लोगों को बिहार के नवादा जिला भेज दिया गया है. बताया जाता है कि पिछले महीने बंधुआ मजदूरों में से एक ने ईंट भट्ठा मालिक के रिश्तेदार पर नाबालिग लड़की के साथ कथित यौन उत्पीड़न करने की एफआईआर दर्ज कराई थी.
इसके बाद आरोपी को गिरफ्तार करके न्यायिक हिरासत में भेजा गया था. इसके बाद मजदूरों ने कहा था कि उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाता है और वे यहां असुरक्षित महसूस करते हैं, लिहाजा वे अपने घर वापस लौटना चाहते हैं. इगलास के उप-मंडल मजिस्ट्रेट कुलदेव सिंह ने कहा कि आरोपों की जांच के लिए जिला मजिस्ट्रेट की तरफ से 3 सदस्यीय समिति का गठन किया गया था और पूछताछ के दौरान यह पाया गया कि मजदूर बिहार वापस जाना चाहते हैं. लिहाजा उनके लिए एक बस की व्यवस्था की गई और वे मंगलवार, 6 अप्रैल को बिहार रवाना हुए.
अधिकारियों ने बताया कि हर मजदूर को प्रति 1,000 ईंटें बनाने पर 400 रुपये दिए जाते थे. यहां काम करने के लिए आने से पहले मजदूरों ने 25-25 हजार रुपये एडवांस में लिए थे.
पुलिस ने ईंट भट्ठे की मालकिन और उसके बेटे के खिलाफ बंधुआ श्रम प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम 1976 की धारा 16, 17 के तहत मामला दर्ज किया है.
2011 की जनगणना में देश में 1,35,000 बंधुआ मजदूरों की पहचान की गई थी. भारत में बंधुआ मजदूरी के खात्मे के लिए पहली बार कानून 1976 में बना था. कानून में बंधुआ मजदूरी को अपराध की श्रेणी में रखा गया था. साथ ही बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराए गए लोगों के आवास और पुर्नवास के लिए दिशा निर्देश भी इस कानून का हिस्सा हैं. लेकिन दशकों बाद भी बंधुआ मजदूरी से जुड़े मामले आते रहते हैं.
बाल श्रम की बात की जाए तो पूरे देश में 5 से 14 साल की उम्र वाले कामकाजी बच्चों की संख्या करीब 44 लाख है. कई बार बच्चों से बतौर बंधुआ मजदूर भी जबरन काम करवाया जाता है और उन्हें उसके बदले पैसे तक नहीं मिलते हैं.
एए/सीके (रॉयटर्स)