नई संसद: कौन करे उद्घाटन राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री?
२४ मई २०२३नई संसद का उद्घाटन देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे. कई विपक्षी दल कह रहे हैं कि राष्ट्र को नए संसद भवन को समर्पित करने के लिए मोदी की बजाय राष्ट्रपति को आमंत्रित किया जाना चाहिए था.
विपक्षी दल केंद्र की मोदी सरकार को इस मुद्दे पर घेरने की कोशिश में जुट गई है. कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने नए संसद भवन के उद्घाटन का बहिष्कार कर दिया है.
कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, टीएमसी, डीएमके, वाम दल, राष्ट्रीय जनता दल, जेडीयू, एनसीपी, समाजवादी पार्टी, उद्धव ठाकरे की शिवसेना समेत 19 दलों ने बुधवार को कहा कि वे इस आयोजन का हिस्सा नहीं बनेंगे.
कांग्रेस शुरू से ही यह मुद्दा उठा रही है कि नए भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री की बजाय राष्ट्रपति से कराया जाना चाहिए. 21 मई को कांग्रेस के पूर्व सांसद राहुल गांधी ने एक ट्वीट किया था, "नए संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति जी को ही करना चाहिए, प्रधानमंत्री को नहीं!"
इसके बाद कांग्रेस ने इस मुद्दे पर विस्तार से प्रेस वार्ता कर प्रधानमंत्री द्वारा नए भवन के उद्घाटन पर सवाल उठाया था. साथ ही कांग्रेस ने इस भवन के निर्माण का औचित्य भी पूछा था.
विपक्ष ने किया बहिष्कार का ऐलान
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि करीब 900 करोड़ रुपये खर्च करने की क्या जरूरत थी. उन्होंने कहा, "भारत दुनिया का पहला लोकतंत्र होगा, जिसे अपना नया संसद भवन बनाने की जरूरत पड़ी. दुनिया के किसी भी लोकतंत्र ने अपने इतिहास में संसद भवन को नहीं बदला. जरूरत पड़ने पर तमाम देशों ने उसकी मरम्मत जरूर करवाई है."
आनंद शर्मा का कहना था कि विदेशी संसदों की तुलना में देश की संसद अपेक्षाकृत कम उम्र की और बेहद मजबूत इमारत है. इससे भारत की आजादी का इतिहास जुड़ा है. उन्होंने कहा, "संसद केवल एक इमारत भर नहीं है, यह देश और देश के लोगों के लिए हमारी संप्रभुता का प्रतीक है."
बुधवार को कांग्रेस ने एक बयान जारी कर नए संसद भवन के उद्घाटन का बहिष्कार का ऐलान भी कर दिया. कांग्रेस ने अपने बयान में कहा, "नए संसद भवन के उद्घाटन के अवसर पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी को पूरी तरह से दरकिनार करना ना केवल महामहिम का अपमान है बल्कि लोकतंत्र पर सीधा हमला भी है. जब लोकतंत्र की आत्मा को ही संसद से निष्कासित कर दिया गया है, तो हमें नई इमारत में कोई मूल्य नहीं दिखता. हम नए संसद भवन के उद्घाटन का बहिष्कार करने के अपने सामूहिक निर्णय की घोषणा करते हैं."
विपक्षी दलों के ऐलान के बाद बुधवार को ही संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने विपक्षी दलों से अपील करते हुए कहा कि वे अपने फैसले पर दोबारा विचार करे और इस ऐतिहासिक आयोजन का हिस्सा बने. उन्होंने कहा, "यह ऐतिहासिक क्षण है. इसमें राजनीति नहीं करनी चाहिए. बहिष्कार कर एक बिना-बात का मुद्दा बनाना दुर्भाग्यपूर्ण है. मैं उनसे अपने इस निर्णय पर फिर से विचार करने की अपील करूंगा और कृपया इसमें शामिल हों."
राष्ट्रपति की बजाय प्रधानमंत्री द्वारा नए संसद भवन के उद्घाटन के सवाल पर जोशी ने कहा, "स्पीकर संसद का संरक्षक होता है और स्पीकर ने ही प्रधानमंत्री को आमंत्रित किया है. पहले भी जो प्रधानमंत्री थे, उन लोगों ने भी बहुत सी इमारत वगैरह के उद्घाटन किए हैं. ऐसा कारण देकर इस तरह से कार्यक्रम का बहिष्कार करना ठीक नहीं है."
नई संसद में सेंगोल स्थापित करेंगे मोदी
नए संसद भवन के उद्घाटन को लेकर गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की और बताया कि नए भवन में सेंगोल को स्थापित किया जाएगा. उन्होंने कहा, "इस अवसर पर एक ऐतिहासिक परंपरा पुनर्जीवित होगी. इसके पीछे युगों से जुड़ी हुई एक परंपरा है. इसे तमिल में सेंगोल कहा जाता है और इसका अर्थ संपदा से संपन्न और ऐतिहासिक है.
अमित शाह के मुताबिक 14 अगस्त 1947 को एक अनोखी घटना हुई थी. इसके 75 साल बाद आज देश के अधिकांश नागरिकों को इसकी जानकारी नहीं है. उन्होंने कहा, "सेंगोल ने हमारे इतिहास में एक अहम भूमिका निभाई थी. यह सेंगोल सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक बना था. इसकी जानकारी पीएम मोदी को मिली तो गहन जांच करवाई गई. फिर निर्णय लिया गया कि इसे देश के सामने रखना चाहिए. इसके लिए नए संसद भवन के लोकार्पण के दिन को चुना गया."
अमित शाह ने बताया कि इस सेंगोल को स्पीकर की कुर्सी के पास रखा जाएगा. उन्होंने कहा कि आजादी के समय पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सत्ता हस्तांतरण के दौरान तमिलनाडु से सेंगोल को मंगवाकर अंग्रेजों से प्राप्त किया था. इसका मतलब था कि पारंपरिक तरीके से सत्ता हमारे पास आई है.
शाह का कहना है कि सेंगोल चोल साम्राज्य से जुड़ा है और सेंगोल जिसको प्राप्त होता है उससे निष्पक्ष और न्यायपूर्ण शासन की उम्मीद की जाती है.
किसके हाथ से हो उद्घाटन
दूसरी ओर कई जानकारों का कहना है कि नए भवन के उद्घाटन में राष्ट्रपति को नहीं बुलाना उनका एक तरह का अपमान है क्योंकि राष्ट्रपति ही राष्ट्र का प्रमुख होता है और संविधान के मुताबिक राष्ट्रपति को ही उद्घाटन करना चाहिए. वरिष्ठ पत्रकार अशोक वानखेड़े कहते हैं, "कुछ परंपराएं होती हैं, हमारे देश का जो संविधान है उसमें अनुच्छेद 79 संसद को परिभाषित करता है, जिसमें बताया गया है कि संसद के तीन अंग होते हैं- पहला राष्ट्रपति, दूसरा राज्यसभा और तीसरा लोकसभा है. राष्ट्रपति के अंदर ही संसद होती है और राष्ट्रपति ही देश का प्रथम नागरिक है. जब लोकतंत्र और संसद की बात आती है तो राष्ट्रपति का एक स्थान है. अगर एक नई संसद बनती है तो उसके लोकार्पण के समय राष्ट्रपति को नजरअंदाज करना बहुत ही शर्मनाक है."
वानखेड़े कहते हैं कि नरेंद्र मोदी के लिए यह बहुत ही आत्ममुग्धता की बात है. वे कहते हैं, "मोदी को सिवाए अपने के कोई और नहीं दिखता है."
"लंबे समय से हो रहा था नए भवन पर विचार"
दूसरी ओर वरिष्ठ पत्रकार विभाकर कहते हैं नए भवन के उद्घाटन का विरोध नहीं बल्कि उत्सव मनाया जाना चाहिए. विभाकर कहते हैं कि प्रधानमंत्री ने आजादी के 75 साल पूरे होने पर लोकतंत्र के मंदिर को स्वदेशी होने के बारे में सोचा और इसलिए नई संसद बनाई गई. विभाकर के मुताबिक पुरानी संसद जब बनी थी तब दिल्ली सिसमिक जोन दो में आती थी और अब वह चार के स्तर पर है, जिससे दिल्ली पर भूकंप का बड़ा खतरा मंडराता रहता है. उनका कहना है कि संसद के कई हिस्से कमजोर स्थिति में है काम करने के लिए जगह पर्याप्त नहीं है.
विभाकर कहते हैं कि नई संसद बनाने का मकसद भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखना है. विभाकर यह भी बताते हैं कि नई संसद बनाने का प्रस्ताव एक बार 2012 में लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार ने शहरी विकास मंत्रालय को भेजा था और मंत्रालय से नई इमारत बनाने के लिए उचित कार्रवाई करने को कहा था लेकिन कुछ अर्से के बाद सरकार बदल गई और वह नहीं हो सका.
विभाकर बताते हैं कि जब नई सरकार आई तो फिर एक बार नए सिरे से यह बात उठी. 2014 के बाद जब सुमित्रा महाजन स्पीकर बनीं तो उन्होंने एक बार फिर शहरी विकास मंत्रालय को इस बारे में प्रस्ताव भेजा. उसके बाद 2019 में रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल आया है और यह मुमकिन हो पाया. विभाकर बताते हैं कि प्रधानमंत्री के द्वारा उद्घाटन करना गलत नहीं है. उनका कहना है कि इस मुद्दे पर विवाद पैदा करने की जरूरत ही नहीं थी.
विभाकर के मुताबिक, "प्रधानमंत्री भारत सरकार के कार्यपालिका का प्रमुख होता है और यह काम कार्यपालिका की तरफ से हुआ है, यह संसद की तरफ से नहीं हुआ है बल्कि लोकसभा सचिवालय की तरफ से हुआ है. यह प्रस्ताव लोकसभा सचिवालय की तरफ से शहरी विकास मंत्रालय को गया, मंत्रालय ने इस काम को पूरा किया और एक एक्जिक्यूटिव हेड की हैसियत से प्रधानमंत्री को बुलाया गया है और यही कारण था कि नई संसद की शिलान्यास के लिए भी उन्हें बुलाया गया था."
कांग्रेस को 28 मई की तारीख पर भी आपत्ति है उसका कहना है कि यह दिन सावरकर की जयंती का दिन है. कांग्रेस का कहना है कि इस दिन नई संसद का उद्घाटन करना राष्ट्र के निर्माताओं का अपमान है. 28 मई को सावरकर की 140वीं जयंती मनाई जाएगी.