भारत को सस्टेनेबल इनोवेशन हब बनाने में तेजी लाती जर्मन तकनीक
१६ अगस्त २०२४नई दिल्ली में जर्मन दूतावास ने फ्राउनहोफर के सहयोग से "सस्टेनेबिलिटी: द टेक्नोलॉजी इम्पेरेटिव फॉर आवर फ्यूचर जर्मन इनोवेशन इन इंडिया" नाम का एक सम्मेलन का आयोजन किया. इस आयोजन में जर्मन तकनीक के इस्तेमाल से भारत को इनोवेशन हब बनाने पर चर्चा हुई.
सम्मेलन में पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए एडवांस टेक्नॉलजी से विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने पर विचार हुआ. इस सम्मेलन में भारतीय विशेषज्ञ और जर्मन कंपनियों जैसे मर्सिडीज बेंज, एसएपी, मर्क, कॉन्टिनेंटल, डेमलर ट्रक, फेस्टो, सीमेंस हेल्थीनियर्स, बॉश ग्लोबल सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजीज, और इन्फिनियन जैसी प्रमुख जर्मन कंपनियों के अधिकारी शामिल हुए. इस आयोजन में जर्मन इंडस्ट्री के लीडर्स और भारत के नीति निर्माताओं की मौजूदगी में एक पेपर भी लॉन्च किया गया. इसका विषय था कि कैसे प्रोडक्ट डिवेलपमेंट के मामले में कैसे भारत एक वैश्विक केंद्र बन सकता है.
भारत सरकार और टेक कंपनियां आईं साथ
भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार कार्यालय का प्रतिनिधित्व करते हुए नीरज सिन्हा ने विश्वास जताया कि इस पहल से भारत में इनोवेशन के परिदृश्य को मजबूत करने में मदद मिलेगी. उन्होंने कहा, "भारत ने विभिन्न स्तरों पर नवाचार (इनोवेशन) को बढ़ावा देने में प्रगति की है, जैसे कि अटल इनोवेशन मिशन जैसी जमीनी पहल से लेकर उद्योग के साथ उच्च स्तरीय साझेदारियां..यह पहल, जिसमें जर्मन उद्योग विशेषज्ञता को शामिल किया गया है, हमारे इनोवेशन लक्ष्य में बड़ी प्रगति ला सकता है."
फ्राउनहोफर इंडिया की निदेशक आनंदी अय्यर ने जोर देकर कहा कि भारत में जर्मन कंपनियां अनुसंधान और विकास (आरएंडडी) के क्षेत्र में बड़ा योगदान दे रही हैं.
डीडब्ल्यू से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा, "इस समय 40 से 45 ऐसी बड़ी जर्मन कंपनियां हैं जो भारत से इंजीनियरों को नियुक्त करती हैं और दुनिया भर में आरएंडडी करती हैं लेकिन इंडियन मार्किट के लिए कुछ नहीं करतीं. यहां की स्थिति अलग है. जो टेक्नोलॉजी जर्मनी में इस्तेमाल हो सकती है वो जरूरी नहीं है कि इंडिया में भी काम आए. अगर आप बैटरी टेक्नोलॉजी जर्मनी में देखते हैं तो वो माइनस 20 डिग्री के लिए बनती हैं, यहां आपको प्लस 40 डिग्री के लिए सोचना पड़ेगा. आरएंडडी लॉन्ग टर्म होता है, लॉन्ग टर्म बनने में समय लगता है और इसका असर भी लॉन्ग टर्म होता है.”
रिसर्च संस्थानों के बिना इनोवेशन हब बनना असंभव
इस सम्मेलन में एक त्रिपक्षीय वार्ता पर जोर दिया गया था. सरकार और प्रमुख कंपनियों के अधिकारियों के अलावा रिसर्च संस्थानों के प्रोफेसर भी थे. इसका मकसद एक ऐसी मजबूत नींव तैयार करना है जिससे रिसर्च संस्थानों और बाजार की जरूरतों के बीच का अंतर काम किया जा सके और उपयोगी रिसर्च का एक ढांचा बनाया जा सके.
एसएपी लैब्स इंडिया की मैनेजिंग डायरेक्टर सिंधु गंगाधरन ने डीडब्ल्यू से बात करते हुए कहा, "हमें ऐसे छात्र चाहिए जो तकनीक को वास्तविक जीवन की समस्याओं से जोड़ सकें. आप शायद जावा कोड लिखना जानते होंगे, लेकिन आपको पता नहीं होगा कि उसे व्यावसायिक डोमेन और टेक्नोलॉजी के संयोजन से कैसे जोड़ा जाए, जो कि हमारे लिए बहुत अहम होता है.”
इस कार्यक्रम में छात्रों के लिए भी स्किल डेवलपमेंट प्रोग्रामों पर भी बात हुई. इसमें टेक कंपनियों को रिसर्च सेंटरों में अपने हब बनाने हैं ताकि उन्हें भी स्टूडेंट के साथ काम करने में आसानी हो सके.
एसएपी लैब्स ने अपने आउटरीच प्रोग्राम के बारे में बताया जिससे उन्हें विश्वविद्यालयों में प्रतिभाओं के साथ काम करने का मौका मिलता है. गंगाधरन कहती हैं, "हम वास्तव में विश्वविद्यालयों के साथ मिलकर काम करते हैं. इसके अलावा विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों के लिए एसएपी लैब्स में समय बिताने का प्रोग्राम भी है. जहां यह समझा जा सकता है कि प्रौद्योगिकी विकास किधर जा रहे हैं. वो देख पाते हैं कि हम जिन 26 से अधिक उद्योगों में सर्विस देते हैं, वहां समस्याएं कैसे सुलझा रहे हैं." इसके अलावा एसएपी जैसी कंपनियां कुछ विषयों पर विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरों के साथ गहन शोध करती हैं. इसमें वो उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करती हैं जिन्हें बाद में पाठ्यक्रम में लाया जा सकता है.
चीन से आगे निकलने में भारत है समर्थ
इन्वेस्ट इंडिया की चीफ इन्वेस्टमेंट अफसर सुनीता मोहंती ने इस मौके पर कहा कि आसियान देशों में एक भू-राजनीतिक घटनाक्रम चल रहा है जहां अमेरिका जैसे देश चीन से व्यापार को सीमित करना चाहते हैं और इसलिए वे वियतनाम जैसे अन्य आसियान देशों की ओर जा रहे हैं. लेकिन इसी समय, चीन के इन देशों के साथ व्यापार संबंध बढ़ रहे हैं. उन्होंने चुनौतियों का जिक्र करते हुए कहा कि कई देश जो भारत के साथ व्यापारिक संबंध बनाना चाहते हैं उन्हें विभिन्न राज्यों की नीतियों के कारण व्यापार करने में मुश्किल आती है. उन्होंने कहा कि चीन की ही तरह भारत में भी सस्ता श्रम है. चीन के पास घरेलू बाजार है, तो भारत के पास और भी बड़ा घरेलू बाजार है. लेकिन भारत के साथ मुख्य समस्या सरकारी सब्सिडी की है. कारण, चीन में निवेश को भारी सरकारी सब्सिडी मिलती है.
हाल ही में भारत सरकार ने अनुसंधान और विकास (आरएंडडी) के लिए बड़ी धनराशि की घोषणा की है. इससे जर्मनी जैसे देशों की तकनीकों से भारत में इनोवेशन सेंटर स्थापित कराने में मदद कर सकती है. चूंकि उद्योगों और स्टार्टअप्स को एक साथ लाने से इसमें तेजी आती है इसलिए ऐसे सेंटर टेस्टिंग और स्केलिंग का आधार बन सकते हैं.
भारत ने पहली बार इनोवेशन सूचकांक में सबसे ऊपर के 50 देशों में बनाई जगह
मर्सीडीस बेंन्ज के आरएंडडी इंडिया के वाइस प्रेजिडेंट अंशुमन अवस्थी ने इस मौके पर कहा कि रिसर्च संस्थानों के लिए असफलता के डर से मुक्त होना और स्किल में निवेश करना महत्वपूर्ण है. हालांकि, सरकारी क्षमता भी एक समस्या हो सकती है. आईआईटी और आईआईईएस के अलावा भी भारत में कई अनुसंधान संस्थान हैं. उन पर ध्यान देने की भी आवश्यकता है."
भारत सरकार ने साल 2024 के केंद्रीय बजट में आरएंडडी के लिए कई घोषणाएं की हैं. चुनिंदा शैक्षणिक संस्थानों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में अनुसंधान और विकास के लिए तीन उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किए जाएंगे. इंजीनियरिंग संस्थानों में 5जी सेवाओं का इस्तेमाल कर एप्लिकेशन विकसित करने के लिए 100 प्रयोगशालाएं स्थापित की जाएंगी. एनॉनमाइज्ड डेटा के एक्सेस को सरल बनाने हेतु एक राष्ट्रीय डेटा गवर्नेंस नीति जारी की जाएगी. साथ ही, फार्मास्यूटिकल्स में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए उत्कृष्टता केंद्रों के माध्यम से एक कार्यक्रम शुरू किया जाने की घोषणा की गई है.