गुजरात विधानसभा चुनाव: राजनीतिक हाशिए पर मुस्लिम समाज
१६ नवम्बर २०२२गुजरात में विधानसभा चुनाव दो चरणों में होंगे. एक दिसंबर और पांच दिसंबर को राज्य में वोट डाले जाएंगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य में चुनाव को लेकर काफी शोरगुल है. मोदी और उनकी पार्टी बीजेपी दोबारा सत्ता हासिल करने की पूरी कोशिश में है. पिछले 27 साल से गुजरात में बीजेपी की ही सत्ता है और मोदी चाहते हैं कि इस चुनाव में बीजेपी पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दे.
सिमट रहा है भारत के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समूह का प्रतिनिधित्व
गुजरात में मुस्लिम आबादी की बात की जाए तो वहां करीब 58 लाख (कुल आबादी का 9.67 प्रतिशत) है. राज्य की कई सीटों पर मुस्लिम मत निर्णायक साबित हो सकता है. इस चुनाव में खास बात यह कि इस बार मैदान में बीजेपी के सामने कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) भी है. एआईएमआईएम इस बार गुजरात विधानसभा चुनाव में 40 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कह रही है.
बीजेपी और कांग्रेस कैसे देखती है मुसलमानों को
गुजरात में 34 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां मुस्लिम मतदाताओं की आबादी 15 फीसदी से अधिक है. जबकि 20 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 20 फीसदी से अधिक है. फिर भी प्रमुख राजनीतिक दल और राज्य में सत्ता पर काबिज बीजेपी इस बार चुनाव में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को नहीं उतारा है.
राज्य विधानसभा में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व लगातार घटता जा रहा है. आखिरी बार बीजेपी ने 24 साल पहले एक मुस्लिम उम्मीदवार को मैदान में उतारा था. इस बार अब तक जारी उम्मीदवारों की सूची में बीजेपी ने एक भी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया है.
जबकि कांग्रेस ने अब तक जारी 140 उम्मीदवारों की सूची में केवल छह मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है. अगर बात आम आदमी पार्टी की जाए तो उसकी 157 उम्मीदवारों की सूची में सिर्फ दो मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया गया है.
दोनों प्रमुख राजनीतिक दल बीजेपी और कांग्रेस 'जीतने की क्षमता' का हवाला देते हुए टिकट वितरण करती है. इस चुनाव में कांग्रेस अल्पसंख्यक विभाग ने मुसलमानों के लिए 11 टिकटों की मांग की थी. पिछले चार दशकों में सबसे अधिक संख्या में कांग्रेस ने 1980 के दशक में 17 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था.
उस समय कांग्रेस के दिग्गज नेता माधवसिंघ सोलंकी ने क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुसलमान समीकरण बिठाया था, जिसका लाभ पार्टी को मिला और 12 मुस्लिम उम्मीदवार जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. हालांकि 1985 में कांग्रेस ने इसी फॉर्मूला को आगे बढ़ाते हुए मु्स्लिम उम्मीदवारों की संख्या 11 कर दी और आठ मुस्लिम उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी.
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कम मुसलमानों को टिकट
इसके बाद 1990 के दशक में राम मंदिर का आंदोलन शुरू हुआ और हिंदुत्तव राजनीति के बीच बीजेपी और उसकी सहयोगी जनता दल ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा. कांग्रेस ने 11 मुस्लिम उम्मीदवार उतारा जिनमें दो ही जीत हासिल कर पाए. 1995 के चुनाव में कांग्रेस के सभी 10 उम्मीदवार चुनाव हार गए.
गोधरा कांड और उसके बाद भड़के दंगों के कारण वोटों का ध्रुवीकरण बहुत तेजी से हुआ और कांग्रेस ने 2002 में सिर्फ पांच मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया. उसके बाद से कांग्रेस छह से अधिक सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारती आई है.
पिछले दिनों गुजरात में हुए एक सर्वे में दावा किया गया कि राज्य के 47 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता कांग्रेस के समर्थन में हैं. जबकि आप को पसंद करने वाले मुस्लिम वोटरों की संख्या करीब 25 फीसदी है. एआईएमआईएम के साथ सिर्फ नौ प्रतिशत मुस्लिम वोटर हैं वहीं बीजेपी के साथ 19 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं.
गुजरात के 33 जिलों की कुल 182 सीटों पर चुनाव के लिए 4.90 करोड़ पात्र मतदाता हैं. चुनाव आयोग के मुताबिक राज्य में 1,417 थर्ड जेंडर हैं, वहीं पुरुष मतदाताओं की संख्या 2,53,36,610 और महिला मतदाताओं की संख्या 2,37,51,738 है.