हिंदू-मुस्लिम मुद्दा है या बेरोजगारी?
८ मई २०२४लोकसभा चुनावों में मतदान के तीन चरण समाप्त हो चुके हैं, लेकिन जैसे-जैसे चुनावी प्रक्रिया आगे बढ़ रही है पार्टियों के चुनावी अभियान और भड़काऊ होते जा रहे हैं. ऐसे में बेरोजगारी जैसी बड़ी समस्या पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है.
रोजगार रहित आर्थिक विकास यानी 'जॉबलेस ग्रोथ' से पिछली सरकारें भी जूझती रही हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के खिलाफ विशेष आरोप यह है कि उसके कार्यकाल में बेरोजगारी इतनी बढ़ गई जितनी बीते चार दशकों में नहीं बढ़ी थी.
यह बात सरकारी आंकड़े 2019 में ही दिखा रहे थे. फरवरी, 2019 में 'बिजनेस स्टैंडर्ड' अखबार की एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि एक सरकारी सर्वेक्षण में पाया गया कि बेरोजगारी 45 सालों में सबसे ऊंचे स्तर पर थी, लेकिन सरकार ने इस रिपोर्ट को जारी नहीं किया.
आखिरकार मई, 2019 में सरकार को इन आंकड़ों को सार्वजनिक करना ही पड़ा. आंकड़ों के मुताबिक 2017-18 में बेरोजगारी दर 6.1 प्रतिशत थी, जो 45 सालों में सबसे ऊंचा स्तर था. इस रिपोर्ट को आए पांच साल बीत चुके हैं, लेकिन आज भी स्थिति नाजुक ही बनी हुई है.
ताजा सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अक्तूबर से दिसंबर, 2023 के बीच देश के शहरी इलाकों में बेरोजगारी दर 6.5 प्रतिशत थी. निजी संस्थानों का आकलन इससे ज्यादा गंभीर है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) के मुताबिक फरवरी, 2024 में कुल बेरोजगारी दर आठ प्रतिशत हो गई थी.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर इकनोमिक स्टडीज एंड प्लानिंग के प्रोफेसर प्रवीण झा कहते हैं, "बेरोजगारी वाकई में एक बड़ी समस्या है. सर्वसम्मत राय यह है कि कुल मिलाकर रोजगार की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है."
युवा बेरोजगारी है असली समस्या
कई जानकारों का कहना है कि उन्हें विशेष रूप से युवा बेरोजगारी के बढ़ने की विशेष रूप से चिंता है. सरकारी आंकड़े दिखाते हैं कि 2022-23 में 15-29 साल के युवाओं में से लगभग 16 प्रतिशत युवा कौशल की कमी और अच्छी नौकरियों की भी कमी की वजह से बेरोजगार रह गए.
निजी संस्थाओं का मानना है कि स्थिति इससे कहीं ज्यादा खराब है. सीएमआईई के मुताबिक युवा बेरोजगारी दर 45.4 प्रतिशत है. हाल ही में जारी की गई एक अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर तीसरा युवा ना तो पढ़ाई कर रहा है, ना ही नौकरी और ना ही कोई प्रशिक्षण हासिल कर रहा है.
यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने नई दिल्ली स्थित थिंक-टैंक इंस्टिट्यूट फॉर ह्यूमन डेवलपमेंट (आईएचडी) के साथ मिलकर जारी की थी. रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि अशिक्षित युवाओं के मुकाबले ज्यादा पढ़े लिखे युवाओं को नौकरी मिलने की संभावना और कम है.
जहां अशिक्षित युवाओं में 3.4 प्रतिशत बेरोजगारी दर पाई गई, वहीं ग्रेजुएट युवाओं में यह दर 29.1 प्रतिशत पाई गई. माध्यमिक या उच्च शिक्षा पा चुके युवाओं में बेरोजगारी दर 18.4 पाई है.
आईएचडी के सेंटर फॉर एम्प्लॉयमेंट स्टडीज के निदेशक प्रोफेसर रवि श्रीवास्तव ने इस रिपोर्ट को बनाने वाली की टीम का नेतृत्व किया था. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि युवा बेरोजगारी देश की बेरोजगारी समस्या के केंद्र में है.
उन्होंने कहा, "बाकी सब अंडरएम्प्लॉयमेंट है, या जिसे हम छिपी हुई बेरोजगारी कहते हैं, जिसमें लोग काम तो कर रहे हैं लेकिन या तो उन्हें बहुत कम वेतन मिल रहा है या वो बहुत कम दिनों के लिए काम कर पा रहे हैं. लेकिन जहां तक 'ओपन अनएम्प्लॉयमेंट' का सवाल है, उसका सबसे बड़ा हिस्सा युवा बेरोजगारी से ही बनता है."
कहीं बर्बाद ना हो जाए युवा शक्ति
हर साल करोड़ों युवा रोजगार के बाजार में कदम रखते हैं. ऐसे में अच्छी नौकरियों की कमी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है. देश की आबादी में युवाओं की बड़ी हिस्सेदारी को जनसांख्यिकीय लाभांश या 'डेमोग्राफिक डिविडेंड' माना जाता है, लेकिन जानकार चेताते हैं कि बेरोजगारी इस युवा शक्ति को एक बोझ में बदल सकती है.
अर्थशास्त्री प्रोफेसर अरुण कुमार कहते हैं कि उनके और उनके साथियों का अनुमान है कि देश में पहले से करीब 28 करोड़ नौकरियों की कमी है और उसमें हर साल रोजगार के बाजार में कदम रखने वाले करीब 2.4 करोड़ युवा जुड़ते हैं.
कुमार ने डीडब्ल्यू को यह भी बताया, "इसके विपरीत हर साल संगठित क्षेत्र में सिर्फ करीब पांच लाख नौकरियों का ही सृजन हो पाता है, जबकि बाकी सारी नौकरियां असंगठित क्षेत्र में हैं, जैसे किसी ने पकोड़े तल लिए, किसी ने सब्जी बेच ली, मूंगफली बेच ली, रिक्शा चला लिया, माल ढो लिया आदि."
ऐसे हालात में क्या इतनी भीषण गर्मी में अपना वोट डालने के लिए मतदान केंद्रों तक जाने वाले लोगों के मन में बेरोजगारी एक मुद्दा नहीं है? अप्रैल में नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले 62 प्रतिशत लोगों ने कहा कि नौकरी ढूंढना पहले के मुकाबले आज ज्यादा मुश्किल है.
27 प्रतिशत लोगों ने यह भी कहा कि चुनावों में किसे वोट देना है यह तय करने के लिए उनके सामने बेरोजगारी एक महत्वपूर्ण विषय है. हालांकि बीजेपी चुनावों के दौरान इस विषय से कतरा रही है. डीडब्ल्यू ने आर्थिक मामलों पर बीजेपी प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल से बेरोजगारी पर टिप्पणी के लिए अनुरोध किया, लेकिन उन्होंने हमारे सवाल का जवाब नहीं दिया.
विपक्षी पार्टियों का 'इंडिया' गठबंधन बेरोजगारी और अन्य आर्थिक और सामाजिक मुद्दों पर मतदाताओं को अपनी तरफ करने की कोशिश कर रहा है. लेकिन मतदाता किसकी सुनते हैं यह जानने के लिए दोनों ही पक्षों को चार जून का इंतजार रहेगा.