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समाज

शहर में नौकरी करने वालों के लिए गांवों में कितनी संभावना

आमिर अंसारी
१० जून २०२०

कोरोना वायरस के बाद लाखों लोगों की नौकरी चली गई और वे अब बेरोजगार हो गए हैं, शहरों से वापस जाने के बाद कुछ लोग छोटा-मोटा काम तो कर रहे हैं लेकिन जो पैसे वे शहरों में कमाते थे उतने गांव में कमाना मुश्किल है.

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Indien Symbolbild Computer Frauenhand in New Delhi mit Tastatur
तस्वीर: dapd

कोरोना वायरस ना केवल जीवन को बल्कि आजीविका को भी बहुत तेजी से प्रभावित कर रहा है. लोग शहरों की नौकरी छूट जाने के बाद गांवों में छोटा-मोटा काम कर रहे हैं. 27 साल के सतेंद्र कुमार ने निजी यूनिवर्सिटी से बैचलर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन की पढ़ाई की है. 7 सात महीने पहले उनकी नौकरी दिल्ली से सटे नोएडा में एक बिस्कुट कंपनी में लगी थी. पढ़ाई के बाद यह उनकी पहली नौकरी थी लेकिन कोरोना वायरस के भारत में फैलने के बाद हुए लॉकडाउन की वजह से कंपनी में काम बंद हो गया और उनकी नौकरी चली गई.

सतेंद्र कहते हैं, "लॉकडाउन के कारण मेरी नौकरी चली गई और मुझे मजबूरी में नोएडा से बुलंदशहर लौटना पड़ा " सतेंद्र के परिवार में माता-पिता और एक भाई हैं. वह कहते हैं, "रोजी-रोटी चलाने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा. इसलिए मैं अब मनरेगा में काम कर रहा हूं."

दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन डेवलेपमेंट के प्रोफेसर देव नाथन डीडब्ल्यू से कहते हैं, "गांवों में कमाई शहरों जितनी नहीं होती है और जिस तरह की नौकरी शहरों में मिलती है वैसी नौकरी गांवों में नहीं मिलने वाली है. शहर की तुलना में गांव की नौकरी में वेतन में भी कम होगा."

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कोरोना काल में आईटी सेक्टर पर बहुत दबाव है.तस्वीर: STR/AFP/Getty Images

गुड़गांव स्थित एक अमेरिकी कंपनी के लिए कॉल सेंटर में काम करने वाले विनोद (बदला हुआ नाम) की भी नौकरी पिछले दिनों चली गई. विनोद अब हर रोज नौकरी की तलाश करते हैं लेकिन अब तक सफलता नहीं मिली है. विनोद के साथ उनके माता-पिता के अलावा बीवी और छोटा बच्चा है. कानपुर के रहने वाले विनोद कहते हैं कि उनके लिए वापस जाना मुश्किल है क्योंकि जैसी नौकरी वे करते आए हैं, वह कानपुर में मिल पाना मुश्किल है.

प्रोफेसर देव नाथन कहते हैं कि गांवों में बस लोग खाने-पीने और जिंदा रहने तक का जरिया निकाल लेंगे लेकिन जैसी कमाई वे शहरों में करते आए हैं वह पाना बहुत मुश्किल है. उनके मुताबिक शहरों में रोजगार के अवसर तुरंत नहीं बनने वाले हैं. दूसरी ओर एक सर्वे के मुताबिक जुलाई-सितंबर तिमाही में सिर्फ 5 फीसदी कंपनियां ही नए लोगों को नौकरी पर रखने के बारे में सोच रही हैं. यह सर्वे मैनपॉवर ग्रुप ने एंप्लॉयमेंट आउटलुक को लेकर किया जिसमें 695 कंपनियां ने अपनी प्रतिक्रिया दी. देव नाथन कहते हैं कि कंपनियों का मुनाफा भी कम हुआ जिस वजह से वह अपनी लागत कम कर रही हैं और कम लोगों से ही अपना काम निकाल रही है.

दूसरी ओर हायरिंग कंपनी नौकरी डॉट कॉम के मुताबिक भारत में मई महीने में नौकरी के लिए भर्ती में 61 फीसदी की भारी गिरावट देखी गई. यह लगातार दूसरा महीना है, जब हायरिंग एक्टिविटी में 60 फीसदी से ज्यादा की गिरावट दर्ज की गई है. जॉब पोर्टल नौकरी डॉट कॉम की रिपोर्ट के मुताबिक हायरिंग में मई में गिरावट होटल, रेस्तरां, यात्रा और एयरलाइंस उद्योगों, रिटेल क्षेत्र, ऑटो क्षेत्र में नकारात्मक दर्ज की गई है.

नौकरी डॉट कॉम के चीफ बिजनेस ऑफिसर पवन गोयल के मुताबिक, "लॉकडाउन के विस्तार से लगातार तीसरे महीने नौकरी में भर्ती की गतिविधियों में गिरावट आई है." देव नाथन उम्मीद जताते हैं कि बाजार के बढ़ने के साथ ही रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे और इसमें एक से डेढ़ साल तक का वक्त लग सकता है.

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