प्रेस की आजादी, ट्वीट और राजद्रोह का मुकदमा
२९ जनवरी २०२१गणतंत्र दिवस के दिन किसानों की ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा को भड़काने का आरोप लगाते हुए छह पत्रकारों और कांग्रेस के सांसद शशि थरूर के खिलाफ उत्तर प्रदेश के नोएडा और मध्य प्रदेश के भोपाल में राजद्रोह का मुकदमा दर्ज कराया गया है. नोएडा में वरिष्ठ पत्रकारों और सांसद शशि थरूर के खिलाफ दर्ज मुकदमे में आंदोलन में हिंसा भड़काने, आपत्तिजनक और भ्रामक खबरें फैलाने का आरोप लगाया गया है. भोपाल के अलावा बैतूल जिले के मुल्ताई थाने में भी इसी संबंध एफआईआर दर्ज कराई गई है.
नोएडा के रहने वाले शिकायकर्ता ने अपनी शिकायत में कहा है कि इन लोगों ने गलत सूचना सोशल मीडिया पर डाली और दंगा भड़काने की साजिश की. नोएडा के एडिशनल डीसीपी रणविजय सिंह के मुताबिक शिकायत के आधार पर सात नामजद और एक अज्ञात के खिलाफ आईपीसी की धारा 153ए, 153बी, 295ए, 298, 504, 506, 505, 124ए, 34, 120बी और 66 आईटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी गई है. जिन लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है उनमें पत्रकार और एंकर राजदीप सरदेसाई, कांग्रेस के सांसद शशि थरूर, मृणाल पांडे, परेशनाथ, अनंतनाथ, विनोद के जोसेफ, जफर आगा और अज्ञात हैं.
इन मुकदमों के बीच एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने एक बयान जारी कर इन कार्रवाई की कड़ी निंदा की है. गिल्ड ने एफआईआर को "डराने-धमकाने, प्रताड़ित करने और दबाने" का प्रयास बताया है. साथ ही मांग की है कि एफआईआर तुरंत वापस ली जाएं और मीडिया को बिना किसी डर के आजादी के साथ रिपोर्टिंग करने की इजाजत दी जाए.
मुकदमे की निंदा
बयान में आगे कहा गया है कि एक प्रदर्शनकारी की मौत से जुड़ी घटना की रिपोर्टिंग करने, घटनाक्रम की जानकारी अपने निजी सोशल मीडिया हैंडल पर और अपने प्रकाशनों पर देने पर पत्रकारों को खासतौर पर निशाना बनाया गया है. एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि ट्वीट जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण इरादे से किए गए. हालांकि एडिटर्स गिल्ड का कहना है, "यह ध्यान रहे कि प्रदर्शन और कार्रवाई वाले दिन, घटनास्थल पर मौजूद चश्मदीदों और पुलिस की ओर से अनेक सूचनाएं मिलीं. पत्रकारों के लिए यह स्वाभाविक बात थी कि वे इन जानकारियों की रिपोर्ट करें. यह पत्रकारिता के स्थापित नियमों के अनुरूप ही था."
पत्रकारों पर राजद्रोह के मुकदमे पर बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुदेश वर्मा कहते हैं कि अगर कोई बेगुनाह है तो जांच एजेंसी के पास जाए और अपनी बेगुनाही साबित करें. वर्मा डीडब्ल्यू से कहते हैं कि दबाव की नीति काम नहीं आने वाली है और पत्रकार ने जमीन पर रहते हुए गलत सूचना दी और उसी के आधार मुकदमा दर्ज हुआ है. वे कहते हैं, "बतौर पत्रकार किसी को अतिरिक्त शक्तियां नहीं मिली हुई हैं. और उन्हें अपनी सफाई देनी होगी. यह पहली बार नहीं हुआ है कि इस तरह के ट्वीट किए गए हों. उन्हें (राजदीप सरदेसाई) घबराने की क्या जरूरत है. कोर्ट है वहां जाकर सफाई दें."
इस बीच पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक ट्वीट कर सवाल किया है कि अधिकतर मीडिया हाउस इस मुद्दे पर शांत क्यों हैं. उन्होंने राजदीप के बारे में लिखा कि मैं दंग हूं वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई के साथ क्या हो रहा है. हमें लोकतांत्रिक व्यवस्था में अपनी आवाज जरूर उठानी चाहिए. मीडिया लोकतंत्र का अहम स्तंभ है.
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के महासचिव संजय कपूर डीडब्ल्यू से कहते हैं कि वरिष्ठ पत्रकारों पर जिस तरह से राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया है वह देश में स्वतंत्र पत्रकारिता के खिलाफ हैं. उनके मुताबिक, "गणतंत्र दिवस के दिन जो हिंसा हुई, उस दिन काफी तरह की खबरें आ रही थी, उस माहौल में किसी पत्रकार ने अगर कोई ऐसा ट्वीट कर दिया जिससे सरकार इत्तिफाक नहीं करती है तो उसमें कोई खास साजिश नहीं समझा जाना चाहिए."
कपूर के मुताबिक अगर पुलिस इन पत्रकारों के खिलाफ बिना किसी पेशेवर जांच के कार्रवाई करती है तो हमारे लोकतंत्र को बहुत नुकसान होगा. जानकारों का कहना है कि यह दुर्भाग्य की बात है कि राजद्रोह से संबंधित कानून के इस लापरवाही से इस्तेमाल की सुप्रीम कोर्ट भी आलोचना कर चुका है लेकिन सरकारें इससे मुंह फेरती हैं. सिर्फ बीजेपी ही नहीं कांग्रेस की सरकार के वक्त भी इस तरह के मामले सामने आ चुके हैं. कुछ साल पहले कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी को राजद्रोह के आरोप में जेल तक जाना पड़ा था. उन्होंने अन्ना हजारे के आंदोलन के दौरान कुछ ऐसे कार्टून बनाए थे जिससे बवाल हुआ और एक शिकायत के बाद उन्हें जेल तक जाना पड़ा और राजद्रोह के मामले का सामना करना पड़ा था.
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