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समाजभारत

प्लास्टिक कचरे से निपटने की जिम्मेदारी निजी कंपनियों पर भी

१४ अक्टूबर २०२१

इन नियमों के लागू होने के बाद हर प्लास्टिक निर्माता को अब सरकार को बताना होगा कि वे साल भर में कितने प्लास्टिक का उत्पादन करेंगे और फिर इसे रिसाइकिल करने की जिम्मेदारी भी उन्हीं पर होगी.

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तस्वीर: picture-alliance/ZUMAPRESS/S. Sharma

भारत में प्लास्टिक कचरे पर लगाम लगाने के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की ओर से काफी प्रयास किए जा रहे हैं. जुलाई 2022 से प्लास्टिक के चम्मच-कांटे, प्लास्टिक स्टिक वाले इयरबड और आईसक्रीम की प्लास्टिक डंडियां भी बैन करने के फैसले के बाद अब प्लास्टिक के उत्पादकों पर भी जिम्मेदारी डालने की तैयारी है.

इसके लिए पर्यावरण मंत्रालय की ओर से ड्राफ्ट नियम जारी किए गए हैं. इन नियमों के जरिए प्लास्टिक पैकेजिंग उत्पाद बनाने वालों के लिए 2024 तक अपने कुल उत्पादन को इकट्ठा कर उसके कम से कम एक हिस्से को रिसाइकिल कर उसका बाद में इस्तेमाल अनिवार्य कर दिया गया है.

प्लास्टिक का हर संभव इस्तेमाल

इसमें एक सिस्टम का निर्धारण भी किया गया है, जहां से प्लास्टिक पैकेजिंग के उत्पादक और प्रयोगकर्ता सर्टिफिकेट ले सकते हैं. इस सिस्टम को एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पांसिबिलिटी (EPR) नाम दिया गया है. सरकारी नोटिफिकेशन में बताए गए इन नियमों के छह दिसंबर से लागू होने की उम्मीद है. अभी इन पर जनता की प्रतिक्रिया ली जा रही है.

तस्वीरों मेंः प्लास्टिक की देवी

इसमें प्लास्टिक को हर तरह से इस्तेमाल में लाए जाने की योजना है. प्लास्टिक का केवल एक हिस्सा, जिसे रिसाइकिल नहीं किया जा सकता, जैसे कई परतों वाली कई तत्वों से बनी प्लास्टिक, उसका इस्तेमाल सड़क बनाने, कचरे से ऊर्जा, कचरे से तेल और सीमेंट आदि में इस्तेमाल किया जाएगा. इस तरह का निस्तारण भी सिर्फ उन्हीं तरीकों से किया जा सकेगा, जिसकी केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड (CPBC) की ओर से अनुमति दी गई हो.

अपने प्लास्टिक उत्पादन को वापस जुटाना होगा

6 अक्टूबर को सार्वजनिक किए गए नियमों के मुताबिक प्लास्टिक पैकेजिंग की तीन कैटेगरी हैं. पहली है, 'कठोर' प्लास्टिक. दूसरी कैटेगरी की प्लास्टिक है, सिंगल या मल्टीलेयर (अलग-अलग तरह की प्लास्टिक की एक से ज्यादा परतों वाली) प्लास्टिक, जैसे- प्लास्टिक सीट या इससे बने कवर, कैरी बैग (कम्पोस्टेबल प्लास्टिक से बने बैग भी शामिल), प्लास्टिक सैशे या पाउच आदि. इसके अलावा तीसरी कैटेगरी को मल्टीलेयर्ड प्लास्टिक पैकेजिंग कहा जाता है, जिसमें कम से कम एक लेयर प्लास्टिक की होती है और कम से कम एक लेयर प्लास्टिक से इतर किसी और पदार्थ की होती है.

प्लास्टिक निर्माता सरकार को एक केंद्रीय वेबसाइट के माध्यम से यह बताने को बाध्य होंगे कि वे सालाना कितने प्लास्टिक का उत्पादन कर रहे हैं. कंपनियों के लिए 2021-22 में कुल उत्पादन के कम से कम 35 फीसदी प्लास्टिक को जुटाना जरूरी होगा. वहीं उन्हें 2022-23 में कुल उत्पादन का 70 फीसदी और 2024 तक 100 फीसदी जुटाना होगा.

रिसाइकिलिंग के महत्वाकांक्षी लक्ष्य

साल 2024 में उत्पादकों को कम से कम अपने कठोर प्लास्टिक (कैटेगरी 1) के 50 फीसदी को रिसाइकिल करना होगा जबकि कैटेगरी 2 और 3 के लिए कम से कम रिसाइकिल सीमा 30 फीसदी रहेगी. हर साल इन लक्ष्यों को धीरे-धीरे बढ़ाया जाएगा और साल 2026-27 के बाद कैटेगरी 1 की 80 फीसदी और अन्य कैटेगरी की 60 फीसदी प्लास्टिक को रिसाइकिल किये जाने की जरूरत होगी.

अगर कंपनियां अपने दायित्वों को पूरा नहीं कर सकीं तो उन्हें मामले दर मामले के हिसाब से उन संगठनों से सर्टिफिकेट खरीदने की छूट होगी, जो अपने लिए निर्धारित लक्ष्यों से ज्यादा कचरे को रिसाइकिल कर चुके हैं. केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल ब्यूरो ऑनलाइन पोर्टल पर ऐसे लेन-देन के लिए एक तंत्र का निर्माण करेगा. नियमों को न मामने पर सीधे जुर्माना नहीं देना होगा बल्कि एक पर्यावरणीय मुआवजा देना होगा. हालांकि अभी नियमों में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि मुआवजा कितना होगा.

संगठित होगी रिसाइकिलिंग की प्रक्रिया

ऑल इंडिया प्लास्टिक मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष किशोर पी संपत के मुताबिक इन नियमों पर लंबे समय से सरकार और प्लास्टिक उद्योग के बीच चर्चा हो रही थी. सरकार की ओर से लंबे समय से इन प्लास्टिक उद्योगों को खुद को नई तरह से ढालने की हिदायत दी गई थी. एक बार इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक, इस उद्योग का बहुत छोटा हिस्सा है और अब समय आ गया है कि वे भी अन्य तरह के प्लास्टिक बनाकर अपने उद्योग को बचाने की कोशिश करें.

जैविक कचरे से प्लास्टिक बनाया

भारत में छोटे पाउच और सैशे जैसे कचरे को इकट्ठा करने में आने वाली परेशानियों के बारे में उन्होंने कहा, "ऐसे कचरे को इकट्ठा कर पाना हमेशा एक चुनौती रहेगा. भारत के पास अभी ऐसे कचरे के प्रबंधन के लिए मूलभूत सुविधाएं नहीं है लेकिन कहीं से तो शुरुआत करनी है. मुझे लगता है कि यह अच्छी शुरुआत है. इसके लिए कंपोस्टेबल प्लास्टिक पैकेजिंग भी एक तरीका है. जिसे भारतीय उपभोक्ताओं की छोटी-छोटी पैकिंग की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए पर्यावरण को ध्यान में रखकर डिजाइन किया जा रहा है. इसका निस्तारण आसान होता है."

किशोर पी संपत दावा करते हैं कि भारत में अब भी करीब 70 फीसदी प्लास्टिक उत्पादों की रिसाइकिलिंग हो जाती है. वह कहते हैं, "इस पूरी प्रक्रिया में कचरा बीनने वालों की जगह अहम है, जो प्लास्टिक उत्पादों को अन्य कूड़े से अलग करके छांट लेते हैं." जानकार अब इस प्रक्रिया के संगठित हो जाने और इससे प्रक्रिया में शामिल लोगों के स्वास्थ्य पर होने वाले गंभीर प्रभावों के कम होने की उम्मीद भी की जा रही है.

नारियल पानी से बनाया प्लास्टिक