त्रिपुरा में भयानक बाढ़, बांग्लादेश से विवाद भी बढ़ा
२४ अगस्त २०२४अधिकारियों का कहना है कि बाढ़ की वजह से एक लाख से ज्यादा लोग बेघर हो गए हैं. बचाव कार्यों के लिए हेलीकॉप्टरों का भी इस्तेमाल किया जा रहा है. राष्ट्रीय और राज्य आपदा प्रबंधन की टीमों के अलावा असम राइफल्स के जवान भी राहत और बचाव कार्य में जुटे हैं.
दूसरी ओर, बांग्लादेश ने त्रिपुरा में गोमती पनबिजली परियोजना पर बने डंबूर बैराज का गेट खोले जाने के कारण अपने कई इलाकों के डूबने का आरोप लगाया है. हालांकि केंद्र और राज्य सरकार ने इस आरोप का खंडन किया है.
पनबजिली परियोजनाओं के जलाशयों से पानी छोड़ने के कारण दूसरे देशों के विस्तृत इलाकों के डूबने की समस्या और आरोप पुराने हैं. हर साल नेपाल से पानी छोड़ने के कारण बिहार के कई इलाकों के डूबने का आरोप लगता रहा है. इसी तरह, बांग्लादेश भी फरक्का और गाजोलडोबा जलाशयों से पानी छोड़े जाने के कारण देश के कई इलाकों के डूबने का आरोप लगाता रहा है.
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बाढ़ से भारी तबाही
त्रिपुरा के बिजली मंत्री रतन लाल नाथ डीडब्ल्यू से कहते हैं, "इस सप्ताह दक्षिण त्रिपुरा में एक ही दिन में 288.8 मिमी बारिश रिकॉर्ड की गई है. राजधानी अगरतला में भी 24 घंटों के दौरान 233 मिमी बारिश हुई है. इसकी वजह से खोवाई, वेस्ट त्रिपुरा, सिपाहीजाला, गोमती और दक्षिण त्रिपुरा के विस्तृत इलाके भयावह बाढ़ से जूझ रहे हैं."
उन्होंने बताया कि बाढ़ से अब तक 23 लोगों की मौत की खबर है. इनमें से दस लोगों की मौत जमीन धंसने के कारण मलबे में दबने से हुई है. मुख्यमंत्री मानिक साहा ने बाढ़ग्रस्त इलाको के हवाई सर्वेक्षण के बाद मृतकों के परिजनों को 10-10 लाख रुपए की आर्थिक सहायता देने का एलान किया है.
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आपदा प्रबंधन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि फिलहाल राज्य के करीब साढ़े चार सौ राहत शिविरों में 65 हजार से ज्यादा लोग रह रहे हैं. मुख्यमंत्री ने कुछ राहत शिविरों का भी दौरा किया है. इस बीच, केंद्र सरकार ने राहत व बचाव कार्यो के लिए त्रिपुरा को 40 करोड़ रुपए की सहायता दी है.
सरकारी अधिकारियों का कहना है कि गोमती, पेनी, मुहुरी और खोवाई समेत राज्य की तमाम नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं. शुक्रवार रात से बारिश कम होने के कारण कुछ इलाको में हालत में मामूली सुधार है. लेकिन कुल मिला कर बाढ़ की परिस्थिति अब भी गंभीर बनी हुई है.
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बांग्लादेश से विवाद
बांग्लादेश ने आरोप लगाया है कि त्रिपुरा के गोमती जिले में 14 मेगावाट क्षमता वाली पनबिजली परियोजना से पानी छोड़े जाने की वजह से बांग्लादेश में कुमिल्ला, चटगांव, नोआखाली और मौलवीबाजार जिलों के दर्जनों गांव पानी में डूब गए हैं. इससे करीब 18 लाख लोगों के प्रभावित होने का दावा किया गया है. दरअसल, बीते तीन दिनों से सोशल मीडिया पर ऐसी खबरें चल रही थी कि डंबूर बैराज से भारी मात्रा में पानी छोड़ने के कारण ही बांग्लादेश के कई इलाके बाढ़ की चपेट में है. लेकिन भारतीय विदेश मंत्रालय और त्रिपुरा सरकार ने इनका खंडन किया है.
बिजली मंत्री रतन लाल नाथ ने कहा है कि बैराज का कोई गेट नहीं खोला गया है. इस पनबिजली परियोजना के तहत बने जलाशय की भंडारण क्षमता 94 मीटर है. जलस्तर बढ़ने पर पानी स्वचालित रूप से बाहर निकल जाता है. जलस्तर घटते ही पानी का प्रवाह रुक जाता है. यह परियोजना गोमती जिले में गोमती नदी पर बनी है. यहां बनने वाली बिजली में 40 मेगावाट बांग्लादेश को भी सप्लाई की जाती है. मंत्री का कहना था कि गोमती नदी दोनों देशों में बहती है. नदी के निचले इलाकों में बीते कई दिनों से लगातार होने वाली भारी बारिश ही बांग्लादेश में आई बाढ़ की प्रमुख वजह है.
अर्ली वार्निंग सिस्टम की जरूरत
नदी विशेषज्ञों का कहना है कि बैराज से पानी छोड़े के कारण आने वाली बाढ़ पर विवाद नया नहीं है. बांग्लादेश हर साल पश्चिम बंगाल के फरक्का के अलावा त्रिपुरा के डंबूर बैराज से पानी छोड़ने के कारण बाढ़ के आरोप लगाता रहा है. पश्चिम बंगाल के नदी विशेषज्ञ राजू बसु डीडब्ल्यू से कहते हैं, "नेपाल और बिहार के मामले में हम यह देखते रहे हैं. इनमें कुछ हद तक सच्चाई हो सकती है. लेकिन बारिश के सीजन में रिकॉर्ड बारिश होने की स्थिति में बैराज से पानी छोड़ना भी जरूरी है. ऐसा नहीं करने की स्थिति में बैराज के टूटने और संबंधित इलाके में विनाशकारी बाढ़ का खतरा पैदा हो सकता है."
त्रिपुरा के नदी और पर्यावरण कार्यकर्ता सुनील नाथ डीडब्ल्यू से कहते हैं, "बांग्लादेश में बाढ़ की प्रमुख वजह उसकी भौगोलिक स्थिति है. उसकी जमीन भारत के मुकाबले निचले इलाकों में स्थित है. गोमती, तीस्ता और गंगा समेत ज्यादातर नदियां भारत से बांग्लादेश में प्रवेश करती हैं. इन नदियों के उद्गम स्थल और बेसिन में भारी बारिश के कारण उनका जलस्तर काफी बढ़ जाता है. ऐसे में भारत के मुकाबले बांग्लादेश के निचले सीमावर्ती इलाकों का बाढ़ की चपेट में आना स्वाभाविक है."
क्या ऐसी आपदा से बचने का कोई ठोस उपाय है? नदी विशेषज्ञों का कहना है कि बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा पर पूरी तरह अंकुश लगाना तो संभव नहीं है. लेकिन एक कारगर अर्ली वार्निंग सिस्टम के जरिए समय रहते लोगों को सतर्क कर जान-माल के नुकसान को काफी हद तक कम जरूर किया जा सकता है.