मजदूरों की मजबूरी को नहीं पिघला पा रही है गर्मी
१७ मई २०२२दिल्ली में बन रही एक इमारत में मजूदरी कर रहे योगेंद्र टुंड्रे हांफ चुके हैं. धूल से लथपथ उनके चेहरे से पसीने के साथ-साथ थकान और बेबसी भी टपक रही है. लेकिन, उनकी हिम्मत का जवाब नहीं. वह काम नहीं रोक रहे हैं. दिल्ली की रिकॉर्ड तोड़ गर्मी उनकी हिम्मत को नहीं पिघला पा रही है. पर उनके शरीर की सीमाएं हैं.
उत्तर भारत में गर्मी के सारे रिकॉर्ड टूट रहे हैं. पिछले करीब डेढ़ महीने से जारी लू ने घर और बाहर हर तरफ कहर बरपाया हुआ है. लोगों की रोजमर्रा की गतिविधियां प्रभावित हुई हैं. लेकिन योगेंद्र और उन जैसे हजारों मजदूरों के पास काम जारी रखने के अलावा कोई चारा नहीं है. योगेंद्र टुंड्रे कहते हैं, "गर्मी तो बहुत है, लेकिन काम नहीं करेंगे, तो खाएंगे क्या? अब कुछ देर काम करते हैं. फिर जब थक जाते हैं, तो कुछ देर छांव में बैठ जाते हैं.”
सारे रिकॉर्ड ध्वस्त
रविवार को दिल्ली के कुछ इलाकों में तापमान 49 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंच गया था, जो अब तक का सर्वाधिक है. जानकार इसे स्थानीय इलाकों में गर्मी की लहर का असर भी बता रहे हैं, क्योंकि राष्ट्रीय राजधानी के दूसरे मौसम स्टेशनों पर पारा इससे कम दर्ज किया गया. जहां दिल्ली के मंगेशपुर में तापमान 49.2 और नजफगढ़ में 49.1 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया, वहीं सफदरजंग स्थित दिल्ली के मुख्य मौसम स्टेशन में 45.6 डिग्री तापमान दर्ज किया गया.
इस गर्मी के कारण टुंड्रे और उनकी पत्नी लता की तबीयत खराब हो रही है. लता भी उसी निर्माण स्थल पर मजदूरी करती हैं. वह बताती हैं, "गर्मी के कारण कई बार मैं काम पर नहीं जा पाती. बीमार हो जाती हूं. डिहाइड्रेशन हो जाता है, तो ग्लूकोस चढ़वाना पड़ता है.”
मार्च महीना भारत के लिए 100 साल में अब तक का सबसे गर्म महीना था. उसके बाद अप्रैल ने भी तापमान की नई ऊंचाइयां देखीं. दिल्ली में कई जगह तापमान अप्रैल में ही 40 के पार पहुंच गया. हीट स्ट्रोक और अन्य कारणों से अब तक दो महीने में 20 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. इस गर्मी के कारण बिजली की मांग भी बहुत ज्यादा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य सरकारों को भयानक गर्मी से निपटने के लिए कदम उठाने को कहा है.
कोई सुरक्षा नहीं
वैज्ञानिकों ने भारत में पड़ रही इस भीषण गर्मी को जलवायु परिवर्तन का ही नतीजा बताया है. उनका कहना है कि भारत और पाकिस्तान के लोगों को फिलहाल राहत के आसार नजर नहीं आ रहे हैं. वैज्ञानिकों ने कहा है कि आने वाले शुक्रवार से गर्मी एक बार फिर बढ़ जाएगी. यही बात टुंड्रे और उनकी पत्नी को डरा रही है. नोएडा में एक झुग्गी बस्ती में अपने दो बच्चों के साथ रहने वाले इस परिवार के पास इस गर्मी से बचने का कोई विकल्प नहीं है. उन्हें काम भी करना है और बिना बिजली के गर्मी भी झेलनी है.
लता बताती हैं कि काम खत्म होने के बाद भी गर्मी से राहत नहीं मिलती है, क्योंकि घर में कोई सुविधा तो है नहीं. बल्कि दिनभर तपने के बाद टीन की छत की उनकी झोपड़ी रात को भट्ठी की तरह गर्म हो जाती है.
शहरी पर्यावरण पर शोध करने वाले सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायर्नमेंट के अविकल सोमवंशी कहते हैं कि केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक पिछले 20 साल में बिजली गिरने के बाद सबसे ज्यादा प्राकृति आपदाओं से मौतें गर्मी से ही हुई हैं. सोमवंशी कहते हैं, "मरने वाले ज्यादातर लोग 30-45 साल के पुरुष थे. वे मजदूर वर्ग के पुरुष थे, जिन्हें भीषण गर्मी में खुले आसमान के नीचे तपती धूप में काम करना पड़ता है.”
सोमवंशी बताते हैं कि कुछ मध्य पूर्व देशों में ऐसे कानून हैं, जो भीषण गर्मी के वक्त मजदूरों को धूप में काम कराने पर रोक लगाते हैं, लेकिन भारत के मजदूरों के लिए ऐसे कोई कानून उपलब्ध नहीं हैं.
वीके/एए (रॉयटर्स)