यूपी सरकार ने सवा करोड़ लोगों को रोजगार देने की घोषणा की
२६ जून २०२०किसी भी राज्य में इतने बड़े पैमाने पर रोजगार मुहैया कराने संबंधी यह पहली योजना है. हालांकि सवाल यह भी उठाए जा रहे हैं कि सरकार यह दावा तो कर रही है लेकिन यह स्पष्ट नहीं कर रही है कि ये रोजगार किन्हें दिए जा रहे हैं. यहां तक कि राज्य सरकार के अधिकारियों तक के पास इसके कोई सटीक जवाब नहीं हैं.
कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसा करने के लिए राज्य सरकार और खासकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तारीफ की. उन्होंने कहा, "सवा करोड़ कामगारों की पहचान करना, 30 लाख से ज्यादा श्रमिकों के कौशल का, अनुभव का डाटा तैयार करना और उनके रोजगार की समुचित व्यवस्था करना, ये दिखाता है कि उत्तर प्रदेश सरकार की तैयारी कितनी सघन रही है, कितनी व्यापक रही है.”
कहां दी जाएंगी नौकरियां
जहां तक रोजगार देने का सवाल है तो सरकार के मुताबिक, "इसमें से करीब 60 लाख लोगों को गांव के विकास से जुड़ी योजनाओं में और करीब 40 लाख लोगों को छोटे उद्योगों यानि एमएसएमई में रोजगार दिया जा रहा है. इसके अलावा स्वरोजगार के लिए हजारों उद्यमियों को मुद्रा योजना के तहत करीब 10 हजार करोड़ रुपए का ऋण आवंटित किया गया है.”
राज्य सरकार के अपर मुख्य सचिव अवनीश अवस्थी के मुताबिक, इसमें तीन प्रकार के रोजगार कार्यक्रम को शामिल किया गया है. पहला- केंद्र का आत्मनिर्भर भारत रोजगार कार्यक्रम, जिसमें वे लोग शामिल हैं, जिन लोगों को इस कार्यक्रम के जरिए रोजगार दिया गया. दूसरा- एमएसएमई सेक्टर में जिन लोगों को नौकरी मिली है और सरकार ने जिन औद्योगिक संगठनों के साथ एमओयू साइन किया है और तीसरा- स्वतः रोजगार का है जिसमें वे लोग होंगे, जिसमें उनके उद्यम के लिए बैंकों से कर्ज दिलाकर उनके रोजगार को शुरू कराया गया है.
बताया जा रहा है कि अकेले मनरेगा के तहत साठ लाख से ज्यादा श्रमिक काम शुरू करेंगे जिसमें इन श्रमिकों को सड़क, ग्रामीण आवास, बागवानी, जल संरक्षण, आंगनबाड़ी और जल जीवन मिशन आदि से जुड़े करीब 25 तरह के कामों में लगाया जाएगा. इसके अलावा प्रदेश में स्किल मैपिंग का डेटा तैयार होने के साथ ही मजदूरों को एमएसएमई, उद्योगों और कंपनियों में भी बड़े स्तर पर रोजगार के अवसर दिए जाएंगे. पिछले दिनों यूपी में करीब 35 लाख श्रमिक अन्य राज्यों से लौटे हैं. इन श्रमिकों का समायोजन सरकार इन क्षेत्रों में उनकी योग्यता के अनुसार करेगी.
आत्मनिर्भर उत्तर प्रदेश रोजगार अभियान के तहत प्रदेश के 31 जिलों को शामिल किया गया हैं, जहां बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर लौटे हैं. इन जिलों के 18 वर्ष की उम्र के बच्चों को छोड़कर अब तक 30 लाख से ज्यादा मजदूरों की स्किल स्कैनिंग की गई है जिन्हें इस अभियान के तहत रोजगार दिया जाएगा. सरकार का दावा है कि प्रदेश में अनलॉक के बाद सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्यम से जुड़े करीब आठ लाख उद्योगों को दोबारा शुरू किया गया है. यही नहीं, सरकार उन लोगों को भी इस रोजगार योजना में शामिल कर रही है जिन्हें कर्ज, उपकरण खरीदने या फिर इस तरह की कोई मदद की गई है.
उत्तर प्रदेश के औद्योगिक विकास मंत्री सतीश महाना कहते हैं कि पिछले तीन महीनों के दौरान 58 लाख लोगों को मनरेगा में जॉब दिया गया. उनके मुताबिक, लॉकडाउन खुलने के बाद जो उद्योग खोले गए हैं उनमें पचास लाख से ज्यादा मजदूरों को यूपी में ही रोजगार मिला हैं. इसके अलावा पूर्वांचल और बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे के निर्माण में भी सरकार ने हजारों लोगों को रोजगार दिया है.
सरकार का दावा है कि कि कुछ कंपनियों के साथ करीब 11 लाख श्रमिकों को रोजगार देने संबंधी एमओयू भी साइन किए गए हैं और रोजगार दिए भी जा चुके हैं. इसके अलावा सरकार की अन्य योजनाओं में भी 20 लाख से अधिक श्रमिकों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए गए हैं.
विपक्ष इसे कैसे देख रहा है
प्रधानमंत्री आज जब इस रोजगार योजना की शुरुआत कर रहे थे तो उन्होंने इसी तरह रोजगार पाए कुछ लोगों से बात भी की. इनमें से कुछ राजमिस्त्री थे तो कोई फूलों की नर्सरी का काम कर है या फिर इसी तरह का कोई और रोजगार. विपक्षी दल सरकार की इस रोजगार नीति का न सिर्फ मखौल उड़ा रहे हैं बल्कि इसे सिर्फ आंकड़ों का खेल बताते हुए लोगों की विवशता का मजाक उड़ाना भी बता रहे हैं.
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने तंज कसते हुए एक ट्वीट किया है कि सरकार तो रोजगार दे रही है लेकिन रोजगार पाए हुए लोग जमीन पर नहीं दिख रहे हैं.
कांग्रेस पार्टी के नेता द्विजेंद्र त्रिपाठी कहते हैं कि बीजेपी सरकार के लिए तो पकौड़ा तलना भी रोजगार है, इसलिए जो भी काम-धाम करके अपना पेट पाल रहा है, उन सबको रोजगार देने का श्रेय सरकार ले रही है. त्रिपाठी कहते हैं, "यूपी में बड़ी-बड़ी कंपनियां बंद होती जा रही हैं. उद्योग जगत की हालत सिर्फ कागज पर ही अच्छी है. जगह-जगह के स्थानीय उद्योगों को खत्म कर दिया गया चाहे वह मुरादाबाद का पीतल उद्योग हो, कानपुर का चमड़ा उद्योग हो या फिर और हों. ये रोजगार देने की बजाय रोजगार छीन रहे हैं.”
कैसा है शहरों से लौटे कामगारों का अनुभव
वहीं मनरेगा में सरकार काम भले ही दे रही है लेकिन कई पढ़े-लिखे लोग इसे अपमानजनक समझ रहे हैं और मनरेगा में काम करने से इनकार कर रहे हैं. दिल्ली में कोरियर का अच्छा व्यवसाय कर रहे दिलीप श्रीवास्तव इन दिनों प्रतापगढ़ में अपने गांव आ गए हैं. वो कहते हैं, "लॉकडाउन ने बेरोजगार ही नहीं कर दिया बल्कि जो कुछ जमा-पूंजी थी वो भी खत्म हो गई. परिवार के लिए काम तो करना ही है. सरकार काम दे रही, लेकिन मनरेगा में. मनरेगा में तो हम जैसों से काम नहीं हो पाएगा. इंतजार कर रहे हैं कि स्थिति सुधरे तो फिर कुछ काम करें. सरकार की इस रोजगार नीति पर हमारा कोई भरोसा नहीं है.”
यही नहीं, कई गांवों में मनरेगा में भी सभी को काम नहीं मिल पा रहा है. नोएडा में एक गारमेंट फैक्ट्री के मालिक सुधीर चड्ढा कहते हैं कि सरकार कुटीर उद्योग को बढ़ावा देना चाह रही है जिसमें ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार मिल सके लेकिन यह कह देना आसान है, जमीन पर उतारना बहुत मुश्किल है.
वो कहते हैं, "अभी स्थिति यह है कि रोजगार के नाम पर तुरंत नए उद्योग लगाने की बात होने लगती है, जबकि जो उद्योग पहले से चल रहे हैं जब तक सरकार उनको मजबूत करने पर ध्यान नहीं देगी तब तक जमीनी स्तर पर कुछ भी होना संभव नहीं है. यूपी में लगभग साढ़े 6 करोड़ छोटे उद्योग हैं. पहले सरकार उन पर ध्यान दे.”
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