पर्यावरण संरक्षण के लिए लड़ते मूलनिवासी समुदाय
११ अगस्त २०२३दुनिया भर में मूलनिवासी समुदाय अपने मानवाधिकारों और संस्कृति के साथ साथ प्रकृति और अपनी जन्मभूमि की हिफाजत कर रहे हैं. बार बार उन पर बड़े पैमाने पर अत्याचार होता है, उनसे भेदभाव किया जाता है और वे नस्लवाद का शिकार बनते हैं. पूरी दुनिया में उनकी करीब आधा अरब की आबादी है. अपने अधिकारों की हिफाजत की उनकी लड़ाई अक्सर बेहतर पर्यावरण और जलवायुबचाने की लड़ाई भी बन जाती है. लेकिन इसकी कीमत उन्हें अपनी जान देकर भी चुकानी पड़ती है.
2012 से 2021 के बीच, मानवाधिकार समूहों और संगठनों ने करीब 60 देशों में पर्यावरण और अपनी जमीनों को बचाने में 1700 से ज्यादा लोगों की मौत का आंकड़ा दर्ज किया है. पर्यावरण और मानवाधिकार संगठन ग्लोबल विटनेस के जुटाए एक डाटा के मुताबिक मारे गए 35 फीसदी से ज्यादा लोगों की शिनाख्त मूलनिवासियों के रूप में हुई है.
संघर्ष के केंद्र में अक्सर खनन, खेती के लिए जंगलों की कटाई, जलाशय वाले बांध और तेल, गैस और कोयले की निकासी जैसी प्रमुख परियोजनाएं रही हैं.
ऑस्ट्रेलिया के प्रथम राष्ट्रीय निवासी
जगालिंगोउ जनजाति के सांस्कृतिक अभिभावक आद्रिया बुरागुब्बा ने डीडब्ल्यू को बताया, "हमारे जन इस महाद्वीप पर 60,000 साल से भी ज्यादा समय से रहते आए." जगालिंगोउ, ऑस्ट्रेलिया की एक आदिवासी जनजाति है. ऑस्ट्रेलियाई प्रांत क्वीन्सलैंड में भारत के अडानी कॉरपोरेशन के स्वामित्व वाली कारमाइकल कोयला खदान के निर्माण के खिलाफ इस जनजाति ने संघर्ष छेड़ा था. आखिरकार उनकी हार हुई. ऑस्ट्रेलिया में राजनीतिक मुद्दा बन जानेवाली कोयला खदान ने प्रचंड विरोध के बीच 2021 में उत्पादन शुरू कर दिया.
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, खनन से भूमिगत झरनों के सूखने की नौबत आ सकती है. मूलनिवासियों के लिए ये झरने पवित्र होते हैं और स्थानीय पर्यावरण के अस्तित्व के लिए अनिवार्य. बारागुब्बा के मुताबिक दिन रात हवा, ध्वनि और प्रकाश का प्रदूषण भी समस्याओं में शामिल है. खनन का कीटों की संख्या पर भी असर पड़ता है. इस नाते समूचा ईकोसिस्टम प्रभावित होता है.
निर्माण से पहले ही एक्टिविस्टों ने स्थानीय पर्यावरण और मशहूर ग्रेट बैरियर रीफ को होने वाले नुकसान को लेकर आगाह कर दिया था. आशंका थी कि रीफ के नजदीक अतिरिक्त समुद्री ट्रैफिक उस संवेदनशील और नाजुक ईकोसिस्टम को और ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है. इसके अलावा जलवायु भी प्रभावित हुई थी. रीफ के अधिकांश हिस्से पहले की खत्म हो चुके हैं, उसकी आंशिक वजह ग्लोबल वॉर्मिग है. खदान की मियाद 60 साल आंकी गई है. वैश्विक तापमान को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक लाने के लिए इंसानो के पास अभी भी उपलब्ध कुल कार्बन डाइऑक्साइड में से करीब दो फीसदी गैस का उत्सर्जन, ये खदान अपने जीवनकाल में कर सकती है.
अणीर कनाडा के नौ लाख गरीब मूलनिवासी
उपनिवेशीकरण के दौर से, ऑस्ट्रेलिया के मूलनिवासी समुदाय नस्लवाद और भेदभाव से पीड़ित रहे हैं. बारागुब्बा कहते हैं कि अगर उनकी मूल जमीन उन्हें वापस नहीं मिली तो जगालिंगाऊ जनजाति, सरकार को कम से कम उसी के खेल में मात देने की कोशिश तो कर ही सकती है, खासकर मानवाधिकारों के इस्तेमाल के जरिए. वे अभी भी खनन क्षेत्र के करीब अपने पवित्र स्थलों का दौरा करते हैं और अपने पारंपरिक जलसे करते हैं.
बारागुब्बा कहते हैं, "हमने कब्जा ले लिया है." उनके मुताबिक अपने धार्मिक दस्तूर निभाना बुनियादी मानवाधिकार हैः ऐसा करने से उन्हें कोई नहीं रोक सकता.
लाखों लोग चुकाते हैं फिलीपींस के सोने की कीमत
दूसरा हॉटस्पॉट है फिलीपींस का पूर्वोत्तर इलाका जहां ऑस्ट्रेलिया की खनन कंपनी ओशनोगल्ड के पास एक सोने और तांबे की खान है. 2023 के पहले हाफ में, इस डिडिपिओ खदान से 65241 आउंस सोना और 6911 टन तांबा निकाला गया. खनन में अक्सर आर्सेनिक और मरकरी जैसे विषैले रसायनो का इस्तेमाल किया जाता है. 2019 में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में खदान के आसपास खत्म होते पेड़ों और खनन गतिविधि से कथित रूप से दूषित पानी के बीच सहसंबंध दिखाया गया था.
मानवाधिकारों से लेकर सुरक्षित पेयजल और साफ सफाई के लिए संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत पेद्रो अरोखो-अगुदो कहते हैं कि सालों से डिडिपिओ नदी के पास रहने वाले मूलनिवासी समुदाय अपनी जन्मभूमि पर रहने के हक के लिए लड़ते आ रहे हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि जमीन, जंगल, नदी और अंततः पीने के पानी को महफूज रखने में इन समुदायों की सहज दिलचस्पी रही है. अगुदो का कहना है, "भारी धातुओं की समस्या ये है कि जब आप उनसे दूषित हुआ पानी पीते हैं तो आपको अहसास नहीं होता कि वो खतरनाक है. तो ये दशकों तक लोगों के शरीर में जहर भरते जाने की एक सतत प्रक्रिया जैसी है."
पिछले दो साल के दौरान, स्थानीय मूलनिवासी समूहों ने लगातार विरोध प्रदर्शन किए. उनमें से कुछ आंदोलनों को पुलिस और सेना ने बुरी तरह कुचल दिया. अरोखो-अगुदो के मुताबिक गिरफ्तारियां हुई और लोग बेदखल भी हुए. वे हालात पर नजर रखे हुए हैं.
आगे चलकर, पानी में फैला प्रदूषण ऊपरी इलाकों में ना सिर्फ "व्यापक और बहुत गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं" खड़ी करेगा बल्कि नीचे रहने वाले लाखों लोग, नदी के बेसिन के दायरे में रहने वाले तमाम लोग भी प्रभावित होंगे. संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न विशेषज्ञों ने फिलीपीनी सरकार से आर्थिक हितों की खातिर मूलनिवासी समुदायों के साथ भेदभाव नहीं करने का आग्रह किया है. ओशनागोल्ड कंपनी का खनन लायसेंस 2019 में एक्सपायर हो गया था लेकिन उसे 2021 में फिर 25 साल के लिए रिन्यू कर दिया गया.
खतरे में घिरे अमेजन जंगल के रखवाले
"धरती का हरा फेफड़ा" कहा जाने वाला अमेजन वन, नौ देशों मे फैला हुआ है. यह विशालकाय जंगल दुनिया के सबसे ज्यादा जैवविविध इलाकों मे से एक है. ये 15 लाख से ज्यादा मूलनिवासी समुदायों का घर भी है जिसमें 380 से ज्यादा जातीय समूह शामिल हैं. उन्हें जंगल का संरक्षक या रखवाला भी कहा जाता है. उस जंगल का जो हाल के दशकों में, पेड़ों की कानूनी और गैरकानूनी कटाई, नशे की तस्करी, विकास परियोजनाओं, खेती और भ्रष्टाचार के चलते नाटकीय तौर पर सिकुड़ चुका है.
चाहे अवैध विस्थापन हो या मौजूदा कानूनों को लागू नहीं कर पाने की अधिकारियों की अक्षमता- हर स्थिति में मूलनिवासी समुदायों के लोग ड्रग कार्टलों, सेना, निजी कंपनियों के सुरक्षाकर्मियों, मिलीशिया और गोरिल्लों की आपसी गोलीबारी में अकसर फंस जाते हैं.
ब्राजील में 13 साल में दोगुने हुए मूलनिवासी लेकिन कैसे?
इलाके के दो देश, कोलंबिया और ब्राजील दुनिया भर में मूलनिवासी संरक्षणवादियों की हत्या वाले देशों की सूची में शीर्ष पर हैं. पूरी दुनिया में ऐसी हत्याओं के स्याह आंकड़े बढ़ते ही जा रहे हैं, लेकिन इन दो देशों में हत्याओं की संख्या में बढ़ोतरी, मामलों को दर्ज करने की प्रक्रिया में आए सुधार की वजह से भी दिखती है.
अमेजन की बर्बादी की वजह से मूलनिवासी लोग, नई जगहों पर जा बसने और अपनी पारंपरिक जीवनशैली को छोड़ने पर मजबूर हुए हैं. जलवायु पर भी इसका नकारात्मक असर पड़ा है. ब्राजीली विज्ञान एकेडमी की सदस्य जीवविज्ञानी मर्सीडीस बुस्तामांते कहती हैं, "वे लोग वन संरक्षण में ही नहीं बल्कि जंगलों की बहाली में भी अहम भूमिका निभाते हैं."
"ब्राजील और दक्षिण अमेरिका के दूसरे हिस्सों में भी, मूलनिवासी समुदायों की जमीन पर जंगलों की कटाई की दर सबसे कम है. उनके पास वो ज्ञान है, वो पारंपरिक ज्ञान कि जंगलों से कैसे कुछ लेना है और कैसे उसे बचाए भी रखना है."
कोलंबिया में मूलनिवासी जेनु समुदाय के सदस्य और मूलनिवासी मामलों में संयुक्त राष्ट्र के स्थायी मंच में चेयर, दारियो मेखिया मोंताल्वो ने डीडब्ल्यू को बताया कि मूलनिवासी समुदायों ने इंसानों और प्रकृति के बीच के रिश्ते को अलग ढंग से परिभाषित किया है. उनका वैल्यू सिस्टम अलग था. दुनिया के बारे में नजरिया अलग था. जिसमें तमाम जीवित प्राणी, नदियां, पहाड़, सब शामिल थे. इसीलिए मनुष्य और प्रकृति के बीच एक नाता और सहअस्तित्व, उनके भूभागों में मुमकिन हो पाता था.