चीन ‘जलवायु नायक’ है या ‘जीवाश्म ईंधन खलनायक’ ?
८ दिसम्बर २०२३सितंबर की शुरुआत में जब टाइफून हाइकुई पूर्वी एशिया के कुछ हिस्सों में फैल गया, तो चीन के फुजियान तट पर स्थित पवन टरबाइन के 123-मीटर लंबे विशालकाय ब्लेड तेजी से घूमने लगे. इनके घूमने से टरबाइन ने इतनी बिजली पैदा की जो कि करीब एक लाख सत्तर हजार घरों को बिजली देने के लिए पर्याप्त थी. इसके अलावा, यह एक टरबाइन द्वारा एक ही दिन में उत्पादित अब तक की सबसे अधिक बिजली भी थी.
निर्माता गोल्डविंड की यह टरबाइन जून महीने में ऑनलाइन होने के बाद धरती पर मौजूद सबसे बड़ी टरबाइन थी, लेकिन कुछ ही हफ्तों बाद चीन में ही निर्मित एक और विशाल संरचना ने इस मामले में इसे पीछे छोड़ दिया. दरअसल, दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला यह देश चीन, दुनिया के कुछ सबसे बड़े सौर ऊर्जा संयंत्रों समेत तमाम बड़ी नवीकरणीय परियोजनाओं का घर भी है.
लेकिन ऐसा नहीं है कि चीन की ये हरित ऊर्जा परियोजनाएं सिर्फ अपने आकार के मामले में ही प्रभावशाली हैं. वित्तीय बाजार डेटा प्रदाता कंपनी रीफिनिटिव के प्रमुख विश्लेषक यान किन कहते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में देश में नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में भी भारी बढ़ोत्तरी देखी गई है.
अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के मुताबिक साल 2022 में दुनिया की नई सौर, पवन और जलविद्युत क्षमता का करीब आधा हिस्सा चीन में ही मौजूद था.
डीडब्ल्यू से बातचीत में ऑक्सफर्ड इंस्टिट्यूट फॉर एनर्जी स्टडीज में शोध सहयोगी यान किन कहते हैं, "चीन का बिजली क्षेत्र बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है. इसकी नवीकरणीय ऊर्जा की वृद्धि शानदार है.”
लेकिन नवीकरणीय ऊर्जा में अपनी वैश्विक बढ़त के बावजूद, चीन दुनिया में जलवायु को नुकसान पहुंचाने वाली ग्रीनहाउस गैसों का सबसे बड़ा उत्सर्जक भी है क्योंकि चीन में अभी भी बड़े पैमाने पर जीवाश्म ईंधन जलाया जा रहा है. इसकी लगभग 81 फीसद प्राथमिक ऊर्जा कोयले, तेल या गैस से आती है और देश में ग्रीन हाउस गैसों का जो उत्सर्जन 1960 में करीब 80 करोड़ टन सालाना था वो 2021 में बढ़कर 11.5 अरब टन हो गया है.
ऐसे में, जब दुनिया भर के देशों के नेता अधिक महत्वाकांक्षी जलवायु लक्ष्यों पर सहमति बनाने और धरती के ताप के सबसे बुरे प्रभावों को रोकने के लिए दुबई में COP28 संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन के लिए इकट्ठा हो रहे हैं, तो क्या यह सब इस पर भी निर्भर करता है कि इस मामले में चीन क्या करता है?
चीन: खलनायक या फिर दूरदर्शी?
चीन आज दुनिया के किसी भी अन्य देश की तुलना में भले ही ज्यादा सीओटू उत्सर्जित कर रहा हो लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा ऐतिहासिक उत्सर्जक है. इसका मतलब है कि 1850 के बाद से जलवायु संकट में योगदान देने वाले 17 फीसद उत्सर्जन के लिए अमेरिका जिम्मेदार है, जबकि इस मामले में चीन की हिस्सेदारी 12 फीसद है. अमेरिका की तुलना में चीन में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन भी बहुत कम है- साल 2021 में चीन में यह 8.73 टन था तो अमेरिका में 14.24 टन.
और चीन का कहना है कि वह जीवाश्म ईंधन को बदलने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा के बड़े पैमाने पर विस्तार की योजना बना रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने नवंबर में एपेक (एपीईसी) शिखर सम्मेलन के मौके पर हुई एक बैठक में साल 2030 तक वैश्विक स्तर पर नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने की प्रतिबद्धता की पुष्टि की.
चीन पहले ही अपने कुछ हरित ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा कर चुका है. सौर और पवन ऊर्जा जैसी गैर-जीवाश्म ऊर्जा की अब चीन की कुल ऊर्जा क्षमता में आधे से ज्यादा की हिस्सेदारी है, जबकि यह लक्ष्य 2025 के लिए निर्धारित किया गया था. सैन-फ्रांसिस्को स्थित एनजीओ ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर की एक रिपोर्ट के अनुसार, यह एशियाई देश यानी चीन साल 2025 तक अपनी सौर और पवन ऊर्जा क्षमता को दोगुना करने के लिए तैयार है, जो कि निर्धारित समय से पांच साल पहले अपने लक्ष्य को पार कर जाएगा.
एशिया सोसाइटी पॉलिसी इंस्टीट्यूट नाम के एक थिंक टैंक में चाइना क्लाइमेट हब के आगामी निदेशक ली शुओ कहते हैं कि इतने कम समय में तेजी से स्वच्छ ऊर्जा बुनियादी ढांचे का निर्माण करने की चीन की इस क्षमता के पीछे उसकी बेहतर और अनुकूल नीतियां हैं. ली कहते हैं कि अन्य देश चीन के अनुभव से सीख सकते हैं.
उदाहरण के लिए चीन का उभरता हुआ सौर विनिर्माण क्षेत्र दुनिया भर के सभी सौर पैनलों का 80 फीसदी उत्पादन करता है. इससे वैश्विक स्तर पर उनकी लागत में काफी कमी आई है और कई देशों में सौर ऊर्जा सबसे सस्ती नवीकरणीय ऊर्जा बन गई है.
डीडब्ल्यू से बातचीत में ली कहते हैं, "विनिर्माण के क्षेत्र में चीन सबसे बड़ा निवेशक है और दुनिया में कुछ सबसे महत्वपूर्ण स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को लागू करने वाला देश भी है.”
कोयले का इस्तेमाल बढ़ रहा है
ली कहते हैं कि स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ते इन तेज कदमों के बावजूद, चीन अभी भी उन प्रदूषणकारी जीवाश्म ईंधनों का अभ्यस्थ सा बना हुआ है जो उसकी अर्थव्यवस्था को ताकत देते हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, चीन के ऊर्जा उत्पादन में कोयले की हिस्सेदारी करीब 60 फीसद और ऊर्जा खपत में कोयले की हिस्सेदारी 50 फीसद से ज्यादा है.
ली कहते हैं, "वास्तव में हम हर साल वैश्विक कोयले की खपत का आधे से अधिक हिस्सा जला देते हैं. कोई भी देश स्वच्छ क्रांति के साथ जलवायु के क्षेत्र में भी तभी अग्रणी बन सकता है, जब आप कोयले निर्भरता वाली आदत से छुटकारा पाने के उपाय खोज लेंगे.”
साल 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को चरम पर पहुंचाने के लक्ष्य के बावजूद, चीन ने कई नए कोयला आधारित बिजली संयंत्रों पर हस्ताक्षर किए हैं. साल 2022 और साल 2023 की पहली छमाही में यह दर प्रति सप्ताह दो की रही है. इसके अलावा, चीनी अधिकारियों ने भी वैश्विक ऊर्जा संकट की स्थिति में ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कोयला बेड़े को बढ़ावा देने को उचित ठहराया है. चीन के पास घरेलू कोयले की प्रचुर आपूर्ति है.
चीन ने पहले साल 2026 से कोयले के उपयोग को ‘चरणबद्ध' तरीके से कम करने का वादा किया था, लेकिन कुछ महीने पहले, चीन के शीर्ष जलवायु दूत शी शिन्हुआ ने कहा कि यदि देश को आर्थिक विकास बनाए रखना है और उन स्थितियों के लिए बैक-अप सुनिश्चित करना है जब हवा न चल रही हो और सूरज न निकला हो, तो फिर जीवाश्म ईंधन को पूरी तरह से खत्म करना व्यावहारिक नहीं होगा.
जियामेन विश्वविद्यालय में चाइना इंस्टीट्यूट फॉर स्टडीज इन एनर्जी पॉलिसी के प्रोफेसर लिन बोकियांग कहते हैं कि यह विरोधाभासी जरूर लगता है लेकिन चीन को अपने हरित ऊर्जा परिवर्तन को पूरा करने के लिए कोयले की आवश्यकता है.
वो कहते हैं, "कोयले के बिना नवीकरणीय ऊर्जा तेजी से आगे नहीं बढ़ सकती क्योंकि आप उस ऊर्जा परिवर्तन तक पहुंचने के लिए स्थिर बिजली आपूर्ति प्रदान नहीं कर सकते.”
लेकिन लिन का ये भी कहना है कि कोयला क्षमता भले ही बढ़ रही है लेकिन नवीकरणीय क्षमता भी तेजी से बढ़ रही है.
साल 2023 की पहली छमाही में 52 गीगावाट की नई कोयला बिजली को परमिट प्राप्त हुआ, जबकि इस वर्ष अकेले सौर क्षमता में 129-गीगावाट की वृद्धि हुई है.
लेकिन चाइना क्लाइमेट हब के ली शुओ कहते हैं कि कोयले को जलाने की पर्यावरण लागत ‘जबरदस्त' है. उनका कहना है कि नए संयंत्रों को ऑनलाइन लगाने के बजाय, चीन कहीं और ऊर्जा बचत कर सकता है.
ली कहते हैं, "और उन सभी लागतों को जरूरी नहीं कि चीन के बिजली क्षेत्र में शामिल किया जाए. हमें इस देश की ऊर्जा दक्षता का भी उपयोग करना चाहिए.”
नए कोयला संयंत्र और जलवायु लक्ष्य
जलवायु कवरेज के लिए समर्पित यूके स्थित वेबसाइट कार्बन ब्रीफ के मुताबिक, "कम कार्बन उत्सर्जित करने वाले नए ऊर्जा स्रोतों की स्थापना में रिकॉर्ड वृद्धि के कारण साल 2024 में चीन के सीओटू उत्सर्जन में गिरावट आने की संभावना है. साथ ही, यदि कोयला हित नवीकरणीय ऊर्जा के विस्तार को रोकने में असफल रहते हैं तो उत्सर्जन में और ज्यादा गिरावट आ सकती है.”
ली कहते हैं, "पहली चीज जो हमें करने की जरूरत है वह है अधिक कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों के निर्माण को मंजूरी नहीं देना और दूसरी चीज है- धीरे-धीरे अपनी कोयले की खपत को कम करने के तरीके ढूंढना. मुझे उम्मीद है कि अगले कुछ वर्षों में और अधिक प्रगति हो सकती है और हम आखिरकार चीन के उत्सर्जन का चरम बिंदु देखेंगे.”
ली कहते हैं कि यदि चीन की सरकार नए कोयला संयंत्रों को मंजूरी देना जारी रखती है तो उसके ये फैसले 2060 तक कार्बन तटस्थ होने और 2060 तक अपने ऊर्जा मिश्रण में 80 फीसद गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों को प्राप्त करने संबंधी लक्ष्यों को प्राप्त करने में एक बड़ी बाधा साबित हो सकते हैं.
लेकिन लिन बोकियांग को भरोसा है कि चीन सही दिशा में आगे बढ़ रहा है. वो कहते हैं, "यदि आप नवीकरणीय वृद्धि को देखें तो सब कुछ सही रास्ते पर है. भले ही आपको लगता है कि यह समग्र प्रगति थोड़ी धीमी है लेकिन यह भी ध्यान रखना चाहिए कि चीन एक विकासशील देश है. और यहां ऊर्जा की मांग अभी भी बढ़ रही है.”
और यान किन की नजर में देश ने उम्मीदों को कम रखते हुए खुद को सफलता के लिए स्थापित किया है. वो कहते हैं, "ये लक्ष्य इतने महत्वाकांक्षी नहीं हैं जो कमोबेश चीन ने आमतौर पर किया है. अर्थात, मानक को बहुत ऊंचा नहीं रखना और फिर लक्ष्य को हासिल नहीं करना.”