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समंदर में नयी जमीन तैयार करना कितना फायदेमंद

मार्टिन कुएब्लर
१६ मई २०२३

दुनिया भर के तटीय इलाके समंदर में डूबने का खतरा झेल रहे हैं. इसके बावजूद इंसान, समंदर में रेत, पत्थर और मिट्टी भरकर नयी जमीन तैयार करने में जुटा है. इसका क्या असर होगा?

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लैंड रिक्लेमेशन
तस्वीर: Zhang Ailin/Photoshot/picture alliance

इंसान सदियों से समंदर से जमीन जीतता रहा है. इसे लैंड रिक्लेमेशन कहा जाता है. कभी इस जमीन का इस्तेमाल बाढ़ को काबू करने तो कभी नयी बसावट या खेती के लिए किया जाता रहा है. पारंपरिक रूप से ऐसा छिछले इलाकों में किया जाता है. कम गहराई वाले इन इलाकों से पानी को हटाया जाता है और फिर भरान कर वहां सूखी जमीन तैयार की जाती है. कुछ मामलों में जलधाराओं को इस तरह मोड़ा जाता है कि वे नए इलाके में ज्यादा गाद भरें. मुख्य भूमि से मिट्टी और पत्थर निकालकर छिछले इलाकों में भरना भी एक आम तकनीक है. इस तरह समंदर में धीरे धीरे जमीन बढ़ाई जाती रही है.

लेकिन ऐसे इलाकों में अक्सर ज्वार भाटे के दौरान जलभराव की समस्या आती है. पानी की निकासी के लिए पंप इस्तेमाल करने पड़ते हैं. यूरोपीय देश नीदरलैंड्स का एक तिहाई हिस्सा समुद्र तल से नीचे है. वहां नियमित रूप से ऐसा किया जाता है.

दुनिया भर में लैंड रिक्लेमेशन का चलन

दुनिया के दक्षिणी हिस्से में आज लैंड रिक्लेमेशन के कई प्रोजेक्ट तेजी से चल रहे हैं. पूर्वी एशिया, मध्य पूर्व और पश्चिमी अफ्रीका में समंदर में नयी जमीन तैयार कर विलासिता से भरे आवास, नए व्यावसायिक इलाके और औद्योगिक क्षेत्र बनाए जा रहे हैं. मौजूदा दौर में इंजीनियर कई किलोमीटर लंबी बैरियर दीवार बनाकर समंदर में जमीन तैयार कर रहे हैं. इस प्रक्रिया में कम गहरे इलाके में पानी को रोकने के लिए दीवार बनाई जाती है और फिर उसे बालू, मिट्टी और पत्थर से भरा जाता है. आम तौर पर भरान की सामग्री बहुत दूर से जहाजों के जरिए ढोयी जाती है. इस दौरान समंदर की गाद भी इस्तेमाल की जाती है. पानी के साथ इस गाद को मिलाकर जमीन तैयार की प्रक्रिया को हाइड्रॉलिक रिक्लेमेशन कहा जाता है.

अथाह खर्च और मुश्किलों के बावजूद बीते दो दशकों में लैंड रिक्लेमेशन का चलन बढ़ा है. 2023 की शुरुआत में अर्थ्स फ्यूचर नाम की पत्रिका ने एक शोध पब्लिश किया. शोध के दौरान 10 लाख से ज्यादा जनसंख्या वाले तटीय शहरों की सैटेलाइट तस्वीरें ली गई. इनसे पता चला कि दुनिया के 106 शहरों में लैंड रिक्लेमेशन प्रोजेक्ट चल रहे हैं. और इन प्रोजेक्टों की बदौलत 2,530 वर्ग किलोमीटर नयी जमीन तैयार हो चुकी है. क्षेत्रफल के लिहाज से ये लक्जमबर्ग के बराबर है.

शंघाई के पास लैंड रिक्लेमेशन से बनाया गया पोर्ट
शंघाई के पास लैंड रिक्लेमेशन से बनाया गया पोर्टतस्वीर: VCG/imago images

नयी जमीन बनाने में चीन सबसे आगे

बीते दो दशकों में करीब 90 फीसदी नयी जमीन पूर्वी एशिया में तैयार की गई. ज्यादातर मामलों में इसका इस्तेमाल औद्योगिक इलाके और बंदरगाहों के लिए किया गया. सन 2000 से 2020 के बीच चीन के महानगर शंधाई में ही 350 वर्ग किमी नयी जमीन जोड़ी गई. सिंगापुर और दक्षिण कोरिया भी इस दौड़ में ज्यादा पीछे नहीं रहे.

अर्थ्स फ्यूचर में छपे शोध की सह लेखिका यंग रै चोई, समुद्र और तटीय इलाकों की एक्सपर्ट हैं. वह कहती हैं कि समंदर में नयी जमीन तैयार करने में कम कानूनी और प्रशासनिक बाधाएं हैं. इस दौरान  लैंड क्लीयरेंस, फॉरेस्ट क्लीयरेंस, स्थानीय प्रशासन और समुदायों की सहमति जैसे सवाल सामने नहीं आते हैं.

मियामी में फ्लोरिडा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर चोई के मुताबिक चीन समेत कई देशों में इस तरह के प्रोजेक्ट्स को बहुत मुनाफेदार माना जाने लगा है.

तियानजिन में लैंड रिक्लेमेशन से बसाया गया शहर
तियानजिन में लैंड रिक्लेमेशन से बसाया गया शहरतस्वीर: Xinhua/picture alliance

70 फीसदी से ज्यादा नयी जमीन पर बाढ़ का खतरा

चोई का दावा है कि कई लैंड रिक्लेमेशन परियोजनाओं में जलवायु परिवर्तन के चलते बढ़ते समुद्री जलस्तर को ध्यान में नहीं रखा गया है. वह कहती हैं, "बीते कुछ साल में यह एक बड़ा मुद्दा बन चुका है. मुझे लगता है कि पिछले 20 साल में बनाए गए नए इलाके, समुद्र के बढ़ते जलस्तर के लिए अच्छे से तैयार नहीं हैं."

शोध के मुताबिक तटीय इलाकों में तैयार की गई "70 फीसदी से ज्यादा जमीन 2046 से 2100 के बीच तटीय बाढ़ के भारी जोखिम में रहेगी." ताकतवर समुद्री तूफान इन इलाकों के लिए खासी मुसीबत पैदा करेंगे.

चोई कहती हैं, "हम ऐसे मामले देख रहे हैं जहां नए शहरी इलाके अचानक बाढ़ और बढ़ते तूफानों का सामना कर रहे हैं." वह दक्षिण कोरिया के शहर बुसान की मरीन सिटी का उदाहरण देती हैं, जहां बहुमंजिला इमारतों के नीचे सड़कें डूब जाती हैं. तूफानों की ताकतवर लहरें, सुरक्षा दीवार को लांघ जाती हैं और मरीन सिटी के बड़े हिस्से को डुबो देती हैं.

फ्रेडरिक लियोंग, ऑस्ट्रेलिया की डिजाइन और इंजीनियरिंग कंपनी ऑरेकॉन में पर्यावरण और प्लानिंग के निदेशक हैं. उन्हें लगता है कि तमाम जोखिमों के बावजूद लैंड रिक्लेमेशन जरूरी हो चुका है. लियोंग कहते हैं,  "बढ़ते विकास, शहरीकरण, आर्थिक और पर्यावरणीय संतुलन की जरूरतों की वजह से दुनिया के कई देश लैंड रिक्लेमेशन जैसे समाधान का इस्तेमाल करते रहेंगे."

हांगकांग और मैनलैंड चाइना के प्रोजेक्टों में दक्षता रखने वाले लियोंग के मुताबिक फिलहाल जरूरत भविष्य के लिए रिक्लेमेशन तकनीक खोने की है. वह ढालदार समुद्री दीवार को पत्थरों से ढंकने पर जोर देते हैं. उनके मुताबिक ऐसा करने से लहरों की ताकत कमजोर हो जाती हैं.

लेकिन चोई को लगता है कि कुछ इलाकों में लैंड रिक्लेमेशन प्रोजेक्ट्स का कोई तुक नहीं है, "कुछ ही दशकों तक चलने वाला इलाका बनाने के लिए अरबों डॉलर का खर्चा, स्थानीय समुदायों के जीवन में दखलंदाजी और समुद्र के पारिस्थिकी तंत्र को हमेशा के लिए खराब करना, क्या ये वाजिब है."

अक्सर डूब जाती हैं बुसान की मरीन सिटी की सड़कें
अक्सर डूब जाती हैं बुसान की मरीन सिटी की सड़केंतस्वीर: Yonhap/picture alliance

कम पड़ रही है रेत

लियोंग भी मानते हैं कि पर्यावरण लैंड रिक्लेमेशन प्रोजेक्ट्स की भारी कीमत चुकाता है, "नदियों और समुद्री तंत्र से रेत जैसे मैटीरियल को निकालने से कई जीवों का आवास तबाह होता है, इससे पर्यावरण में मौजूद आहार चक्र पर गंभीर असर पड़ता है. इकोलॉजी और संरक्षण लिहाज से भी यह गंभीर है."

रेत की भूख को कम करने के लिए वह रिक्लेमेशन प्रोजेक्ट्स में चट्टानों, मिट्टी, ऐस्फाल्ट, ईंटों और रबर के इस्तेमाल पर जोर देते हैं. कंबोडिया, इंडोनेशिया, मलेशिया और वियतनाम समेत कई देश लैंड रिक्लेमेशन के लिए रेत निर्यात करने पर बैन लगा चुके हैं.

चोई कहती हैं कि इस पांबदी की वजह से कुछ कंस्ट्रक्शन कंपनियां अब समुद्र तल से रेत निकालने लगी हैं. वह कहती हैं, "लोग, खास तौर पर शहरी योजनाकारों को अक्सर लगता है कि समंदर एक खाली जगह है. ऐसा नहीं है. समुद्र की सेहत पर इंसानी और गैर इंसानी समुदायों की जिंदगी निर्भर रहती है."

रेत की अंधी भूख से पैदा हो रहे हैं विवाद