हरित ऊर्जा का स्याह पक्ष दिखाती अफ्रीका में लीथियम की खुदाई
१७ नवम्बर २०२३नामीबिया में चीनी कंपनी की एक लीथियम खदान के स्थानीय मजदूर, घटिया स्तर की जिंदगी और काम के असुरक्षित तौर-तरीकों को लेकर महीनों से शिकायत कर रहे हैं.
नामीबिया की खनन मजदूर यूनियन के एक जांच दल ने हालात का जायजा लेने के लिए अगस्त में उस खदान का दौरा किया था. ये खदान चीनी कंपनी जिनफेंड इन्वेस्टमेंट्स की है. जांच दल ने पाया कि खदान के लोकल मजदूर जिंक की नालीदार चद्दरों की बनी छोटी छोटी, गरमी से बेहाल कोठरियों में रहते हैं. उनमें हवा भी नहीं आती-जाती.
यूनियन ने पाया कि सैनिटेशन ब्लॉकों में प्राइवेसी का अभाव है. वहां टॉयलेट और शावर कतार में लगे हैं और उनके बीच कोई दीवार भी नहीं. इसके उलट खदान के चीनी कर्मचारियों को सुविधाजनक, एसी कमरे और बढ़िया बाथरूम मिले हुए हैं.
यूनियन ने मजदूरों को सुरक्षित पोशाकें मुहैया न कराने के लिए भी कंपनी की आलोचना की. उसने पाया कि स्थानीय मजदूरों के लिए समुचित सुरक्षा उपाय भी सुनिश्चित नहीं किए गए थे.
जिनफेंड इन्वेस्टमेंट्स से जुड़े विवाद और भी हैं. यूके स्थित एनजीओ ग्लोबल विटनेस ने अफ्रीकी की लीथियम खुदाई में कंपनी के खिलाफ बहुत से आरोप गिनाए. इनमें घूस लेकर उइस में औद्योगिक खदान हासिल करने से लेकर छोटे और स्वतंत्र खनन मजदूरों के परमिटों के नाम पर खदानों को विकसित करने तक जैसे आरोप शामिल हैं.
जांच के मुताबिक, लघु स्तर के लाइसेंसों से खदान को विकसित करने का मतलब कंपनी ने लीथियम भंडार में पहुंच हासिल करने के लिए "बहुत ही कम भुगतान" किया और पर्यावरणीय निर्देशों की भारी अनदेखी भी की.
भ्रष्टाचार का 'चिंताजनक' रुझान
नामीबिया के अलावा रिपोर्ट ने, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कॉंगो और जिम्बाव्वे की लीथियम खदानों में भी मानवाधिकार हनन, भ्रष्टाचार, विस्थापन और असुरक्षित तौरतरीकों के मामले दर्ज किए हैं.
ग्लोबल विटेनस के वरिष्ठ जांचकर्ता और रिपोर्ट के एक लेखक, कोलिन रॉबर्टसन का कहना है, "दशकों से, अफ्रीका के खनन सेक्टर में भ्रष्टाचार का बोलबाला रहा है और स्थानीय समुदायों को उनसे होने वाले फायदों में अपना सही हिस्सा नहीं मिल पा रहा. लीथियम सेक्टर में हमने पाया कि ये रुझान जारी है...ये बहुत चिंताजनक है."
लीथियम की होड़
अक्षय ऊर्जा क्रांति का सफेद सोना कहा जाने वाला लीथियम, सेलफोन से लेकर इलेक्ट्रिक कारों को चलाने वाली लीथियम-आयन बैटरियों का मुख्य घटक है. रिचार्ज हो जाने वाली ये बैटरियां, सौर या पवन स्रोतों से हासिल ऊर्जा को जमा रखने के लिए भी बहुत जरूरी होती हैं.
दुनिया भर में लीथियम आपूर्ति पर ऑस्ट्रेलिया, चीले (चिली) और चीन का प्रभुत्व है, 2022 में तीनों देशों में कुल मिलाकर 90 फीसदी लीथियम का उत्पादन हुआ था. लेकिन अफ्रीका के पास लीथियम का सबसे बड़ा खजाना है. दुनिया के करीब 5 फीसदी लीथियम के भंडार के मालिक अफ्रीका में अभी भी अपार संभावनाएं मौजूद हैं. ज्यादातर खनिज अभी जस का तस पड़ा है. फिलहाल सिर्फ जिम्बाव्वे और नामीबिया कच्चे लीथिमय का निर्यात करते हैं जबकि कॉन्गो, माली, घाना, नाईजीरिया, रवांडा और इथोपिया में खुदाई के प्रोजेक्ट चल रहे हैं.
इस अति महत्वपूर्ण खनिज की मांग में और उछाल आने की उम्मीद है- अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के आकलनों के मुताबिक 2040 तक वो 40 गुना बढ़ सकती है. ऐसी स्थिति में दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं और अंतरराष्ट्रीय कंपनियां, अफ्रीकी महाद्वीप पर लीथियम तक पहुंचने की होड़ में आगे रहना चाहती है. और बहुत से अफ्रीकी देश लीथियम की इस होड़ का स्वागत कर रहे हैं.
'भविष्य का खनिज'
जिम्बाव्वे के राष्ट्रपति एमर्सन एमनान्गावा ने हाल में कहा था, "लीथियम वर्तमान का और भविष्य का खनिज है."
अफ्रीकी महाद्वीप में लीथियम का सबसे बड़ा भंडार जिम्बाव्वे के पास है. निर्यात के मामले में वैश्विक स्तर पर उसका नंबर चौथा है. 2023 के पहले नौ महीनों में जिम्बाव्वे, लीथियम से 20 करोड़ डॉलर से (194 मिलियन यूरो) कुछ ज्यादा कमा चुका है. पिछले साल की कमाई के मुकाबले करीब तीन गुना!
दक्षिणी अफ्रीका का देश जिम्बाव्वे ने नामीबिया और तंजानिया के साथ मिलकर कच्चे, अपरिष्कृत लीथियम के निर्यात पर रोक लगा दी है. वो हल्के वजन वाली इस धातु से ज्यादा से ज्यादा कमाई अर्जित करना चाहता है.
जिम्बाव्वे का प्रतिबंध लेकिन ढीलाढाला है. ग्लोबल विटनेस की रिसर्च ने पाया कि बड़ी मात्रा मे कच्चा लीथियम सरकार की नाक के नीचे अभी भी देश से बाहर भेजा जा रहा है.
अमेरिकी और यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों के दायरे में आने वाली सेना से जुड़ी कंपनी, जिम्बाव्वे डिफेंस इंडस्ट्रीज ने चीन को कच्चे लीथियम के निर्यात में विशेष छूट दी है. हरारे स्थित सेंटर फॉर नेचुरल रिसोर्स गर्वर्नेंस के निदेशक फराई मागुवु इस घटनाक्रम से स्तब्ध हैं.
उन्होंने डीडब्लू से कहा, "उनके पास भले एक भी लीथियम खदान नहीं, फिर भी उन्हें निर्यात परमिट मिल गया."
'अभिशाप' है लीथियम
जिम्बाव्वे को लीथियम के खनन से कुछ फायदा हुआ, ये पूछने पर मागुवु निराशा जाहिर करते हैं.
"बिल्कुल भी नहीं," वो कहते हैं. "हुआ है तो बस इतना कि मौजूदा सरकारी तंत्र के तहत, लीथियम के इन भंडारों की बहुलता, दरअसल देश के लिए अभिशाप बन गई."
वो कहते हैं, "देश में क्योंकि कोई तंत्र काम नहीं कर रहा जो ये सुनिश्चित कर सके कि देश को राजस्व की कमाई होगी, स्थानीय समुदायों को सबसे पहले और सबसे ज्यादा लाभ होगा, जो खदान की कीमत चुकाएंगे, अपनी जमीनें गंवाएंगे, जैव-विविधता गंवाएंगे और अपनी जगह पर सामाजिक दखलंदाजी भुगतेंगे."
मागुवु इस संबंध में सांडवाना खदान की मिसाल देते हैं जहां लीथियम की होड़ मची तो हजारों स्थानीय लोग धातु खोदने निकल पड़े. लेकिन इस साल के शुरू में, जिम्बाव्वे की सत्तारूढ़ जानू-पीएफ पार्टी और सेना से रिश्ते रखने वाली कंपनियों ने कथित रूप से ये खदानें हासिल कर लीं.
मागुवु कहते हैं, "जहां कहीं स्थानीय लोग खदान कर सकते थे और धातु बेच सकते थे, वहां उन्हें रोकने को सरकार ने हथियारबंद फौज भेज दी."
वो कहते हैं, अफ्रीका के खनन सेक्टर में भ्रष्टाचार की समस्या से निजात के लिए "कोई जादुई खुराक" नहीं हो सकती लेकिन वो चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा पश्चिमी खनन कंपनियां, अफ्रीका के लीथियम को निकालने के लिए आगे आएं क्योंकि वे अक्सर ज्यादा सख्त और बेहतर पर्यावरणीय, सामाजिक और प्रशासनिक मानक और तौरतरीके अपनाने को बाध्य रहती हैं.
चीनी एकाधिकार का डर
अफ्रीका में लीथियम की निकासी पर चीन का एक तरह से एकाधिकार है. एक परामर्शदाता एजेंसी, बेंचमार्क मिनरल इंटेलिजेंस का आकलन है कि अफ्रीका में इस दशक के दौरान लीथियम की 83 फीसदी संभावित सप्लाई उन प्रोजेक्टों के जरिए आएगी जिनमें आंशिक रूप से चीनी कंपनियों का स्वामित्व है.
पिछले साल चीन की तीन विशाल खनन कंपनियों ने जिम्बाव्वे में 67 करोड़ 80 लाख डॉलर की कीमत वाली लीथियम खदानें और उनसे जुड़े प्रोजेक्ट हासिल किए.
जिम्बाव्वे पर्यावरण कानून संगठन की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, "एक देश के लीथियम खनन पर प्रभुत्व से इस सेक्टर में अवांछित नतीजे पैदा हो सकते हैं जैसे खनिज संसाधनों का अल्प-मूल्यांकन, टैक्स की अनदेखी और मानवाधिकार हनन."
ग्लोबल विटनेस से जुड़े रिसर्चर रॉबर्टसन ने यूरोपीय संघ और अमेरिका से, लीथियम खनन में पारदर्शिता सुनिश्चित कराने और स्थानीय एक्टिविस्टों की ओर से मुस्तैद निगरानी बढ़ाने का आग्रह किया है जिससे शासकीय स्तर पर सुधार होगा और भ्रष्टाचार में कमी आएगी.
वो कहते हैं, "ये हो सकता है कि यूरोपीय संघ और अमेरिका खनिजों की अपनी सप्लाई को बढ़ाने की कोशिश कर रहे हों."
जहां तक फराइ मागुवु का सवाल है, उन्होंने जोर दिया कि खनन प्रोजेक्टों से होने वाली कमाई का लाभ, स्थानीय समुदाय को भी मिलना चाहिए- सार्वजनिक सेवाओं - जैसे सड़कें, अस्पताल और स्कूल - की बेहतरी के रूप में.
वो कहते हैं, "हम लोग अपनी इस कच्ची संपदा को अपनी प्राकृतिक पूंजी मानते हैं और इस पूंजी की निकासी का लाभ स्थानीय लोगों, और बच्चों को भी मिलना चाहिए."