राजस्थान की रेतीली धरती से कैसे फूट पड़ी पानी की धारा?
३१ दिसम्बर २०२४पश्चिमी राजस्थान के रेगिस्तानी इलाके में बसे जैसलमेर जिले के मोहनगढ़ में बोरवेल की खुदाई के दौरान बहुत ज्यादा दबाव के साथ तेज गति से पानी बाहर निकलने लगा. पानी का दबाव इतना ज्यादा था कि लोग उसे देखकर हैरान रह गए. देखते-देखते पानी आस-पास के इलाके में भर गया और पानी रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था. पानी का बहाव और फैलाव इतना तेज और ज्यादा था कि खुदाई करने वाली मशीन और ट्रक तक जमीन में समा गए.
हालांकि सोमवार सुबह करीब 50 घंटे लगातार तेज दबाव के साथ बहने के बाद पानी अब रुक गया है लेकिन लोग इस बात को लेकर आशंकित हैं कि कहीं पानी फिर इसी तरह से तो नहीं आ जाएगा. आशंका इस बात की भी जताई जा रही है कि पानी के साथ जहरीली गैस भी फिर निकल सकती है.
जमीन से अचानक बड़ी मात्रा में पानी निकलने की इस घटना के बाद केंद्र सरकार और राज्य सरकार के भूजल विभाग की टीमें भी मौके पर पहुंच गईं और जांच में जुटी हैं. तमाम वैज्ञानिक कारणों के अलावा इलाके में इस बात की भी चर्चा हो रही है कि कहीं सैकड़ों साल पहले विलुप्त हो चुकी सरस्वती नदी के अस्तित्व की वजह से तो ये पानी बाहर नहीं आ गया.
लेकिन इसमें सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि पानी के साथ लाखों साल पुरानी रेत भी निकल रही है. भू-जल विशेषज्ञों का कहना है कि जमीन से निकली ये रेत टर्शरी काल की है. ऐसे में संभावना है कि जो पानी निकला है वो करीब साठ लाख साल पुराना होता हो सकता है जिसके अध्ययन की जरूरत है और उसके बाद ही पता चल सकेगा कि ये पानी कहां से आया. इसके लिए कुछ और कुओं को खोदने की जरूरत होगी. भूवैज्ञानिकों का मानना है कि हो सकता है कि ये चट्टानें और ये पानी समंदर से मरूस्थल में तब्दील होने के दौरान काहो जब भूगर्भीय परिवर्तन से यह इलाका रेगिस्तान में बदला था.
मोहनगढ़ में जमीन से पानी निकलना तो फिलहाल बंद हो गया है लेकिन आस-पास के इलाकों में सावधानी बरती जा रही है. जैसलमेर के जिला कलेक्टर प्रताप सिंह ने मीडिया को बताया कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 163 के तहत आदेश जारी कर बोरवेल के 500 मीटर के चारों ओर को निषिद्ध क्षेत्र घोषित कर दिया गया है और आम नागरिकों के आवागमन पर प्रतिबंध लगाया दिया गया है. साथ ही भराव क्षेत्र से पानी निकासी के इंतजाम किए जा रहे हैं. क्योंकि आशंका जताई जा रही है कि जमीन से जहरीली गैस भी निकल सकती है जो खतरनाक हो सकती है.
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जिस जगह यह पानी इतने दबाव के साथ अचानक निकला है वहां आमतौर पर नलकूप के लिए तीस मीटर से लेकर सौ मीटर तक की खुदाई की जाती है. जहां से पानी निकल रहा है, वहां पर नलकूप की खुदाई सौ मीटर तक की गई थी. विशेषज्ञों का कहना है कि उस जगह पर नीचे पानी का एक बबल था जिसमें ड्रिलिंग के कारण छेद होते ही प्रेशर के साथ पानी बाहर आ गया.
पर्यावरण और भू-जल विशेषज्ञ हिमांशु ठक्कर कहते हैं कि ऐसा उस जगह आर्टेसियन कुओं की मौजूदगी की वजह से भी हो सकता है. डीडब्ल्यू से बातचीत में वो कहते हैं, "आर्टेसियन कुएं जहां होते हैं वहां काफी दबाव के साथ पानी होता है. वहां छेद हो गया तो पानी बहुत तेज प्रेशर के साथ निकलता है. प्रेशर जब तक रहता है पानी तब तक निकलता रहता है और प्रेशर कम होते ही पानी बंद हो जाता है.”
हिमांशु ठक्कर कहते हैं कि पहले तो आर्टेसियन कुएं बहुत होते थे लेकिन मिलने अब बंद हो गए हैं क्योंकि हमने ग्राउंड वाटर का इस्तेमाल बहुत ज्यादा कर लिया है.
दरअसल, राजस्थान में सरस्वती नदी की खोज के लिए पहले भी काम होता रहा है. आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, केन्द्रीय भूजल बोर्ड, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र यानी इसरो के क्षेत्रीय रिमोट सेंसिंग इस दिशा में काम कर चुके हैं. पहले की सरकारों ने सरस्वती नदी की खुदाई और उसकी जांच के लिए इसरो से भी मदद ली थी.
लेकिन हिमांशु ठक्कर कहते हैं कि आर्टेसियन वेल्स यानी कुओं को नदी कह देना ठीक नहीं है बल्कि इस पर कायदे से शोध की जरूरत है. वो कहते हैं, "नदी का एक पूरा रास्ता होता है. यदि यह पानी नदी से आ रहा है तो सरस्वती नदी का पूरा पथ यानी रास्ता होना चाहिए. यह रास्ता काफी लंबा-चौड़ा होता है. सरस्वती नदी को विलुप्त हुए कई सदियां हो गई हैं इसलिए ये मानना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन शोध होना चाहिए. नदी का कुछ रास्ता पता चले तभी इस बारे में कुछ कहा जा सकता है.”
रेगिस्तान में जलस्रोत और आर्टेसियन कुओं की मौजूदगी पर हिमांशु ठक्कर कहते हैं कि यह भूगर्भीय क्रियाएं हैं, स्थितियां बदलती रहती हैं. उनके मुताबिक, आज यहां भले ही रेत है लेकिन पानी के स्रोतों का मिलना असंभव नहीं है क्योंकि यहां हमेशा तो रेगिस्तान रहा नहीं है.