जापान में चार दिन काम, बाकी दिन आराम के!
२३ जून २०२१जापान के जी-तोड़ मेहनत करने वाले कर्मचारियों को दफ्तर में कम समय बिताने के लिए बढ़ावा दिया जा रहा है. सरकार की कोशिश है कि लोग काम और जिंदगी के बीच संतुलन को बेहतर बनाएं. इसी सिलसिले में सरकार ने कंपनियों से कहा है कि वे अपने कर्मचारियों को हफ्ते में पांच दिन के बजाय चार ही दिन काम करने का विकल्प दें.
कोरोनावायरस महामारी ने दफ्तरों की संस्कृति को काफी प्रभावित किया है. बड़ी संख्या में लोग घर से काम करने लगे हैं. हालांकि जापान में आज भी पारपंरिक तौर पर काम करने पर जोर देने वाली कंपनियों की बड़ी संख्या है. लेकिन सरकारी स्तर पर यह कोशिश की जा रही है कि कंपनियों के प्रबंधन को काम के लचीले घंटों, घर से काम और हफ्ते में कम काम करने के विकल्प के लिए तैयार किया जाए.
अर्थव्यवस्था की खातिर
अपने अभियान के बारे में सरकार ने कहा है कि हफ्ते में चार दिन काम का विकल्प देने से कंपनियों उन काबिल कर्मचारियों को खोने से बच सकती हैं, जिन्हें घर या अन्य जिम्मेदारियों के चलते नौकरी छोड़नी पड़ती है. अधिकारियों को यह भी उम्मीद है कि एक अतिरिक्त दिन की छुट्टी मिलने से लोग बाहर जाएंगे और धन खर्च करेंगे जिससे अर्थव्यवस्था को सहारा मिलेगा.
जापान सरकार यह भी उम्मीद कर रही है कि छुट्टी मिलने पर युवा लोग बाहर जाएंगे, एक दूसरे से मिलेंगे, शादी करेंगे और बच्चे पैदा करेंगे. देश गिरती जन्मदर की समस्या से जूझ रहा है और आबादी लगातार बूढ़ी होती जा रही है, जो एक बड़ी चिंता है.
बाजार पर अध्ययन करने वाली फर्म फूजित्सू के मुख्य आर्थनीतिज्ञ मार्टिन शुल्त्स ने डीडब्ल्यू को बताया कि इस बदलाव को लेकर सरकारी गंभीर दिख रही है. हाल ही में सराकर ने देश की धीमी पड़ती अर्थव्यवस्था को संभालने के बारे में विभिन्न सुझाव मांगे थे. लेकिन वित्तीय लेन देन बढ़ाने जैसे पारपंरिक कदम अब काम नहीं कर रहे हैं, और केंद्रीय बैंक के पास भी नए तौर-तरीकों की सीमा है.
दफ्तरों में कटौती
शुल्त्स कहते हैं कि ऐसी स्थिति में लोगों की जीवन-शैली में सुधार अगला कदम है. वह कहते हैं, "महामारी के दौरान कंपनियों ने काम करने के नए तौर-तरीके अपनाए. वे अपने कर्मचारियों को घरों, दफ्तर से दूर किसी छोटी जगह से या फिर ग्राहकों के पास से ही काम करने को कह रही हैं, जो कई कर्मचारियों के लिए आरामदायक है और उनकी उत्पादकता बढ़ाता है.”
शुल्त्स की कंपनी फूजित्सू ने तो सरकार को प्रोत्सहान का फायदा भी उठा लिया है. टोक्यो स्थित उसके दफ्तर की जगह आधी की जा रही है और लोगों को घरों से काम करने को प्रोत्साहित किया जा रहा है. वह बताते हैं, "भविष्य में, मेरे विभाग में कुछ लोग तो होंगे लेकिन ऐसा कम ही होगा कि सारे लोग एक साथ जमा हों. यह जगह अब सिर्फ ऐसी बैठकों के लिए होगी जो सिर्फ आमने-सामने मिलकर ही की जा सकती हैं.”
आय घटने का खतरा?
वैसे सरकार की इस योजना की अपनी कुछ खामियां भी हैं. जापान पहले ही कामगारों की कमी से जूझ रहा है क्योंकि काम करने वाले युवाओं की संख्या लगातार घट रही है. और फिर, कर्मचारियों को यह भी फिक्र है कि कम दिन काम करने से उनकी आय भी कम हो सकती है और उन पर कंपनी के लिए पूरी तरह निष्ठावान ना होने के इल्जाम भी लग सकते हैं.
बिजनेस स्टडीज में अपनी पढ़ाई पूरी कर रही हैं जुंको शिजेनो को कई बड़ी कंपनियों से नौकरी के ऑफर मिले. लेकिन उन्होंने एक छोटी कंपनी के लिए काम करना चुना है जबकि यह दफ्तर उनके घर से काफी दूर है. इस चुनाव की वजह है कंपनी का दर्शन. वह बताती हैं, "जिन कंपनियों ने मुझे नौकरी की पेशकश की, उनके बारे में मैंने काफी रिसर्च की. वहां काम करने वाले लोगों से भी बात की. मैं तब हैरान रह गई जब एक महिला से काम और जिंदगी के संतुलन के बारे में पूछने पर वह रोने लगी.”
कारोशी से बचने के लिए
आजकल युवाओं के लिए सबसे बड़ा मुद्दा काम के घंटों से अधिक काम करना है, और वह भी बिना अतिरिक्त पैसे के, जिसे आमतौर पर सर्विस ओवरटाइम कहते हैं. जिस कंपनी के लिए शिजेनो ने काम करने का फैसला किया है, उसने वादा किया है कि महीने में उन्हें 15 घंटे से ज्यादा ओवरटाइम कभी नहीं करना होगा. जबकि एक अन्य कंपनी ने उनसे 60 घंटे तक के लिए तैयार रहने को कहा था.
जापान में ऐसी खबरें लगातार आती रहती हैं कि ज्यादा काम करने से लोग बीमार हो गए या तनाव के कारण अपनी जान तक दे दी. इसके लिए जापानी भाषा में एक शब्द है कारोशी, जिसका अर्थ है जरूरत से ज्यादा काम से मौत. कई बार तो लोगों को महीने में सौ घंटे तक का ‘सर्विस ओवरटाइम' करना पड़ा है, जिसके बाद वे टूट गए.
शुल्त्स कहते हैं कि जरूरी है, लोगों की उत्पादकता बढ़े. वह बताते हैं, "पिछले एक साल में लोगों ने दिखा दिया है कि काम करने के लिए उन्हें पांच दिन और देर रात तक दफ्तर में मौजूद होने की जरूरत नहीं है. बड़ा खतरा अब ये है कि कंपनियां वापस पुराने ढर्रे पर ना चली जाएं. जो कंपनियां ऐसी गलती नहीं करेंगी, उनके लिए तो फायदा ही फायदा है.”
जूलियन रेयाल, टोक्यो से