"बस आत्मरक्षा" नीति वाला जापान क्यों मजबूत कर रहा है सेना
३१ अगस्त २०२३चीन के बढ़ते सैन्य प्रभाव और उत्तर कोरिया की धमकियों के मद्देनजर जापान अपनी सैन्य रक्षा क्षमता बढ़ाना चाहता है. इसी क्रम में प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा की सरकार ने दिसंबर 2022 में एक नई सुरक्षा नीति अपनाने की घोषणा की थी. इसके तहत, पांच साल में तेजी से सैन्य क्षमताएं बढ़ाने का लक्ष्य है. जिसके बाद अब जापानी रक्षा मंत्रालय ने 2024 के वित्तीय साल के लिए करीब 5,250 करोड़ डॉलर के बजट की जरूरत बताई है, जो एक रिकॉर्ड है.
कई मोर्चों पर तैयारी
इस राशि में एजिस-रेडार वाले दो युद्धपोत बनाने के लिए मांगी गई रकम शामिल है. जापान इन दोनों जंगी जहाजों को 2027 और 2028 में तैनात करना चाहता है. दोनों युद्धपोतों में 240-240 क्रू सदस्य होंगे. इन्हें लंबी दूरी की क्रूज मिसाइलों को दागने के लिहाज से भी डिजाइन किया जाएगा. इन मिसाइलों में अमेरिकी टामाहॉक्स और टाइप-12 सरफेस टू शिप मिसाइल का उन्नत घरेलू संस्करण शामिल हैं.
दोनों युद्धपोत तैरने वाले मिसाइल बेस का काम करेंगे. इनमें स्पाई-7 रेडार भी लगे होंगे, जो कि बेहद मुश्किल से पकड़ में आने वाली मिसाइल लॉन्चिंग्स का भी पता लगा सकेंगे. इनके अलावा जापान इसी साल 400 टामहॉक्स मिसाइल भी खरीद रहा है, जिन्हें 2026-2027 में तैनात किए जाने की योजना है.
2024 के बजट में रक्षा मंत्रालय "स्टैंडऑफ" क्षमता विकसित करने पर भी खर्च करना चाहता है. इसका मकसद मुख्यतौर पर जापान के दक्षिण-पश्चिमी द्वीपों की सुरक्षा है. आशंका है कि ताइवान पर चीनी हमले की स्थिति में ये द्वीप फ्रंटलाइन बन सकते हैं. मंत्रालय ने हाइपरसॉनिक गाइडेड मिसाइलों के विकास और उत्पादन के मद में भी रकम मांगी है.
जापान की सरकार अपनी आर्म्स ट्रांसफर नीति को भी लचीला बनाने की तैयारी कर रही है. फिलहाल इसके तहत घातक हथियारों के निर्यात पर प्रतिबंध है. रक्षा उपकरणों के घरेलू उत्पादन की जरूरत को देखते हुए मंत्रालय, जापान के रक्षा उद्योग में भी विस्तार करने की योजना बना रहा है. इसमें उपकरण विकसित करने के लिए 540 नए कर्मचारियों को रखा जाएगा. इसके अलावा जापान, ब्रिटेन और इटली के साथ मिलकर अगली पीढ़ी के मित्सुबिसी हैवी इंडस्ट्री फाइटर जेट भी विकसित कर रहा है.
क्षेत्रीय खतरों को देखते हुए बदली सैन्य नीति
जापान में दूसरे विश्व युद्ध के बाद से ही सैन्य नीति और रक्षा ढांचा संवेदनशील मुद्दा रहे हैं. साम्राज्यवादी जापान का इतिहास, इसके कारण हुआ भीषण नुकसान और उस दौर में पड़ोसी एशियाई देशों पर किए गए अत्याचार और युद्धकालीन नृशंसताएं, इन सभी पहलुओं का असर युद्ध के बाद के जापान की नीतियों का केंद्र रहा.
इस दौर में जापान ने आर्थिक तरक्की को प्राथमिकता दी. युद्ध के बाद हुए द्विपक्षीय सुरक्षा समझौते के तहत अमेरिकी सेना की जापान में मौजूदगी भी थी. ऐसे में रक्षा जरूरतों के लिए जापान अधिकतर अमेरिका पर निर्भर रहा. उसका सैन्य सिद्धांत केवल आत्मरक्षा पर केंद्रित था. लेकिन बीते कुछ समय से क्षेत्रीय सुरक्षा की स्थिति गंभीर होती जा रही है.
पीएम ने कहा था, "आत्मरक्षा काफी नहीं"
चीन का बढ़ता प्रभाव, उसके अपने पड़ोसियों के साथ जारी सीमा संबंधी विवाद और ताइवान पर चीनी हमले की आशंकाओं ने जापान में भी रक्षा से जुड़ी चिंताएं बढ़ाईं. पिछले साल जापान की नई रक्षा रणनीति की घोषणा करते हुए पीएम किशिदा ने कहा, "जब आशंकाएं सच होने लगें, तो क्या केवल आत्मरक्षा हमारे देश की पूरी तरह हिफाजत कर सकता है? स्पष्टता से कहूं तो हमारी मौजूदा सेल्फ डिफेंस फोर्स क्षमताएं पर्याप्त नहीं हैं."
प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि पलटवार करने की क्षमता अनिवार्य है, ताकि दुश्मन को हमला करने से हतोत्साहित किया जा सके.
रक्षा ढांचे को मजबूत करने के लिए जापान ने 2027 तक करीब 32,000 करोड़ डॉलर की राशि खर्च करने का लक्ष्य रखा है. इस तरह जापान रक्षा जरूरतों पर खर्च के मामले में अमेरिका और चीन के बाद दुनिया का तीसरे नंबर का देश होगा. हालांकि जन्म दर में गिरावट और बुजुर्ग होती आबादी की देखभाल और स्वास्थ्य जरूरतों पर बढ़ती लागत के बीच रक्षा मद में बढ़ते खर्च का आर्थिक प्रबंध करना एक चुनौती होगी.
एसएम/एडी (एपी)