यहूदी महिलाओं ने नाजियों से कैसे लड़ी जंग
६ अगस्त २०२१फरवरी 1943 का यह एक छोटा दिन है. सर्दी ने पोलैंड के एक शहर बेडजिन की नाजी जर्मनी के कब्जे वाली यहूदी बस्ती को अपनी गिरफ्त में ले रखा है. इस बस्ती में भीड़भाड़ वाले घरों के बीच एक खास इमारत है जिसका नाम फ्राईहाइट (आजादी) है. यह इमारत यहूदी युवा संगठन का मुख्यालय है जहां नाजियों के खिलाफ संघर्ष कर रहे यहूदी रहते हैं.
इस दिन, इस इमारत में महिला और पुरुष एक साथ एक महत्वपूर्ण निर्णय लेने के लिए आए हैं. वे ऐसे दस्तावेज प्राप्त करने में सक्षम थे जो उन्हें कब्जे वाले क्षेत्रों के कुछ हिस्सों में तस्करी करने में मदद कर रहे थे. क्या उनकी नेता फ्रुमका प्लोटनिका को, जो कि एक यहूदी-पोलिश महिला हैं, हेग की यात्रा करने और अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के समक्ष यहूदी लोगों का प्रतिनिधित्व करने के लिए इन कागजात का उपयोग करना चाहिए?
सभी निगाहें प्लोटनिका की ओर लगी थीं. वह कहती हैं, "नहीं. मरना है तो साथ मरेंगे. लेकिन हम लोग प्रयास करेंगे कि बहादुरों की तरह मरें.”
उसी कमरे में एक और युवती थी जिनका नाम रेनिया कुकिएल्का था. ये दोनों महिलाएं एक साथ नाजी कब्जे वाले पोलैंड में हिटलर शासन के खिलाफ यहूदी महिला प्रतिरोध का चेहरा बनने वाली हैं.
उस रात की ऐतिहासिक घटनाओं को इतिहासकार जूडी बटालियन ने अपनी पुस्तक द लाइट ऑफ डेज में कुछ इसी तरह चित्रित किया है जिसका शीर्षक है- द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ विमिन रेजिस्टेंस फाइटर्स इन हिटलर्स गेटोज.
10 वर्षों के दौरान, बटालियन ने इस विध्वंसक लड़ाई से संबंधित अनगिनत प्रत्यक्षदर्शी रिपोर्टों, संस्मरणों, विरासतों और अभिलेखीय दस्तावेजों को खोज निकाला और उनका विश्लेषण किया है.
उन्होंने दुनिया भर में युद्ध की विभीषिका से बचे लोगों और उनके बच्चों और पोते-पोतियों से बात भी की है. इस श्रमसाध्य कार्य के माध्यम से, वह एक ऐसे इतिहास को फिर से बनाने में सफल रही हैं जो दशकों से लोगों को पता ही नहीं था. वास्तव में, यह एक ऐसा काम है जिसके बारे में ठीक से कभी बताया ही नहीं गया. पोलैंड में नाजी कब्जे का यहूदी महिलाओं ने किस तरह से विरोध किया, दृढ़ता, साहस और कभी-कभी हिंसा का भी सहारा लिया.
तोड़फोड़, आग्नेयास्त्र, छलावरण
बटालियन इस महायुद्ध में जान बचाने वाली एक महिला की पोती हैं जिनके माता-पिता में से एक पोलैंड के रहने वाले और दूसरे यहूदी थे. वह न्यूयॉर्क में रहती हैं लेकिन इन अनसुनी कहानियों को लिखने के लिए उन्होंने लंदन स्थित ब्रिटिश लाइब्रेरी में काफी खोजबीन की. तमाम ऐतिहासिक दस्तावेजों के अलावा यिदिश किताब फ्राउएन इन द गेटोज की भी एक प्रति उनके हाथ लग गई.
वह नारी शक्ति और साहस पर एक और "उबाऊ" शोकगीत की उम्मीद कर रही थीं लेकिन इसकी बजाय उन्हें वह मिल गया जिसमें महिलाओं के साथ "तोड़फोड़, आग्नेयास्त्र, छलावरण, डायनामाइट" जैसी कहानियां जुड़ी थीं.ट
एक दशक के शोध और लेखन के बाद उन्हें उल्लेखनीय परिणाम हासिल हुए. उन्होंने पाया कि बड़ी संख्या में यहूदी महिलाएं सक्रिय रूप से कब्जे वाले पोलैंड में नाजियों का विरोध कर रही थीं, बेडजिन में यहूदी बस्ती से लेकर वारसॉ तक हर स्तर पर वो आगे थीं. उन्होंने हथियारों की तस्करी की, जर्मन रेलवे को कई जगह ध्वस्त किया और कई जगहों पर बारूद से धमाके किए.
नाजियों से संघर्ष के दौरान फ्रुमका प्लोटनिका की मौत हो गई जबकि रीनिया कुकीलका और कई अन्य महिलाओं ने संदेशवाहकों का काम किया. लगातार अपनी जान पर खेलते हुए इन महिलाओं ने अपनी गैर यहूदी पहचान का इस्तेमाल करते हुए लोगों तक सूचनाएं, पैसा, हथियार और गोला बारूद पहुंचाने में मदद की.
सांस्कृतिक प्रतिरोध
अन्य महिलाएं शहरों से भाग गईं और जंगलों या विदेशी प्रतिरोध समूहों के गुरिल्ला समूहों में शामिल हो गईं. उन्होंने अन्य यहूदियों को छिपने या भागने और "नैतिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक प्रतिरोध" में लगे रहने में मदद करने के लिए एक बचाव नेटवर्क का निर्माण किया.
सांस्कृतिक प्रतिरोध का एक ऐसा उदाहरण बटालियन द्वारा लॉड्ज के यहूदी बस्ती में एक युवा महिला हेनिया रेनहार्ट्ज की जीवनी के माध्यम से पेश किया गया है. अन्य महिलाओं के साथ, उसने शहर में पुस्तकालय से यहूदी पुस्तकों के ढेर को बचाया और उन्हें यहूदी बस्ती में तस्करी करके पहुंचाया. बाद में कई साल तक वह इस बात को याद करती रही, "यह एक भूमिगत लाइब्रेरी थी.”
बटालियन कहती हैं, "पढ़ना, दूसरी दुनिया में जाने का एक रास्ता था. सामान्य जीवन से सामान्य दुनिया में, ना कि हमारी तरह डर और भूख की दुनिया में. राइनहार्ट्ज निर्वासन से बचने के लिए जब छिप रही थीं, उस वक्त वो अमरीकी उपन्यास ‘गॉन विद द विंड' पढ़ रही थी.”
तस्वीरों मेंः हिमलर की खूनी डायरी
एक पुस्तक का एक दुर्लभ रत्न
बटालियन भी, यहूदी महिला प्रतिरोध सेनानियों की स्मृति को फिर से जीवंत करने के लिए संस्कृति और साहित्य का उपयोग करना चाहती हैं. उनकी पुस्तक एक उपलब्धि है, वह जितनी कठोर है उतनी ही मनोरंजक भी. महान कुशाग्र बुद्धि और एक दृढ़ कथा प्रवृत्ति के साथ, वह इतिहास के एक महत्वपूर्ण हिस्से की याद दिलाती है जिसे बहुत लंबे समय से अनदेखा किया गया है.
पुस्तक का जर्मन अनुवाद इस महीने प्रकाशित होने के लिए तैयार है और यह उस बहस के दौरान प्रकाशित हो रही है कि कैसे इस आपदा की स्मृति को जीवित रखा जाए क्योंकि उसके प्रत्यक्षदर्शी धीरे-धीरे बड़े होते जाते हैं और फिर मर जाते हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में अनुवादक मारिया त्सिटनर इस बात को रेखांकित करती हैं कि यह कितना महत्वपूर्ण है कि इस इतिहास को बताया जाए, खासकर जर्मनी में.
देखिएः ऐन फ्रैंक की कहानी
वो कहती हैं, "जब मैं किताब का अनुवाद कर रही था और पढ़ रही थी कि जर्मनों ने इन यहूदी महिलाओं के साथ क्या किया है, तो मुझे बड़ी शर्मिंदगी महसूस हुई. जर्मनों के रूप में यह सुनिश्चित करना हमारी जिम्मेदारी है कि इन यादों को भुलाया न जाए और उन्हें अगली पीढ़ी को हस्तांतरित होने दिया जाए. हमारी जिम्मेदारी है कि हम वह सब करें जो हम कर सकते हैं ताकि ऐसा कुछ दोबारा न हो.”
बटालियन ने उन कहानियों को उजागर करने के महत्व पर बल दिया जिन्हें दबा दिया गया है. वो कहती हैं, "सामान्य रूप से यहूदी प्रतिरोध की यह पहली कहानी है, खासकर पोलैंड में, जिसके बारे में बहुत कम बात की जाती है. और दूसरे यह कि विश्वयुद्ध के दौरान महिलाओं के अनुभव का यह दस्तावेज है जिन पर हाल के दिनों में तो खूब चर्चाएं हुई हैं लेकिन पहले नहीं हुई हैं.”
पश्चिमी नारीवाद का नया अध्याय
बटालियन कहती हैं कि मौजूदा समय में ऐसी कहानियों को पढ़ने की लोगों में जबर्दस्त भूख है. डीडब्ल्यू से बातचीत में वह कहती हैं, "यह वह समय है जब हम अपने नारीवादी परिक्षेत्र में हैं, नारीवाद के इतिहास के दौर में हैं.”
बटालियन जब अपने साथियों और अपनी दोस्तों से बातचीत करती हैं तो इस बात पर खास जोर देती हैं कि "हम इन विरासतों के बारे में जानने के लिए इतने उत्साहित हैं कि हम इससे आते हैं. महिलाओं के लिए यह जानना बहुत ही रोमांचक है कि हमारे पूर्वजों ने यही किया है. महिलाएं अब बहुत कुछ हासिल कर रही हैं.”
उनके मुताबिक, इस किताब के छपने तक में महिलाओं का काफी योगदान है. वो कहती हैं, "मैं एक इतिहासकार हूं. मैं एक महिला हूं. मेरी कई पीढ़ियां नहीं रही हैं. मेरी संपादक भी महिला हैं जिन्होंने इस प्रोजेक्ट को कमीशन किया है, जो इसके लिए पैसा दे रही हैं वो भी महिला हैं और मेरी एजेंट भी एक महिला है. मैं कह नहीं सकती कि 25 साल पहले भी ऐसा संभव हो सकता था क्या.”
तस्वीरों मेंः बर्लिन के म्यूजियम
आभार जताना
इन तमाम महिलाओं के कठिन परिश्रम की वजह से द लाइट ऑफ डेज न्यू यॉर्क टाइम्स और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के अनुसार पहले ही बेस्ट सेलर किताब बन चुकी है, डाइरेक्टर स्टीवन स्पीलबर्ग ने इस पर फिल्म बनाने की अनुमति ले ली है और कई अन्य फिल्म निर्माता और नाटककारों ने डॉक्यूमेंटरी इत्यादि बनाने में दिलचस्पी दिखाई है.
बटालियन के लिए यह बहुत ही संतोषजनक क्षण है, फिर भी डीडब्ल्यू से बातचीत में वो काफी विनम्र दिखती हैं. वह कहती हैं, "मुझे उम्मीद है कि यह कहानी अधिक से अधिक दर्शकों तक पहुंचेगी.”
उनके लिए किताब लिखने का क्या मतलब है? अपने करीब तीस मिनट के इंटरव्यू में अब तक हर सवाल का तुरंत जवाब देने वाली बटालियन इस सवाल को सुनकर कुछ क्षणों के लिए खामोश हो जाती हैं, वह दूर तक देखती हैं और एक सन्नाटा सा छा जाता है.
और आखिर में वह कहती हैं, "मुझे ऐसा लगा जैसे मुझे कुछ करना है.” वह जो सोच रही हैं उसका स्पष्ट अर्थ है कि यह उनके बारे में नहीं है, "मैं इस तरह के विस्तृत विवरण इकट्ठा करने के लिए रेनिया की आभारी हूं जिसने मुझे कहानी बताने में सक्षम बनाया. मैंने तो बस वही किया जो मुझे लगा कि मुझे करना है.”
रिपोर्टः क्रिस्टीन लेहनन