प्रवासियों का नया ठिकाना बन गया है क्रोएशिया
२७ मार्च २०२४डेन्सन डीक्रूज भारत के केरल के रहने वाले हैं. वह 2023 में क्रोएशिया पहुंचे थे. तब क्रोएशिया जाने का उनका मकसद शेनेगन वीजा हासिल करना था क्योंकि शेनेगन वीजा पर पूरे यूरोपीय संघ में यात्रा की जा सकती है. लेकिन अब इस छोटे से पूर्वी यूरोपीय देश को ही उन्होंने अपना घर बना लिया है.
30 साल के डिक्रूज मकैनिक का काम करने के लिए क्रोएशिया गए थे लेकिन अब वह अपनी इंपोर्ट-एक्पोर्ट कंपनी चला रहे हैं. वह कहते हैं, "निकट भविष्य में तो मैं यहीं रहना चाहता हूं. यहां का मौसम बहुत अच्छा है. लोग दोस्ताना हैं और अंग्रेजी बोलते हैं.”
एशिया से क्रोएशिया
बाल्कन देश क्रोएशिया बड़ी संख्या में दक्षिण एशियाई प्रवासियों को आकर्षित कर रहा है. भारत ही नहीं बल्कि नेपाल, श्रीलंका और यहां तक कि फिलीपींस से बड़ी संख्या में लोग वहां बसने पहुंच रहे हैं.
नेपाल की दुर्गा फुयाल ऐसे ही दसियों हजार लोगों में से हैं, जो क्रोएशिया में कामगारों की भारी कमी का फायदा उठाने पहुंच रहे हैं. पारंपरिक रूप से क्रोएशिया मौसमी कामगारों के लिए अपने पड़ोसी देशों पर निर्भर रहा है. लेकिन कोविड महामारी के बाद इस चलन में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. अब भारत, नेपाल और फिलीपींस के लोग मजदूरों की कमी को पूरा कर रहे हैं.
क्रोएशिया को पिछले कुछ समय में दो बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. एक तो वहां की आबादी बढ़ नहीं रही है. दूसरे, बड़े पैमाने पर स्थानीय लोग वहां से अन्य यूरोपीय देशों की ओरजा रहे हैं. इस वजह से स्थानीय उद्योग कामगारों की भारी कमी का सामना कर रहे हैं. कंपनियों में हजारों रिक्तियां हैं, जिन्हें भरने के लिए कर्मचारी नहीं मिल रहे हैं.
मुश्किलें भी कम नहीं
हालांकि एशिया से आने वाले प्रवासियों के लिए भी रास्ता आसान नहीं है. एक तो वहां पहुंचने का खर्च, उसके बाद घर और अन्य सुविधाओं के लिए मोटी रकम और फिर चुनावों से पहले देश में बढ़ता प्रवासी विरोध भी उनके सामने मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं.
हाल ही में एक स्थानीय अखबार ने खोजी रिपोर्ट छापी थी कि जागरेब में 32 विदेशी मजदूर 83 वर्ग मीटर के एक छोटे से अपार्टमेंट में एक साथ रह रहे थे.
फुयाल ने नेपाल से क्रोएशिया जाने के लिए सात हजार यूरो यानी भारतीय रुपयों में करीब साढ़े छह लाख की मोटी रकम खर्च की है. क्रोएशिया पहुंचने के महीनेभर बाद ही उनकी नौकरी चली गई. जिस एजेंसी ने उन्हें वहां भेजा था, उसने भी कोई मदद नहीं की.
27 साल की फुयाल कहती हैं, "वे दो महीने बहुत मुश्किल थे. मेरे पास ना नौकरी थी, ना रहने की जगह और ना खाने को कुछ.”
2023 में क्रोएशिया ने लगभग एक लाख 20 हजार गैर-यूरोपीय लोगों को वर्क-परमिट दिए. 2022 के मुकाबले यह 40 फीसदी ज्यादा है.
लेकिन अप्रैल में होने वाले आम चुनाव में यह एक बड़ा मुद्दा बन गया है. दक्षिणपंथी पार्टियां आरोप लगा रही हैं कि प्रवासी देश की सुरक्षा के लिए खतरा हैं और स्थानीय लोगों की नौकरियां छीन रहे हैं. इंटरनेट पर भी प्रवासियों के बारे में दुष्प्रचार किया जा रहा है. जब नए साल की पूर्व संध्या पर राजधानी जागरेब में नेपाली प्रवासियों ने जश्न मनाया तो ‘नेपाली न्यू ईयर' जैसे हैश टैग के जरिए उनका मजाक बनाया गया.
देश की 90 फीसदी आबादी स्थानीय क्रोएट्स लोगों की हैं, जिनमें से 80 फीसदी रोमन कैथलिक हैं. धर्म के अलावा भाषा भी प्रवासियों के लिए एक बड़ी बाधा है. जागरेब विश्वविद्यालय में समाजशास्त्री द्रागन बाजिच कहते हैं, "फ्रांस या ब्रिटेन जैसे देशों में ऐतिहासिक रूप से अन्य संस्कृतियों से संपर्क रहा है लेकिन क्रोएशिया में ऐसी स्थिति पहली बार है जबकि विविध समूह एक साथ रह रहे हैं.”
प्रवासियों की जरूरत है
आर्थिक चुनौतियों के सामने ये बाधाएं छोटी नजर आती हैं. क्रोएशियन इंपलॉयर्स एसोसिएशन का अनुमान है कि सिर्फ 38 लाख की आबादी वाले देश को इस दशक के आखिर तक पांच लाख विदेशी कामगारों की जरूरत पड़ेगी.
इसलिए अब सरकार विदेशी कर्मचारियों के लिए रहने और नौकरी की सुविधाओं को बेहतर बनाने की कोशिश भी कर रही है. हाल ही में सरकार ने ऐलान किया कि इसके लिए कानूनों में बदलाव किया जाएगा.
इस बीच मुश्किल वक्त से निकलने के बाद दुर्गा फुयाल को एक नौकरी मिल गई है और वह जल्दी ही एक ब्यूटी सलून में काम शुरू कर देंगी.
वीके/एए (एएफपी)