कम बच्चे पैदा करेंगे, तो दुनिया बची रहेगी
१२ अक्टूबर २०१९फिलहाल उनके दो बच्चे हैं. तीन साल का बेटा राशिद और उसका छोटा भाई बिलयामिनू, जिसका जन्म अभी हाल ही में हुआ है. अब जैनब ने गर्भनिरोधकों का इस्तेमाल करना शुरू किया और ज्यादा बच्चे पैदा करने की अपनी योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया है. उनका पूरा ध्यान अपने दोनों बच्चों को एक बेहतर जिंदगी देने पर है. जैनब कहती हैं, "मुझे गर्व है कि मैं गर्भनिरोधक इंप्लांट का इस्तेमाल कर रही हूं."
जैनब का फैसला वाकई बहुत बड़ा है. वह अफ्रीकी देश नाइजर में रहती हैं जहां प्रति महिला जन्मदर दुनिया में सबसे ज्यादा है. लेकिन नाइजर में पर्यावरणविद और युवा कार्यकर्ता ज्यादा से ज्यादा परिवारों से गर्भनिरोधकों को अपनाने को कह रहे हैं. उनके मुताबिक इससे जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने में मदद मिलेगी.
संयुक्त राष्ट्र के विकास कार्यक्रम के इस्सा लेले कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन की वजह से नाइजर के तापमान में तेजी से इजाफा हुआ है और नदियों में पानी कम हुआ है. सूखे और बाढ़ की समस्या भी बढ़ी है. ऐसे में, जनसंख्या तेजी से बढ़ने के कारण खाद्य और जल आपूर्ति के लिए जोखिम पैदा हो रहे हैं. पर्यावरण के लिए काम करने वाले एक समूह यंग वॉलेंटियर फॉर दि एनवार्नमेंट के निदेशक सानी आयोबा का कहना है कि नाइजर में प्रति महिला बच्चों का औसत 7.6 है.
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आयोबा के अपने तीन बच्चे हैं. उनका कहना है, "हम यह नहीं कह रहे हैं कि बच्चे पैदा ही मत कीजिए." उनका समूह लोगों से गर्भनिरोधकों का इस्तेमाल कर बच्चों की जन्म दर को धीमा करने की वकालत करता है.
दुनिया भर में बढ़ती आबादी के कारण पृथ्वी के सीमित संसाधन दबाव में हैं. जितने ज्यादा लोग होंगे, उतना ज्यादा खाना, परिवहन, ऊर्जा और अन्य संसाधनों की जरूरत होगी और इन सब की वजह से आखिरकर जलवायु परिवर्तन बढ़ेगा. अमीर देशों में स्थिति ज्यादा खराब है. वहां गरीब देशों के मुकाबले लोगों को ज्यादा संसाधनों की जरूरत होती है.
लेकिन नाइजर जैसे देशों में भी होने वाले हर जन्म का मतलब है कि देश के सीमित संसाधनों का बंटवारा ज्यादा लोगों के बीच होगा. इससे दुनिया संकट की तरफ बढ़ रही है क्योंकि जलवायु परिवर्तन की वजह से पहले ही खेती बाड़ी और खाद्य आपूर्ति प्रभावित हो रही हैं.
राजधानी नियामे के तालाज्ये इलाके में एक क्लीनिक में जैनब ने सितंबर में अपने बाजू में गर्भनिरोधक इंप्लांट कराया. एक मिडवाइफ ने सूईं की मदद से उनकी बांह में दो छेद किए और उनमें इंप्लांट लगा दिया. इस काम में पांच मिनट लगते हैं. लेकिन इससे तीन साल तक वह गर्भधारण नहीं कर पाएंगी. मिडवाइफ का कहना है कि इस इंप्लाट की कामयाबी दर 99 प्रतिशत है.
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नाइजर में अब तक गर्भनिरोध के तौर पर गोलियां ही सबसे लोकप्रिय रही हैं, लेकिन एक अंतरराष्ट्ररीय चैरिटी संस्था मैरी स्टॉप्स की तरफ से चलाए जा रहे इस क्लीनिक में गर्भनिरोधक इंप्लाट किए जा रहे हैं. इस क्लीनिक में बहुत सी महिलाएं आ रही हैं और अपनी त्वचा में इंप्लांट करा रही हैं.
नाइजर के सार्वजनिक स्वास्थ्य मंत्रालय में परिवार नियोजन निदेशक इस्सोफोऊ हारोऊ कहते हैं कि सरकार परिवार नियोजन के कुछ पहलुओं का समर्थन कर रही है और इसके लिए धन भी आवंटित किया जा रहा है. लेकिन कई विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार ने गर्भनिरोधक खरीदने के लिए जो 3.4 लाख डॉलर का राष्ट्रीय बजट निर्धारित किया है, वह पर्याप्त नहीं है.
नाकाफी बजट के साथ साथ समाज में गर्भनिरोधकों के लिए स्वीकार्यता भी बड़ी चुनौती है. नाइजर में 99 प्रतिशत आबादी मुसलमान है. देश के इस्लामिक एसोसिएशन के प्रमुख सिता अमादोऊ कहते हैं कि अगर बच्चों की ठीक से देखभाल हो सकती है तो इस्लाम परिवार में बच्चों की संख्या सीमित करने की वकालत नहीं करता. इसी कारण नाइजर में परिवार नियोजन के लिए काम करने वाले संगठनों का काम मुश्किल हो जाता है. वे पिछले साल से मुहिम चला रहे हैं कि परिवार नियोजन को अपना कर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटा जा सकता है.
कार्यकर्ताओं ने इस संबंध में संसद के सदस्यों और कैबिनेट मंत्रियों से भी मुलाकातें की हैं. इसके अलावा वे सामुदायिक नेताओं से भी मिले हैं. पिछले दिनों नियामे में हुए एक कार्यक्रम में आयोबा ने कहा, "बात सिर्फ कृषि में निवेश की नहीं है, बल्कि हमें गर्भनिरोधकों और परिवार नियोजन में भी निवेश करना होगा." तभी वहां मौजूद एक व्यक्ति ने कहा कि मुस्लिम अधिकारी इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेंगे.
एके/एमजे (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
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