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भारत में मलेरिया के मामले घटे, वैश्विक स्तर पर बढ़े

१ दिसम्बर २०२३

2019 तक दुनिया भर में मलेरिया का फैलाव घट रहा था, लेकिन कोविड महामारी के दौरान फिर से बढ़ने लगा. वैश्विक स्तर पर वही दौर अभी भी जारी है, लेकिन भारत में मलेरिया धीरे-धीरे कमजोर हो रहा है.

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मच्छर कपड़े में छेद कर खून पी रहा है
मच्छरतस्वीर: pzAxe/IMAGO

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कहा है कि दुनिया मलेरिया के खिलाफ लड़ाई में कोविड-19 महामारी के दौरान आई चुनौती से अभी भी जूझ रही है और जलवायु परिवर्तन भी इस लड़ाई को और मुश्किल बना रहा है.

संगठन की विश्व मलेरिया रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में दुनिया में मलेरिया के 24.9 करोड़ मामले दर्ज किए गए, जो 2021 के मुकाबले 50 लाख ज्यादा थे. वहीं इस बीमारी से मरने वालों की संख्या छह लाख से ज्यादा रही.

मलेरिया का वैक्सीन और मच्छरदानी से ज्यादा कारगर इलाज

लेकिन पूरी दुनिया में कभी मलेरिया के लिए बदनाम रहने वाले भारत में यह बीमारी अब धीरे-धीरे कमजोर होती नजर आ रही है. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक 2022 में भारत में मलेरिया के सिर्फ 33 लाख मामले दर्ज किए गए और 5,000 लोगों की मौत हुई. यह 2021 के मुकाबले, मामलों में 30 प्रतिशत और मृत्यु में 34 प्रतिशत की कमी थी.  

महामारी ने बढ़ाया संकट

वैश्विक स्तर पर 2019 तक मलेरिया के खिलाफ लड़ाई में दुनिया को सफलता मिल रही थी, लेकिन कोविड-19 महामारी ने सारी तस्वीर बदल दी. साल 2000 में दुनिया में एक साल में मलेरिया के 24.3 करोड़ मामले दर्ज किए गए थे, लेकिन 2019 तक इनकी संख्या गिर कर 23.3 करोड़ पर आ गई थी.

लेकिन महामारी के साथ ही 2020 में मामलों में उछाल आया. फिर 2021 में वो लगभग उतने ही रहे लेकिन 2022 में 50 लाख की उछाल दर्ज की गई. डबल्यूएचओ का कहना है कि ये नए 50 लाख मामले मुख्य रूप से पांच नए देशों से आए- पाकिस्तान, इथियोपिया, नाइजीरिया, यूगांडा और पापुआ न्यू गिनी.

अब डब्ल्यूएचओ चेता रहा है कि जलवायु परिवर्तन मलेरिया के खिलाफ लड़ाई में एक बड़ा संकट बन रहा है. संगठन के मुखिया  तेद्रोस अधनोम गेब्रयेसुस ने कहा, "बदलती हुई जलवायु मलेरिया के खिलाफ तरक्की के प्रति बहुत बड़ा खतरा बन रही है, विशेष रूप से कमजोर इलाकों में."

मच्छरदानी के अंदर सोता एक बच्चा
मलेरिया से बचाव के नए नए रास्ते भी तलाशे जा रहे हैंतस्वीर: picture alliance/Photononstop

उन्होंने आगे कहा, "मलेरिया के खिलाफ सस्टेनेबल और लचीली प्रतिक्रिया की आज पहले से भी कहीं ज्यादा जरूरत है. साथ ही ग्लोबल वार्मिंग की रफ्तार को धीमा करना और उसके असर को कम करने के त्वरित प्रयासों की भी जरूरत है."

जलवायु परिवर्तन का खतरा

संगठन का कहना है कि तापमान, ह्यूमिडिटी और बारिश में बदलाव मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों के व्यवहार और जिंदा रहने को प्रभावित करते हैं. हीटवेव और बाढ़ जैसी चरम मौसमी घटनाएं मलेरिया के मामलों को और बढ़ा देती हैं.

डब्ल्यूएचओ के वैश्विक मलेरिया कार्यक्रम के निदेशक डेनियल एनगामिजे ने एएफपी को बताया, "हम अलार्म बजा रहे हैं ताकि सबको एहसास हो जाए कि तापमान में हो रही बढ़ोतरी को रोकने का समय आ गया है."

उन्होंने यह भी बताया कि मलेरिया के खिलाफ तरक्की मोटे तौर पर पांच सालों से बस रुकी हुई है. हालांकि उन्होंने यह भी कहा, "अच्छी खबरें भी हैं, विशेष रूप से मलेरिया रोकने के नए तरीकों को लेकर. इनमें विशेष हैं कीटनाशक लगी हुई नई मच्छरदानियां...और सबसे बड़ी चीज, मलेरिया के खिलाफ दूसरी वैक्सीन का लाया जाना."

संगठन को अफ्रीका में दुनिया की पहली मलेरिया वैक्सीन (आरटीएस, एस) शुरू करने को लेकर काफी उम्मीदें हैं. इसका पायलट सफल रहा था. संगठन ने अक्टूबर में ही दूसरी मलेरिया वैक्सीन (आर21) को भी मंजूरी दी है.

सीके/एए (एएफपी)