मनरेगा मजदूरों की बढ़ी दिहाड़ी लेकिन असमानता नहीं मिटी
२८ मार्च २०२३महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार अधिनियम (मनरेगा) के तहत अगले वित्त वर्ष 2023-24 में दिहाड़ी बढ़ाने के लिए भारत सरकार ने अधिसूचना जारी कर दी है. केंद्र सरकार की ओर से जारी अधिसूचना के तहत मनरेगा मजदूरों के वेतन में सात रुपये से लेकर 26 रुपये तक की बढ़ोत्तरी की गई है. प्रतिशत के लिहाज से देखा जाए तो दिहाड़ी में वेतन वृद्धि दो से दस प्रतिशत तक होगी. ये नई दरें एक अप्रैल से लागू होंगी. अधिसूचना में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम में संशोधन की घोषणा की है. दिहाड़ी संशोधन महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना 2005 की धारा 6 (1) के तहत किया गया है.
किस राज्य में कितनी बढ़ोतरी
इस बढ़ोत्तरी के बाद हरियाणा में उच्चतम मजदूरी दर 357 रुपये प्रतिदिन होगी. दूसरी ओर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में सबसे कम दैनिक मजदूरी दर 221 रुपये है. वहीं राजस्थान में वर्तमान मजदूरी दर की तुलना में अधिकतम 10.39 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और गोवा में सबसे कम 2.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है. राजस्थान में 2022-23 के लिए दिहाड़ी 231 रुपये थी जो वित्तीय वर्ष 2023-2024 के लिए 255 रुपये हो गई है.
बिहार और झारखंड में 100 दिन के काम के लिए प्रतिदिन दिहाड़ी में 8.57 फीसदी की बढ़त लाई गई है. झारखंड में 18 रुपये प्रतिदिन की बढ़ोत्तरी हुई है और अब मजदूरों को वहां 228 रुपये प्रतिदिन मिलेंगे. झारखंड की तरह बिहार में भी मजदूरों को 228 रुपये प्रतिदिन मिलेंगे.
छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में सबसे कम दिहाड़ी
वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ ने देश में सबसे कम मजदूरी निर्धारित की है जो कि 221 रुपये प्रति दिन है. वह भी तब जब इन दोनों राज्यों में 17 रुपये की बढ़ोत्तरी की गई है. पहले वहां मजदूरी 204 रुपये प्रति दिन थी.
वहीं अन्य राज्यों की बात करें तो कर्नाटक, गोवा, मेघालय और मणिपुर में दिहाड़ी बहुत कम दर से बढ़ी है. इन राज्यों में दो से लेकर दस प्रतिशत की दर से दिहाड़ी बढ़ी है.
अलग अलग क्यों है मजदूरी
पिछले साल भारतीय रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि ग्रामीण मजदूरों की दैनिक मजदूरी में अलग-अलग राज्यों में काफी असमानता है. देश में महंगाई दर के लगातार ऊंची रहने के बावजूद कई राज्यों में मजदूरों को दिन के काम के बदले दो सौ रुपये के करीब दिए जाते हैं. जानकार कहते हैं कि दिहाड़ी में असमानता के कई कारण हो सकते हैं जैसे महंगाई, ग्रामीण बेरोजगारी ज्यादा होना आदि.
कार्डिफ बिजनेस स्कूल के इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर इंद्राजीत रे कहते हैं कि अगर हम आंकड़ों की बात करें तो जब से मनरेगा शुरू हुआ है ये अलग-अलग रहा है. इंद्राजीत रे डीडब्ल्यू हिंदी से कहते हैं, "भारत के अलग-अलग राज्यों में जीवन यापन की लागत अलग-अलग होती है, उदाहरण के लिए जो खर्च दिल्ली में होता है वह खर्च कोलकाता में नहीं होता. और इस वजह से कह सकते हैं हर राज्य में दिहाड़ी भी अलग होती है."
प्रोफेसर इंद्राजीत के मुताबिक कुछ स्थानों पर शायद महंगाई की मार ज्यादा पड़ी है जिस वजह से बढ़ोतरी भी ज्यादा हुई है. उदाहरण के लिए गोवा में दो प्रतिशत के करीब बढ़ोतरी हुई है तो शायद हम यहां कह सकते हैं कि वहां जीवन यापन लागत उतनी नहीं बढ़ी हो.
लेकिन वह साथ ही कहते हैं जब महंगाई की दर को राष्ट्रीय स्तर पर देखा जाता है तो उसी हिसाब से दिहाड़ी में बढ़ोतरी भी होनी चाहिए.
भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक मनरेगा योजना से जुड़े हुए कामकाजी मजदूरों की संख्या लगभग 14.96 करोड़ है. इस योजना को परिवारों को गरीबी से निकालने और महिला और शोषित वर्गों को सशक्त करने का श्रेय दिया जाता है. प्रोफेसर इंद्राजीत का कहना है कि मनरेगा एक ग्रामीण योजना है और इसके आंकड़े बताते हैं कि किस राज्य के ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी की दर सबसे अधिक है. जैसे कि झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल. हरियाणा जैसे राज्य में ग्रामीण बेरोजगारी अधिक है और शायद हो सकता है कि वहां प्रतिदिन दिहाड़ी अधिक दी जा रही है इसलिए मनरेगा में भी पैसा ज्यादा मिल रहा है.
क्या है मनरेगा
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना जिसे दुनिया का सबसे बड़ा कार्य गारंटी कार्यक्रम भी कहा जाता है, वह ग्रामीणों को अकुशल शारीरिक कार्य करने की गारंटी देता है. हर वित्तीय वर्ष में ग्रामीण परिवार का वयस्क सदस्य 100 दिन काम कर सकता है और इसके एवज में उसे तय दिहाड़ी दी जाती है.
मनरेगा योजना भी राजनीति से अछूती नहीं रही है. विपक्ष में रहते हुए बीजेपी ने शुरू से ही इस पर सवाल उठाते हुए इसमें भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के आरोप लगाए थे. सरकार में आने के बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में इसे कांग्रेस की विफलताओं का स्मारक बताया था. ग्रामीण इलाकों में काम की कमी मनरेगा को आकर्षक बनाती है. ऐसे ग्रामीण लोगों के लिए मनरेगा आय का एक जरिया है जो अपने गांव में ही रहकर रोजगार करना चाहते हैं.
प्रोफेसर इंद्राजीत मनरेगा को एक सफल योजना तो बताते हैं लेकिन कहते हैं इसमें और अधिक सुधार की गुंजाइश है. वह कहते, "इस योजना से हमें बहुत उम्मीदें हैं. ग्रामीण इलाकों और शहरी इलाकों में असमानता बहुत है. हम सभी जानते हैं कि इस योजना में भ्रष्टाचार भी बहुत होता जो कि रुकना चाहिए. साथ ही योजना में 100 दिन काम की गारंटी है जिसे और बढ़ाया जाना चाहिए."