बच्चे पैदा करने हजारों किलोमीटर दूर जाते हैं चमगादड़
६ जनवरी २०२५वैज्ञानिकों को अब तक चमगादड़ों के प्रवास के बारे में कम ही जानकारी थी. एक नई कोशिश के तहत इन चमगादड़ों में छोटे ट्रांसमीटर और कम ताकतवर सेंसरों के नेटवर्क की मदद से इनके प्रवास पर नई जानकारी जुटाई गई है. शुक्रवार को साइंस जर्नल में इस बारे में एक रिसर्च रिपोर्ट छपी है.
चमगादड़ घटे तो 1,300 बच्चों की मौत हुई
रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक अनुकूल हवा का फायदा उठा कर चमगादड़ यूरोप में 1,000 किलोमीटर से ज्यादा की यात्रा कर आते हैं. चूहे के बराबर आकार वाले ये छोटे चमगादड़ बच्चे पालने के लिए उचित जगह की तलाश में यह यात्रा करते हैं. इन्हें सामान्य रूप से नॉक्टुला (निकेटैलस नॉक्टुला) कहा जाता है. इनकी यात्रा का समय मौसम के हिसाब से तय होता है.
चमगादड़ पर नजर रखना कठिन
चमगादड़ों के बारे में इस खोज से उन्हें पवनचक्कियों की चपेट में आने से बचाने में मदद मिल सकती है. छोटे जीवों के प्रवास के बारे में पता लगाना कठिन होता है. जीवविज्ञानी लंबे समय से चमगादड़ों के प्रवास के बारे में जानकारी जुटाने की कोशिश कर रहे थे. चमगादड़ों में पारंपरिक टैग लगाने से रिसर्चरों को बस यही पता लग पा रहा था कि उन्होंने यात्रा की शुरुआत कहां की और उसे खत्म कहां किया. इसके अतिरिक्त ड्रोन और वेदर रडार के इस्तेमाल से भी चमगादड़ों के उड़ने के रास्ते का कुछ पता चला.
करोड़ों साल पुराने चमगादड़ों की एक अलग प्रजाति का पता चला
फ्रांस के नेशनल म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री के संरक्षण जीवविज्ञानी शाहलोत रोएमर और उनके सहयोगियों ने 30 देशों में चमगादड़ों पर काम करने वाले 60 संरक्षकों के जमा किए अल्ट्रासोनिक रिकॉर्डिंग को भी जमा किया ताकि चमगादड़ों के प्रवास के रास्ते का पता चल सके. हालांकि इनमें से कोई भी तरीका पूरे रास्ते के बारे में जानकारी नहीं दे सका. ऐसे में माक्स प्लांक इंस्टीट्यूट ऑफ एनिमल बिहेवियर ने एक सेंसर विकसित किया है.
एक ग्राम वजनी इस सेंसर को आसानी से नॉक्टुला चमगादड़ों में लगाया जा सकता है, और वो इसे साथ लेकर आसानी से उड़ान भर सकते हैं. अस्थायी सर्जिकल ग्लू के सहारे यह उनके बदन से चिपका दिया जाता है. ये सेंसर दो हफ्ते तक उनके शरीर पर रहते हैं और उनकी गति के साथ ही तापमान को भी रिकॉर्ड करते हैं. पूरे दिन में 1,440 बार आंकड़े दर्ज करके उन्हें भेजना यही सेंसरों का काम है.
मिनट दर मिनट उड़ान की जानकारी
वैज्ञानिकों ने पहले इन आंकड़ों को एक एंटिना का इस्तेमाल कर अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन के जरिये हासिल करने की योजना बनाई थी. हालांकि रूस-यूक्रेन संघर्ष ने उस सहयोग का रास्ता बंद कर दिया. तब माक्स प्लांक इंस्टिट्यूट के बिहेवियरल इकोलॉजिस्ट एडवर्ड हुर्मे और उनके सहयोगियों ने कंप्यूटर, स्मार्टफोन और दूसरे उपकरणों का एक व्यापक नेटवर्क बनाया और इसके जरिए हर दिन आने वाले आंकड़ों तक पहुंच बनाई. सेंसर नेटवर्क में मौजूद पास के उपकरणों तक मिनट दर मिनट जानकारी भेजते रहे.
3 साल से ज्यादा के वक्त में 125 चमगादड़ों पर ये सेंसर लगाए गए. हुर्मे और उनकी टीम को इनमें से 71 चमगादड़ों का आंकड़ा हासिल हुआ. चमगादड़ जब उत्तरी जर्मनी, पोलैंड और चेक रिपब्लिक की तरफ बढ़े तो रिसर्चरों को उम्मीद थी कि वे एक तय और सीधे रास्ते से हो कर जाएंगे. हालांकि सेंसरों की मदद से उन्होंने देखा कि उनकी यात्रा का कोई गलियारा नहीं था. चमगादड़ों ने कई दिशाओं में उड़ना शुरू किया लेकिन आमतौर पर वे उत्तर पश्चिम दिशा की ओर बढ़े.
रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने हर रात करीब 383 किलोमीट तक की यात्रा की और उनकी गति 13 से 43 मीटर प्रति सेकेंड थी. सेंसर अक्सर पूरे वक्त काम नहीं कर सके लेकिन वो इतनी देर तक जरूर चलते रहे कि चमगादड़ों की मंजिल की जानकारी मिल सके. रोएमर के मुताबिक उन्होंने इस बात के भी सबूत दिए कि सारे चमगादड़ एक दिशा में प्रवास नहीं करते.
हुर्मे और उनकी टीम ने इसमें मौसम के आंकड़ों को भी जोड़ कर देखा. इसमें हवा की गति और दिशा, हवा का दबाव, बादल, बारिश और हवा का तापमान सबको आंकड़ों के विश्लेषण में शामिल किया. हुर्मे का कहना है कि इसके नतीजे में, "हमने उन पर्यावरणीय स्थितियों को समझना शुरू किया" जो चमगादड़ों को उनके वसंत प्रवास के लिए प्रेरित करती हैं. प्रजनन के बाद चमगादड़ स्विट्जरलैंड लौट कर शीतनिद्रा में चले जाते हैं.