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समाजब्राजील

ब्राजील में बंदरों की जान लेता मंकीपॉक्स शब्द

१० अगस्त २०२२

ब्राजील में कई जगहों पर बंदरों की जान ली जा रही है. लोगों को लग रहा है कि मंकीपॉक्स बंदर से फैल रहा है. एक कस्बे में तो 10 बंदरों जहर दे दिया गया.

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ब्राजील में बंदर
तस्वीर: Pavel Golovkin/AP/picture alliance

दक्षिण अमेरिकी देश, ब्राजील में अब तक मंकीपॉक्स के 1700 मामले आ चुके हैं. ये आंकड़े विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के हैं. ब्राजील के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक देश में मंकीपॉक्स से 29 जुलाई को एक मौत भी हुई. मंकीपॉक्स के डर के बीच ब्राजील में सोशल मीडिया और व्हट्सऐप पर ऐसी अफवाहें फैल रही हैं कि मंकीपॉक्स का संक्रमण बंदरों की वजह से फैल रहा है.

ब्राजील की न्यूज वेबसाइट जी1 के मुताबिक, साओ होजे प्रेटो कस्बे में मंकीपॉक्स से जुड़ी अफवाहें फैलने के बाद 10 बंदरों को जहर दे दिया गया. पांच बंदरों की मौत हो गई. बाकियों का चिड़ियाघर में इलाज चल रहा है. मामले का पता तब चला जब लोगों ने कुछ बंदरों को छटपटाते हुए देखा. पास ही में कुछ बंदर मरे हुए थे और जो बचे थे वे बार बार गश खा रहे थे. मौके पर पहुंचे अधिकारियों ने जिंदा बचे बंदरों को रेस्क्यू किया और चिड़ियाघर पहुंचाया.

बीते कुछ दिनों में ब्राजील में बंदरों को मारने की कई घटनाएं सामने आई हैं. ब्राजील का मीडिया ऐसी खबरों से भरा पड़ा है. माटा देस मार्तोस शहर में भी बंदरों को जहर दिया गया. वहां कुछ बंदर पेड़ से गिरकर मरे और कुछ इलाज के दौरान मारे गए. माटा देस मार्तोस के अधिकारियों के मुताबिक, सारे बंदरों में एक जैसे लक्षण दिखे. उन्हें उल्टियां हो रही थीं. जहर का असर ऐसा था कि बंदरों ने खाना पीना भी छोड़ दिया.

वर्षावनों की अंधाधुंध कटाई के कारण शहरों की तरफ आए बंदर
वर्षावनों की अंधाधुंध कटाई के कारण शहरों की तरफ आए बंदरतस्वीर: Bruna Prado/Getty Images

डब्ल्यूएचओ का दखल

मंकीपॉक्स बीमारी की असली जड़ मंकीपॉक्स वायरस है. यह वायरस छींक, कफ या शारीरिक संपर्क के जरिए एक इंसान से दूसरे इंसान में फैलता है. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक मंकीपॉक्स से संक्रमित व्यक्ति के करीबी संपर्क में आने पर यह बीमारी सबसे ज्यादा फैलती है. डब्ल्यूएचओ ने ब्राजील में बंदरों को निशाना बनाए जाने पर नाराजगी जाहिर की है. जेनेवा में डब्ल्यूएचओ की प्रवक्ता माग्रारेट हैरिस ने कहा, "लोगों को यह पता होना चाहिए कि अभी हम जो संक्रमण देख रहे हैं, वह इंसान से इंसान में फैल रहा है." हैरिस के मुताबिक मंकीपॉक्स जानवरों से इंसान में फैल सकता है, लेकिन मौजूदा संक्रमण इंसानों से फैल रहा है. उन्होंने बंदरों को ना मारने की अपील भी की है.

मई से अब तक दुनिया भर में मंकीपॉक्स के 29,000 मामले आ चुके हैं. यह वायरस अब तक 90 देशों में फैल चुका है. ब्राजील और भारत में मंकीपॉक्स के चलते एक-एक जान भी गई है. लंबे समय तक मंकीपॉक्स को करीबन खत्म हो चुकी बीमारी माना गया. लेकिन 2022 की गर्मियों में अचानक अमेरिका में इसके कुछ केस सामने आए और फिर धीरे धीरे बीमारी कई देशों में फैलती गई. जुलाई 2022 में डब्ल्यूएचओ ने मंकीपॉक्स को ग्लोबल हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर दिया.

मंकीपॉक्स के खिलाफ स्मॉलपॉक्स की वैक्सीन कारगर
मंकीपॉक्स के खिलाफ स्मॉलपॉक्स की वैक्सीन कारगरतस्वीर: Gideon Markowicz/Xinhua News Agency/picture alliance

मंकीपॉक्स को रोकने के लिए स्मॉलपॉक्स की वैक्सीन को मंजूरी

जब मुसीबत बन जाए नाम

किसी वायरस का नाम बड़ी मुश्किल खड़ी कर सकता है. इस बात के कई उदाहरण सामने आ चुके हैं, जैसे स्पेनिश फ्लू, वेस्ट नाइल वायरस, इंडियन कॉलरा और चिकनपॉक्स. करीब एक दशक पहले दिल्ली के अस्पतालों में एक शक्तिशाली एंटीबायोटिक प्रतिरोधी वायरस बग मिला, जिसे न्यू डेल्ही सुपरबग नाम दिया गया. ऐसा ही कुछ कोविड-19 के दौरान भी हुआ. शुरुआत में अमेरिकी मीडिया के एक तबके ने इसे चाइनीज वायरस और वुहान वायरस कहा. चीन के तीखे विरोध के बाद इस नाम से किनारा किया गया. कोविड महामारी के दौरान मिले भारत में मिले एक वैरिएंट को कई महीनों तक इंडियन वैरिएंट कहा गया. नई दिल्ली की आपत्ति के बाद इसे डेल्टा वैरिएंट नाम दिया गया. इसी तरह दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील में मिले वैरिएंट्स को भी कुछ समय बाद ओमिक्रॉन नाम दिया गया.

न्यूयॉर्क की गुजारिश, मंकीपॉक्स वायरस का नाम बदला जाए

असल में वायरस का नाम किसी इलाके या जीव प्रति लोगों में पूर्वाग्रह भर सकता है. स्वाइन फ्लू (बाद में एच1एन1), बर्ल्ड फ्लू और मंकीपॉक्स जैसे नाम इसके सबूत हैं. ऐसे नामों के आधार पर अफवाहें बड़ी आसानी से फैलती हैं. कई मौकों पर ऐसे नामों का इस्तेमाल नस्लीय तानों में किये जाने की घटनाएं भी सामने आ चुकी हैं.

वैज्ञानिक समुदाय लंबे समय से यह मांग कर रहा है कि बीमारियों का नाम किसी जगह या जीव से ना जोड़ा जाए. फिलहाल किसी नए वायरस का नाम इंटरनेशनल कमेटी ऑन टैक्सोनॉमी ऑफ वायरस (आईसीटीवी) रखती है. हालांकि आईसीटीवी के विशेषज्ञों के किसी एक नाम पर सहमत होने से पहले ही इलाके या जीव पर आधारित सरल नाम इस्तेमाल होने लगते हैं.

ओएसजे/एनआर (एपी, एएफपी)