लैंडिंग से पहले चंद्रयान-3 ने भेजी तस्वीर
२१ अगस्त २०२३चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव को छूने चला रूसी मिशन लूना-25 नाकाम हो गया है. लैंडिंग से ठीक पहले होने वाली तकनीकी प्रक्रिया के दौरान लैंडर क्रैश हो गया. लूना-25 मिशन के जरिए रूस करीब 50 साल बाद चंद्रमा को छूने की कोशिश कर रहा था.
पचास साल में पहली बार चांद पर पहुंचने की कोशिश में रूस
रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रोसकोमोस के मुताबिक 19 अगस्त को लूना-25 से संपर्क टूटा. स्पेस एजेंसी का कहना है, "19 और 20 अगस्त को क्राफ्ट का पता लगाने और उससे संपर्क साधने के लिए कदम उठाए गए, जो नाकाम रहे." शुरुआती जांच के बाद कहा गया कि लैंडर चंद्रमा की सतह से टकराकर क्रैश हो चुका है.
अब दारोमदार चंद्रयान-3 पर
लूना-25 अभियान की विफलता के बाद अब भारत का चंद्रयान-3 मिशन, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने की कोशिश करने जा रहा है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी (इसरो) के मुताबिक चंद्रयान-3, 23 अगस्त को चांद पर उतरेगा.
भारत के पहले चंद्रमा मिशन, चंद्रयान-1 ने चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पानी के सबूत जुटाने में अहम योगदान दिया था. इस खोज को आगे बढ़ाने के इरादे से भेजा गया चंद्रयान-2 मिशन, 2019 में लैंडिंग के दौरान क्रैश हो गया.
भारत सरकार ने बताया कि चंद्रयान 2 के विक्रम लैंडर के साथ क्या हुआ
अब तीसरी बार, चंद्रयान-3 के जरिए इसरो, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर बर्फ के रूप में जमे पानी के नमूने जुटाने की कोशिश करेगा. अगर अभियान अपने उद्देश्य में सफल रहा, तो भविष्य में इंसान के चांद पर रह सकने की संभावनाओं को बड़ी कामयाबी मिलेगी. पानी जीवन के लिए सबसे जरूरी तत्वों में से एक है. पानी की मदद से भविष्य के मिशनों के लिए ऑक्सीजन और पेयजल बनाया जा सकेगा.
क्यों दुश्वार है दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग
चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की सतह बेहद उबड़-खाबड़ है. वहां स्थिरता के साथ उतरना बहुत मुश्किल माना जाता है. अगर भारत का मिशन वहां लैंड करने में सफल रहा, तो ये ऐतिहासिक लम्हा होगा.
लैंडिंग से करीब 48 घंटे पहले इसरो के यान ने चांद की सतह की एक तस्वीर भेजी है. लैंडर के "हैजार्ड डिटेक्शन एंड अवॉएडेंस" कैमरे ने यह तस्वीर ली. इस सिस्टम की मदद से यान, लैंडिंग के लिए सबसे सुरक्षित जगह खोजता है.
चंद्रयान-3 मिशन, 14 जुलाई को पृथ्वी से निकला था. अगस्त के दूसरे हफ्ते में चंद्रयान-3, रॉकेट से अलग होकर चांद की कक्षाओं की ओर बढ़ा. मिशन का बजट 7.4 करोड़ अमेरिकी डॉलर है. यह 2013 में बनी हॉलीवुड की फिल्म ग्रैविटी से कम है. चांद की सतह पर अब तक सोवियत संघ, अमेरिका और चीन ही सफलता पूर्वक उतर चुके हैं.
ओएसजे/एसएम (एएफपी, रॉयटर्स)