क्यों कम चुने जा रहे हैं मुसलमान सांसद
८ अप्रैल २०२४उत्तर प्रदेश के रामपुर में आधे से अधिक मतदाता मुसलमान हैं, लेकिन इसके संसद सदस्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पार्टी से आते हैं. यह स्थिति पूरे हिंदू-बहुल भारत में दोहराई जाती दिख रही है, जहां कई लोग आगामी आम चुनावों में नरेंद्र मोदी की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की जीत को लगभग निश्चित मानते हैं और मुसलमान उम्मीदवारों की हार करीब-करीब तय मानते हैं.
भारत की कुल 1.4 अरब आबादी में मुसलमानों की आबादी 22 करोड़ है, लेकिन 1970 के दशक के बाद से संसद में मुस्लिम प्रतिनिधियों की संख्या लगभग आधी होकर पांच प्रतिशत से भी कम हो गई है.
रामपुर से सांसद घनश्याम सिंह लोधी कहते हैं, "हर कोई बीजेपी से जुड़ना चाहता है." 2022 में हुए उप चुनाव में लोधी ने यह सीट जीती थी. लोधी कभी समाजवादी पार्टी में हुआ करते थे लेकिन उन्होंने बाद में बीजेपी का दामन थाम लिया.
मुसलमान नेता संसद में प्रतिनिधित्व की कमी से चिंतित हैं. संसद के 543 सीटों वाले निचले सदन में सिर्फ 27 मुस्लिम सांसद थे और उनमें से कोई भी बीजेपी के 310 सांसदों में से नहीं था.
नहीं उभरा कोई मुस्लिम नेता
'मुस्लिम्स इन इंडिया' के लेखक जिया उस सलाम कहते हैं कि समुदाय के सदस्यों ने दशकों से धर्मनिरपेक्ष पार्टियों पर भरोसा जताया है और यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसने "मुस्लिम नेतृत्व की तेज अनुपस्थिति" पैदा की.
आज एक खुले तौर पर मुस्लिम नेता को सांप्रदायिक विभाजन को बढ़ावा देने के रूप में चुनौती दी जाएगी, फिर भी जब मोदी संवैधानिक रूप से धर्मनिरपेक्ष भारत को "हिंदू राष्ट्र" या हिंदू राज्य के रूप में प्रचारित करते हैं तो कुछ ही लोग सवाल उठाते हैं.
सलाम कहते हैं, "कोई भी (मोदी के) केवल हिंदुओं का नेता होने की बात नहीं करता." वो यह भी दलील देते हैं कि पर्याप्त मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्रों को विभाजित करने के लिए चुनावी सीमाओं को फिर से परिभाषित किया गया.
मुसलमान सांसद कम चुने जा रहे हैं
1952 से अब तक रामपुर से 18 में से 15 बार मुसलमान सांसद चुने गए हैं. लेकिन शहर के 71 साल के एक्टिविस्ट और लेखक कंवल भारती कहते हैं कि बीजेपी के प्रभुत्व का मतलब है कि किसी मुस्लिम उम्मीदवार के लिए रामपुर जीतना "अब संभव नहीं लगता."
रामपुर के आखिरी मुसलमान सांसद कद्दावर नेता मोहम्मद आजम खान थे, लेकिन उनके खिलाफ जमीन हड़पने से लेकर सरकारी अधिकारियों को डराने-धमकाने तक के 80 से अधिक मामले आने के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था.
उनके समर्थकों का कहना है कई आरोप वर्षों पुराने थे और 2017 में बीजेपी के राज्य चुनाव जीतने के बाद ही आरोप देर से लगाए गए थे. आजम खान को 2023 में हेट स्पीच के मामले में सजा हुई थी.
पिछले चुनाव में यह आरोप लगे थे कि सुरक्षा बलों ने मुसलमानों को मतदान करने से रोक दिया था. इस बार रामपुर के कुछ मुस्लिम मतदाता वोट डालने को लेकर चिंतित हैं. 75 साल के मोहम्मद सलाम खान कहते हैं, "अगर पिछले चुनाव के दौरान की स्थिति दोहराई गई, तो मैं फिर से वोट नहीं डाल पाऊंगा."
एआईएमआईएम के सांसद असदुद्दीन ओवैसी कहते हैं कि यह एक व्यावक बदलाव का हिस्सा है. ओवैसी का मानना है कि धर्मनिरपेक्ष दल भी मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देने से बचते हैं क्योंकि उन्हें डर होता है कि वे हिंदू मतदाताओं को आकर्षित नहीं कर पाएंगे.
सत्ताधारी दल पर मुसलमानों के खिलाफ डर पैदा करने का आरोप लगाते हुए ओवैसी ने कहा, "वे एक मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट देने से भी डरते हैं."
ओवैसी कहते हैं, "किसी भी राजनीतिक दल के मुस्लिम उम्मीदवारों के लिए जीतना बहुत मुश्किल है."
बीजेपी का भेदभाव से इनकार
बीजेपी धर्म के आधार पर "सीधे भेदभाव" से इनकार करती है और कहती है कि टिकट देना चुनाव जीतने वाले उम्मीदवारों पर निर्भर करता है.
पिछले दो आम चुनावों में बीजेपी द्वारा मैदान में उतारे गए मुट्ठी भर मुस्लिम उम्मीदवार हार गए थे. आलोचक पार्टी पर उनके चुनाव प्रचार में उदासीनता दिखाने का आरोप लगाते हैं.
बीजेपी के प्रवक्ता महोनलुमो किकोन कहते हैं, "आदर्श रूप से हमारी यह उम्मीद है कि हर समुदाय के लोग इसमें शामिल हों."
लेकिन लेखक सलाम को लगता है कि मुसलमानों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया से बाहर किया जा रहा है. वह कहते हैं, "इसलिए, आप मुसलमानों को एक जगह से टिकट नहीं देते हैं, आप किसी अन्य स्थान पर निर्वाचन क्षेत्र दोबारा बनाते हैं... या आप मुसलमानों को वोट देने की अनुमति नहीं देते हैं."
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि "यह सिर्फ डराना-धमकाना नहीं है. यह उन्मूलन भी है."
एए/वीके (एएफपी)