सेक्स एजुकेशन: शादी की पहली रात से जुड़े भ्रम और अंधविश्वास
५ मार्च २०२४उत्तर प्रदेश के हमीरपुर में शादी के एक हफ्ते बाद ही एक युवती की मौत हो गई. शादी की रात युवती के पति ने सेक्स वर्धक दवाएं खाकर कई बार उसके साथ सेक्स किया. इसके बाद ही वह बीमार पड़ गई. इलाज के लिए उसे कानपुर के एक निजी अस्पताल में भर्ती करवाया गया.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक गहरी चोट के कारण फैले इंफेक्शन की वजह से 10 फरवरी को युवती की मौत हो गई. देखा जाए तो यह मामला सिर्फ गहरी चोट के कारण एक महिला की मौत तक सीमित नहीं है. यहां शादी की पहली रात से जुड़े मिथक और सेक्स में महिला की सहमति की अहमियत का जिक्र जरूरी है. साथ ही, अपने शरीर के बारे में जानकारी न होना, सेक्स एजुकेशन की कमी और शादी में हिंसा जैसे कई मुद्दे रेखांकित होते हैं.
शादी की पहली रात का ‘मिथक'
"शादी की पहली रात ही पता चल जाता है कि लड़की वर्जिन है या नहीं! शादी की पहली रात को संबंध बनाना बेहद जरूरी होता है! लड़की की सहमति यहां मायने नहीं रखती क्योंकि ये उसका फर्ज है, वगैरह." ‘वेडिंग नाइट,' यानी शादी की पहली रात से जुड़ी कई गलतफहमियां, भ्रांतियां और यहां तक कि अंधविश्वास भी हमारे आसपास मौजूद हैं.
जैसे कि, महाराष्ट्र के कंजरभाट समुदाय की महिलाओं को शादी की पहली रात ‘वर्जिनिटी टेस्ट' से गुजरना पड़ता है. शादीशुदा जोड़े सफेद चादर पर संबंध बनाते हैं. संबंध बनाने के बाद अगली सुबह पति, पंचायत के सामने सफेद चादर पर लगे खून के धब्बे को लड़की के ‘वर्जिन' होने के सबूत के रूप में पेश करते हैं. हालांकि, इस प्रथा का विरोध भी किया गया.
तार्शी भारत में यौन और प्रजनन अधिकारों पर काम करनेवाली एक संस्था है. गुंजन शर्मा एक दशक से भी अधिक वक्त तक इस संस्था से जुड़ी रही हैं. वह बताती हैं, "सेक्स के बारे में बात करने में एक झिझक, एक किस्म की शर्म शुरू से रही है. हमारी संस्था ने सेक्स एजुकेशन, जेंडर आदि से जुड़े मुद्दों पर काम करने के लिए हेल्पलाइन शुरू की थी."
गुंजन आगे बताती हैं, "लोग हमसे शादी की पहली रात को लेकर परफॉर्मेंस एंग्जायटी से जुड़े सवाल पूछा करते थे. पहली रात को लेकर आज भी लोगों के अंदर ‘फेल' होने का डर होता है. हमीरपुर का केस ही देखिए, आखिर उस शख्स ने सेक्स की ताकत बढ़ाने वाली गोलियां क्यों ली होंगी. क्यों उसने कहीं से सही जानकारी नहीं ली, क्योंकि हमारे पास कोई ऐसी एक जगह या प्लेटफॉर्म ही नहीं है, जहां हमें सेक्स एजुकेशन मिल सके."
शादी और यौन हिंसा
स्त्री रोग विशेषज्ञ और एशिया सेफ एबॉर्शन पार्टनरशिप की समन्वयक डॉ. सुचित्रा दलवी ने डीडब्ल्यू को बताया कि यह मामला सिर्फ ‘टिप ऑफ द आइसबर्ग' की तरह है. इससे मिलते-जुलते, शायद थोड़े कम गंभीर मामले न जाने कितने ही होंगे. कितनी ही महिलाएं शादी में ऐसी हिंसा का सामना करती हैं.
आप सोचिए, दो अनजान लोग जो शादी के बाद मिलते हैं, उन पर ‘परफॉर्म' करने का दबाव होता है. इस मामले में यह भी देखने की जरूरत है कि हमीरपुर घटना में उस शख्स पर अपनी ‘मर्दानगी' साबित करने का दबाव था. यह उस सोच की ओर भी इशारा करती है, जहां पेनेट्रेटिव सेक्स के जरिये महिलाओं के शरीर पर अधिकार जताया जाता है.
2022 में दिल्ली हाई कोर्ट में मैरिटल रेप के मामले पर सुनवाई हुई थी. कोर्ट ने इस पर बंटा हुआ फैसला दिया था. इस पूरी सुनवाई के दौरान सोशल मीडिया, खासकर ट्विटर (अब X) पर #MarriageStrike नाम का ट्रेंड चलाया गया था. शादी में होनेवाली यौन हिंसा के बचाव में इस ट्रेंड के तहत तमाम तर्क दिए गए कि कैसे अगर यह कानून बना, तो मर्दों को शोषित करने का एक नया तरीका बन जाएगा.
यह ट्रेंड सिर्फ इस बात का एक उदाहरण है, जिसे हमारा समाज शुरू से नकारता आ रहा है. शादी में भी महिलाएं यौन हिंसा का सामना करती हैं. शादी को लेकर एक आम समझ यही कहती है कि शादी का मतलब एक महिला की तरफ से सेक्स के लिए आजीवन सहमति है. शादीशुदा महिलाओं के साथ होनेवाली यौन हिंसा के सामने न आने की एक बड़ी वजह यह सोच भी है.
हमीरपुर में जो हुआ वह सिर्फ सेक्स वर्धक दवा खाकर संबंध बनाने का नतीजा नहीं था, बल्कि यौन हिंसा भी थी. बिना सहमति के साथ किसी के साथ शारीरिक संबंध बनाना यौन हिंसा है. लेकिन बात जैसे ही शादी के रिश्ते में यौन हिंसा यानी मैरिटल रेप की आती है, इसकी परिभाषा धुंधली हो जाती है.
क्या बताते हैं आंकड़े
हमीरपुर केस सिर्फ इकलौता मामला नहीं है, जहां एक महिला के पास अपने पति को सेक्स के लिए ना कहने का अधिकार नहीं था. नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के मुताबिक, भारत में 82 फीसदी महिलाओं के साथ उनके पति ही यौन हिंसा करते पाए गए. सर्वे के लिए जिन 4,169 महिलाओं का इंटरव्यू किया गया, उनमें से करीब 84 फीसदी प्रतिभागियों ने माना कि उनके पतियों ने जबरदस्ती उनके साथ यौन संबंध बनाए.
चूंकि मैरिटल रेप को भारत में आज भी एक अपराध नहीं माना जाता, तो पीड़ित इसके खिलाफ आधिकारिक रूप से शिकायत भी दर्ज नहीं कर सकते. जबकि यूएन के महिलाओं के खिलाफ होनेवाले हर तरीके के भेदभाव पर मौजूद कंवेंशन (CEDAW) के मुताबिक, मैरिटल रेप एक अपराध है, जिस पर भारत ने भी हस्ताक्षर किए हैं.
ना कहने का अधिकार/सेक्स एजुकेशन की भूमिका
अपने शरीर से जुड़े फैसले लेना आज भी महिलाओं के लिए एक चुनौती है. यूनाइटेड नेशन पॉपुलेशन फंड की एक रिपोर्ट बताती है कि 57 विकासशील देशों की आधी से अधिक महिलाओं के पास गर्भनिरोधक इस्तेमाल करने, अपने स्वास्थ्य से जुड़े फैसले लेने या सेक्स में ना कहने का अधिकार नहीं है. इसके पीछे एक बड़ी वजह अपने शरीर और उससे जुड़े अधिकारों के बारे में पर्याप्त जानकारी न होना है. यहां भूमिका आती है सेक्स एजुकेशन की.
गुंजन कहती हैं कि सेक्स एजुकेशन सिर्फ सेक्स से जुड़ी जानकारी नहीं, बल्कि खुद को पहचानने का एक जरिया है. यह हमें रिश्तों में सम्मान की अहमियत सिखाता है. हमें बताता है कि कैसे हम अपने और अपने साथी के शरीर का सम्मान करें.
सेक्स एजुकेशन की परिभाषा को सिर्फ इंटरकोर्स, यानी शारीरिक संबंध बनाने तक सीमित कर दिया गया है. इसीलिए जब भी स्कूलों में सेक्स एजुकेशन को शामिल करने की बात आती है, तो इसका विरोध किया जाता है. जबकि सेक्स एजुकेशन हमें सेक्शुअल और रिप्रोडक्टिव, यानी यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों के बारे में जागरूक करता है. इसमें जेंडर, यौनिकता, लैंगिक हिंसा, मानवाधिकार, सहमति जैसे अहम मुद्दों की बात की जाती है.
सौरव लैंगिक और क्वीयर अधिकारों पर काम करनेवाली संस्था ‘नजरिया' के साथ काम करते हैं. वह ग्रामीण इलाकों में लोगों को उनके शरीर के अधिकारों के बारे में जागरूक करते हैं. वह बताते हैं, "हमें कभी न बताया गया न सिखाया गया कि हमारा शरीर काम कैसे करता है. शादी की पहली रात को क्या होता है, इस बारे में लोग बात ही नहीं करते."
प्रशिक्षण के अपने अनुभवों के बारे में सौरव बताते हैं, "ट्रेनिंग के दौरान अक्सर ऐसे लोग मिलते हैं जिन्हें अपने अंगों के बारे में कुछ पता नहीं होता, क्योंकि इससे इतनी शर्म जुड़ी है. खासकर, भारत में कई युवा/ किशोर जब अपने शरीर को समझ ही रहे होते हैं, उनकी शादी हो जाती है. ट्रेनिंग के दौरान जब हम महिलाओं को बताते हैं कि वे सेक्स के लिए अपने पति को ना भी कह सकती हैं, तो वो आश्चर्य जताती हैं."
अधिकतर महिलाओं के पास यह जानकारी ही नहीं होती कि वे शादी के रिश्ते में भी पति को सेक्स के लिए ना कह सकती हैं. अधिकतर मामलों में एक महिला के लिए वैवाहिक यौन हिंसा की पहचान करना भी मुश्किल होता है. जानकारी और जागरूकता की कमी इस समस्या को और गंभीर करती है. सेक्स एजुकेशन महिलाओं को इस बारे में जागरूक करने का एक जरिया हो सकता है.
डॉ. सुचित्रा दलवी भी हमीरपुर की घटना को सेक्स एजुकेशन की कमी से जोड़कर देखती हैं. वह कहती हैं, "सेक्स एजुकेशन की गैरमौजूदगी भी इसकी एक वजह है. अधिकर युवा पॉर्न के जरिये सेक्स को लेकर अपनी समझ बनाते हैं. ऐसे में हिंसा, सहमति जैसे मुद्दे कहीं पीछे छूट जाते हैं. लेकिन हम इस मुद्दे पर बात तभी करते हैं, जब हमारे सामने हमीरपुर जैसे केस आते हैं."
हमीरपुर के केस को सिर्फ एक इकलौती घटना की तरह नहीं देखा जा सकता. इस एक मामले में शादी में यौन हिंसा, महिलाओं के शरीर पर उनकी एजेंसी, सेक्स एजुकेशन की कमी जैसे अहम मुद्दे जुड़े हैं. इन मुद्दों पर शायद ही हमारे समाज में खुलकर बात होती है. इनसे जुड़ी शर्मिंदगी और जागरूकता के अभाव के नतीजे के हिंसा की ऐसी घटनाओं के रूप में दिखाई देते हैं.