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भारत को जीपीएस का विकल्प देने वाला नाविक

२६ सितम्बर २०२२

भारत सरकार स्मार्टफोन कंपनियों पर अपने नेविगेशन सिस्टम नाविक को इस्तेमाल करने के लिये दबाव बना रही है. कंपनियों को इसे अपनाने के लिये पैसा खर्च करना होगा. दूसरे नेविगेशन सिस्टम से कितना अलग है भारत का नाविक?

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भारत का अपना नेविगेशन सिस्टम
भारत का अपना नेविगेशन सिस्टम नाविकतस्वीर: Dado Ruvic/REUTERS

नाविक यानी नेविगेशन विद इंडियन कॉनस्टेलेशन एक स्वतंत्र नेविगेशन सिस्टम है जिसे भारतीय अंतरिक्ष शोध संस्थान यानी इसरो ने विकसित किया है. नाविक को 2006 में मंजूरी दी गई थी और इसका बजट था 17.4 करोड़ डॉलर. इसे 2011 में तैयार होना था लेकिन 2018 में इसने काम करना शुरू किया. नाविक में 8 उपग्रह हैं जो 1500 किलोमीटर से भारत की पूरी जमीन पर नजर रखते हैं. 

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फिलहाल नाविक का सीमित इस्तेमाल हो रहा है. इसे सार्वजनिक गाड़ियों पर निगाह रखने, गहरे समंदर की तरफ जाने वाले मछुआरों को सावधान करने और प्राकृतिक आपदाओं की स्थित में जानकारी देने और नजर रखने के लिये इस्तेमाल किया जाता है. भारत इसे स्मार्टफोन में इस्तेमाल के लिए तैयार कर रहा है.

भारत का अपना नेविगेशन सिस्टम नाविक
यूरोपीय संघ के पास है गैलिलियो नेविगेशन सिस्टमतस्वीर: OHB-System AG

दूसरे नेविगेशन से कैसे अलग है नाविक?

दूसरे नेविगेशन और नाविक में मुख्य फर्क है इलाके की निगरानी का. दूसरी जीपीएस सेवाएं दुनिया के सारे देशों में काम करती हैं और उनके उपग्रह दिन भर में धरती का दो बार चाक्कर लगाते हैं. इसके उलट नाविक केवल भारत और उसके आसपास के इलाके पर नजर रखता है.

जीपीएस की तरह तीन और नेविगेशन सिस्टम पूरी दुनिया में काम कर रहे हैं. इनमें एक है यूरोपीय संघ का गैलिलियो, दूसरा है रूस का ग्लोनास और तीसरा है चीन का बाइडू. एक और नेविगेशन सिस्टम है क्यूजेडएसएस जो जापान का है और एशिया ओशेनिया क्षेत्र में काम करता है हालांकि इसका मुख्य फोकस जापान पर है.

भारत ने 2021 में सेटेलाइट नेविगेश नीति का जो प्रस्ताव तैयार किया था उसमें कहा गया है कि सरकार नेविगेशन सिस्टम के कवरेज को विस्तार देने पर काम करेगी जिससे कि इसे क्षेत्रीय से वैश्विक बनाया जा सके. इसके पीछे नाविक के सिग्नल को दुनिया भर में मुहैया कराने का लक्ष्य है.

इसी साल अगस्त में भारत सरकार ने कहा कि नाविक, "सटीक स्थिति (पोजिशन एक्यूरेसी) बताने के मामले में अमेरिका के जीपीएस सिस्टम जितना ही अच्छा है."

भारत का अपना नेविगेशन सिस्टम
इंडियन रीजनल नेविगेशन सेटेलाइट सिस्टम के प्रोजेक्ट डायरेक्टर एम नागेश्वरा रावतस्वीर: Pratham Gokhale/Hindustan Times/IMAGO

नाविक को क्यों बढ़ावा दे रहा है भारत?

भारत का कहना है कि नाविक को विदेशी उपग्रहों और नेविगेशन सर्विस की जरूरतों पर निर्भरता से मुक्त करने किये बनाया गया है. खासतौर से "रणनीतिक क्षेत्रों" में.

जीपीएस और ग्लोनास जैसे सिस्टम पर हमेशा भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि ये अपने देशों की सुरक्षा एजेंसियों के हाथों ऑपरेट किये जाते हैं. यह मुमकिन है कि नागरिक सेवाओं को दोयम दर्जे में रखा जाये या फिर कभी सेवा से वंचित कर दिया जाये.

भारत सरकार का कहना है, "नाविक एक घरेलू सिस्टम है जो भारत के नियंत्रण में है. किसी खास स्थिति में यह सेवा नहीं देने या फिर वापस लेने का जोखिम नहीं है."

भारत अपने मंत्रालयों को भी नाविक के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित कर रहा है. अलग अलग उद्योगों में इसके इस्तेमाल से समस्याओं के समाधान की कोशिश हो रही है.

एनआर/ओएसजे (रॉयटर्स)