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राजनीतिनेपाल

अमेरिकी तोहफे को लेकर नेपाल में हिंसक प्रदर्शन

२१ फ़रवरी २०२२

नेपाल में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच संसद के बाहर पिछले दिनों में दूसरी बार तीखी झड़प हुई. नेपाल में लोग अमेरिकी मदद को लेकर नाराज हैं. विवाद का तीसरा कोण चीन है.

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नेपाल की राजधानी में विरोध प्रदर्शन
नेपाल की राजधानी में विरोध प्रदर्शनतस्वीर: Niranjan Shrestha/AP/dpa/picture alliance

नेपाल में कुछ परियोजनाओं के लिए अमेरिकी मदद को लेकर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. संसद के भीतर और सड़क पर विपक्षी दल इन परियोजनाओं का विरोध कर रहे हैं.

देश की संसद में अमेरिका और नेपाल के बीच हुए एक समझौते पर बहस चल रही है. इस समझौते के तहत नेपाल को अमेरिका से 50 करोड़ डॉलर की मदद मिलेगी. यह मदद गरीबी उन्मूलन की एक अमेरिकी परियोजना मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन (एमसीसी) के तहत दी जानी है.

रविवार को सैकड़ों प्रदर्शनकारी उस वक्त काठामांडू में संसद भवन के सामने जमा हो गए जब संसद के अंदर अमेरिकी मदद पर बहस चल रही थी. कई बार इन प्रदर्शनकारियों ने पुलिस द्वारा लगाए गए बैरिकेड लांघने की कोशिश की और पथराव भी किया.

जवाब में पुलिसकर्मियों ने लाठी चार्ज किया और पानी की बौछारों वे आंसुगैस से भी प्रदर्शनकारियों को खदेड़ने की कोशिश की. इन झड़पों में पुलिस और प्रदर्शनकारी, दोनों के ही दर्जनों लोग घायल हुए हैं.

क्या है अमेरिकी मदद?

अमेरिका ने नेपाल को मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन के तहत मदद देने की पेशकश की है. एमसीसी को अमेरिकी कांग्रेस ने 2004 में गरीब देशों की आर्थिक मदद के लिए स्थापित किया था.

नेपाल की अर्थव्यवस्था बहुत हद तक विदेशी मदद पर आधारित है. 2017 में एमसीसी ने उसे 50 करोड़ डॉलर उपलब्ध कराने पर सहमति जताई थी. इस धन का इस्तेमाल सड़कों की मरम्मत की एक योजना के साथ-साथ 300 किलोमीटर लंबी बिजली लाइन बिछाने पर होना है.

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नेपाल स्थित अमेरिकी दूतावास ने इस मदद को ‘अमेरिकी लोगों की तरफ से एक तोहफा' बताया है. दूतावास ने कहा कि यह तोहफा दोनों देशों के बीच एक साझेदारी है जो नेपाल में नौकरियां और ढांचागत विकास लाएगी और नेपालियों की जिंदगी में सुधार होगा.

दूतावास की ओर से जारी एक बयान में कहा गया, "नेपाल के लोगों और सरकार ने इस परियोजना के लिए अनुरोध किया था. इसे पारदर्शी तरीके से गरीबी हटाने और अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के मकसद से तैयार किया गया है.”

विवाद किस बात का है?

अमेरिकी संसद में इस समझौता का तीखा विरोध हो रहा है. देश के राजनीतिक दल, जिनमें दो वामपंथी पार्टियां भी शामिल हैं, इस समझौते पर बंटे हुए हैं. सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा ये वामपंथी दल पारंपरिक तौर पर चीन के करीबी माने जाते हैं.

वामपंथी दलों का दावा है कि समझौते की शर्तें नेपाल के कानूनों को लांघती हैं और परियोजनाओं पर देश के सांसदों का नियंत्रण नहीं होगा. विरोधियों का कहना है कि यह मदद अमेरिका की हिंद-प्रशांत रणनीति का हिस्सा है, नेपाल के संकट में कूद कर चीन आया सामनेजिसमें सैन्य तत्व भी शामिल हैं और अमेरिकी सैनिकों के नेपाल आने का रास्ता खोल सकते हैं.

नेपाल के संकट में कूद कर चीन आया सामने

नेपाल सरकार ने कहा है कि इस धन को लौटाने की कोई शर्त नहीं है इसलिए यह समझौता बिना शर्त हुआ है. कई लोगों का कहना है कि अमेरिका मानता है कि विरोध प्रदर्शन के पीछे चीन है, जो दुष्प्रचार फैला रहा है.

चीन भी नेपाल में बड़ी विकास परियोजनाएं चला रहा है क्योंकि नेपाल उसके बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव का हिस्सा है. हाल ही में ची ने कहा था कि वह अमेरिका की "दबाव की कूटनीति का विरोध करता है और अपने स्वार्थी एजेंडे के लिए नेपाल की संप्रभुता और हितों को खतरे में डालने के” खिलाफ है.

वीके/सीके (एएफपी, एपी, रॉयटर्स)

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