भारत को नेपाल से मिलेगी 10,000 मेगावाट पनबिजली
५ जनवरी २०२४संधि के तहत नेपाल अगले 10 सालों में भारत को 10,000 मेगावाट पनबिजली देगा. नेपाल के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अमृत बहादुर राय ने इस "लंबी-अवधि की ऊर्जा व्यापार" संधि पर हस्ताक्षर किए जाने की पुष्टि की.
संधि के बार में और ज्यादा जानकारी अभी सार्वजनिक नहीं की गई है, लेकिन नेपाल के स्वतंत्र ऊर्जा उत्पादकों के संघ के अध्यक्ष गणेश कार्की ने बताया कि संधि "ऐतिहासिक" है. उन्होंने कहा, "अब सरकार को इस स्तर पर उत्पादन को समर्थन देने के लिए कानून और अनुकूल माहौल बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए."
जानकारों को उम्मीद है कि संधि की वजह से नेपाल के पनबिजली क्षेत्र में और निवेश आएगा. दक्षिण एशिया में बिजली व्यापार पर एक अध्ययन के सह-लेखक सागर प्रसाई ने बताया, "हो सकता है संधि की बारीकियों पर अभी बातचीत होनी हो...लेकिन एक आंकड़े के चिन्हित होने से निवेश बैंकों को ज्यादा स्वीकार्य होगा."
पनबिजली में तरक्की
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के मुताबिक साल 2000 में पांच में चार से भी ज्यादा नेपाली लोगों के पास बिजली नहीं थी, लेकिन उसके बाद से कई बांधों के बनाए जाने की वजह से देश की तीन करोड़ आबादी में लगभग सब के पास बिजली की सप्लाई पहुंच गई है.
इस समय देश में 150 से ज्यादा बिजली परियोजनाएं चल रही हैं, जिनकी बदौलत देश की इंस्टॉल्ड कैपेसिटी 2,600 मेगावाट से ज्यादा हो गई है. 200 से ज्यादा अतिरिक्त परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं.
पानी के मामले में नेपाल एक धनी देश है. उसके पास पहाड़ी नदियों की एक ऐसी प्रणाली है जो उसे ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में एक पावरहाउस बना सकती है. कुछ अध्ययनों में अनुमान लगाया गया है कि देश की संभावित क्षमता 72,000 मेगावाट की है - यानी मौजूदा इंस्टॉल्ड कैपेसिटी से 25 गुना ज्यादा.
भारत को नेपाल 2021 के आखिरी महीनों से ही छोटे स्तर पर बिजली निर्यात कर रहा है. भारत और नेपाल के दूसरे शक्तिशाली पड़ोसी देश चीन के बीच लंबे समय से नेपाल के पनबिजली क्षेत्र में प्रभुत्व और निवेश के मौकों को लेकर प्रतिस्पर्धा रही है.
पर्यावरण भी जरूरी
अभी तक भारत नेपाल का पसंदीदा साझेदार रहा है, जिसके पीछे एक कारण यह भी है कि भारत ने जोर देकर कहा है कि वह ऐसी परियोजनाओं से ऊर्जा नहीं लेगा जिनमें किसी तीसरे देश का पैसा लगा हो.
भारत बिजली बनाने के लिए भारी रूप से कोयले पर निर्भर है, लेकिन उसने 2060 तक नेट शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने का वचन दिया है. कुछ विशेषज्ञों ने नेपाल की पनबिजली की क्षमता बढ़ाने की और तेजी से बढ़ते कदमों की आलोचना भी की है.
उनका कहना है कि कभी कभी निर्माण के दौरान पर्यावरणीय अनुपालन के कदमों की अनदेखी हो जाती है. पिछले साल केंद्रीय मंत्रिमंडल के एक प्रस्ताव का ड्राफ्ट सामने आया था जिसमें संरक्षित प्राकृतिक अभयारण्यों में बांध बनाने की प्रक्रिया को आसान करने का प्रस्ताव दिया गया था.
लेकिन इस प्रस्ताव को लेकर पर्यावरणविदों ने चेतावनी जाहिर की थी. देश में बाढ़ और भूस्खलन भी आम हैं जिनकी वजह से पनबिजली परियोजनाओं को जोखिम का सामना करना पड़ता है. जलवायु परिवर्तन की वजह से बाढ़ और भूस्खलन दोनों ही बार बार आ रहे हैं और उनकी तीव्रता भी बढ़ती जा रही है.
जयशंकर नेपाल की दो दिवसीय यात्रा पर हैं. यह उनकी 2024 की पहली विदेश यात्रा है. इस दौरान वो नेपाल के नेताओं और कई जाने माने राजनेताओं से मिले. उन्होंने 1987 में स्थापित हुए इंडिया-नेपाल जॉइंट कमीशन की सह-अध्यक्षता भी की.
सीके/वीके (एएफपी)