कितने नए हैं भारत के 'नए' टैक्स सुधार
१३ अगस्त २०२०भारत की कराधान प्रणाली में कई समस्याएं हैं. सबसे पहले तो देश में टैक्स देते ही बहुत कम लोग हैं. 130 करोड़ की आबादी में लगभग 1.5 करोड़ लोग अपनी आय पर कर देते हैं, यानी मुश्किल से आबादी का एक प्रतिशत. करदाताओं के लिए कराधान प्रणाली भी लंबे समय से काफी जटिल रही है. आयकर रिटर्न भरने के लिए चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का सहारा लेना देश में आम है. उसके ऊपर से कर भरने के और कर से छूट प्राप्त करने के प्रावधान इतने सारे हैं कि आम लोगों का दिमाग चक्कर खा जाता है. सरकार का राजस्व बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध आयकर विभाग को भी आम लोगों की कल्पना में डर पैदा करने वाले एक विभाग के रूप में देखा जाता है. आयकर विभाग सिर्फ छापे ही मारता है और अगर आप उसकी नजर में आ गए तो वो निश्चित ही आपका धन हथिया लेगा, लोग ऐसा मान कर चलते हैं.
लंबे समय से सरकारें लोगों को और ज्यादा संख्या में करदाता बनने के लिए प्रेरित करने की कोशिशें करती आ रही हैं. प्रणाली में निरंतर सरलता लाइ जाए और आयकर विभाग की छवि को थोड़ा और दोस्ताना बनाया जाए इसकी भी कोशिशें चलती रही हैं. ये नए कदम उसी कड़ी का हिस्सा हैं. प्रधानमंत्री की घोषणा के अनुसार कर का चेहराविहीन यानी फेसलेस मूल्यांकन और आयकर विभाग के लिए एक करदाता चार्टर गुरूवार से ही लागू हो जाएगा.
चेहराविहीन मूल्यांकन के तहत कर के मूल्यांकन संबंधी किसी भी कार्य के लिए ना करदाता को आयकर कार्यालय जाना होगा और ना विभाग के किसी अधिकारी को किसी करदाता के पास. मूल्यांकन डाटा एनालिटिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए होगा.
करदाता चार्टर के तहत आयकर विभाग की जिम्मेदारियों की एक सूची बनेगी और विभाग की उसमें लिखित सभी बिंदुओं के प्रति जवाबदेही सिद्ध की जाएगी. इनमें विनम्र व्यवहार, करदाता को इमान्दार मान के चलना, पूर्ण और सटीक जानकारी प्रदान करना, समय से काम पूरे करना और करदाताओं की गोपनीयता का सम्मान करना इत्यादि शामिल हैं.
इसके अलावा 25 सितम्बर से चेहराविहीन अपील प्रणाली भी लागू की जाएगी, जिसके तहत कराधान संबंधित अपील को पूरे देश में किसी भी आयकर अधिकारी को रैंडम रूप से सौंपा जाएगा और उस अधिकारी की पहचान गुप्त रहेगी.
लेकिन सवाल यह है कि क्या ये कदम भारत में कराधान की चुनौतियों का सही जवाब हैं? जानकार इस बात से इनकार कर रहे हैं और कह रहे हैं कि इनमें कुछ नया भी नहीं है. वरिष्ठ पत्रकार और आर्थिक मामलों के जानकार अंशुमान तिवारी ने डीडब्ल्यू को बताया कि इसमें कुछ नया नहीं है क्योंकि भारत में सालों पहले कर ऑनलाइन जमा करने की शुरुआत के साथ फेसलेस टैक्सेशन शुरू हो गया था.
उन्होंने यह भी बताया कि भारत में 90 प्रतिशत करदाताओं को लेकर कोई विवाद है ही नहीं, विवाद है उद्योग को लेकर और वहां बड़े उद्योगों के लिए सरकार एमनेस्टी यानी आम माफी योजनाएं लाकर विवाद खत्म कर देती है और राजस्व वसूली से चूक जाती है. जानकारों का यह भी कहना है कि भारत में सरकार को कर उन्हीं लोगों से नहीं मिल पाता है जिनकी अज्ञात आय है, क्योंकि ज्ञात आय वाले सभी लोग कर देते हैं. इसका मतलब कराधान व्यवस्था में असली सुधार तब आएगा जब सरकार अज्ञात आय वाले लोगों की आय का हिसाब लगा पाएगी और उनसे कर वसूल कर पाएगी.
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