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जिस कंपनी से यूरोप को थी बेशुमार उम्मीदें, वो बदहाल कैसे हुई

स्वाति मिश्रा
१० दिसम्बर २०२४

यूरोप को बैटरी सेल कंपनी 'नॉर्थवोल्ट' से बेशुमार उम्मीदें थीं. माना जा रहा था कि भविष्य की तकनीक और इनोवेशन में चीन से आगे निकलने, या कम-से-कम मुकाबले में लाने में नॉर्थवोल्ट से मदद मिलेगी. क्या ये सपना टूट चुका है?

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स्वीडिश कंपनी नॉर्थवोल्ट के एक लैब के बाहर लगा कंपनी का लोगो
एक समय नॉर्थवोल्ट की महत्वाकांक्षा टेस्ला से टक्कर लेने की थीतस्वीर: Britta Pedersen/dpa/picture alliance

मुसीबतों में घिरती जा रही नॉर्थवोल्ट, यूरोप में बैटरी सेल बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी है. यह मूल रूप से स्वीडन की कंपनी है और इसका मुख्य प्लांट स्टॉकहोम में है. अपनी वेबसाइट पर कंपनी अपना परिचय ऐसे देती है, "हम बैटरी बिजनेस में हैं." नॉर्थवोल्ट के कद और तेज तरक्की को देखते हुए यह पहचान बड़ी बुनियादी और 'विनम्र' मालूम होती है.

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जर्मनी में नॉर्थवोल्ट की फैक्ट्री का निर्माण कार्य शुरू होने के मौके पर लाल बटन दबाते जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स, आर्थिक मामलों के तत्कालीन मंत्री रोबर्ट हाबेक और कंपनी के सीईओ पीटर कार्ल्ससन
जर्मनी के हाइडे शहर में नॉर्थवोल्ट की गीगाफैक्ट्री का निर्माण हो रहा है, जिसके लिए ईयू की मंजूरी से सरकार भी आर्थिक मदद दे रही है तस्वीर: Marcus Brandt/dpa/picture alliance

बहुत कम वक्त में ही काफी बड़ा बन गया नॉर्थवोल्ट

इस स्टार्ट-अप की शुरुआत 2016 में हुई, लेकिन इसकी क्लाइंट लिस्ट काफी दमदार है. वोल्वो और फोक्सवागन इसके ग्राहक हैं. बीएमडब्ल्यू इसका एक शेयरहोल्डर है. यह यूरोप की इकलौती अपने ही यहां खड़ी हुई कंपनी है जो बैटरी सेल बनाती और रीसाइकल करती है. एक दशक के भीतर ही इसमें काम करने वालों की संख्या 6,500 से ज्यादा हो चुकी है, जो कि कंपनी के मुताबिक 100 अलग-अलग नागरिकताओं से आते हैं. कुल मिलाकर, काफी प्रभावी प्रोफाइल.

कंपनी के कामकाज को आंकें, तो यूरोप, खासतौर पर यूरोपीय संघ (ईयू) जिस तरह के हरे-भरे, कम कार्बन उत्सर्जन वाले भविष्य का सपना देखता है, उस कसौटी पर भी नॉर्थवोल्ट सटीक बैठता है. अक्षय ऊर्जा, रीसाइक्लिंग पर जोर, 2030 तक कामकाज में सामान्य से 90 फीसदी तक कम कार्बन उत्सर्जन का दावा और सबसे बढ़कर, लीथियम आयन बैटरियों के उत्पादन में ईयू को एक बड़ा चैपिंयन बनाने की महत्वाकांक्षा.

स्वाभाविक तौर पर ईयू को इस यूरोपीय कंपनी से काफी उम्मीदें थीं. उसे भरोसा था कि इस स्टार्ट-अप की मार्फत साफ-सुथरी ऊर्जा और बैटरी जैसे भविष्य के लिहाज से बेहद अहम क्षेत्र में उसकी वापसी होगी. नॉर्थवोल्ट को काफी फंड मिला. 'फाइनेंशियल टाइम्स' के मुताबिक, यह यूरोप का "बेस्ट फंडेड स्टार्ट-अप" है.

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मार्च 2024 की इस तस्वीर में जर्मनी में बन रही नॉर्थवोल्ट द्राई गीगाफैक्ट्री का निर्माण स्थल दिख रहा है
उम्मीद बांधी गई कि हाइडे में नॉर्थवोल्ट की गीगाफैक्ट्री से सैकड़ों लोगों को रोजगार मिलेगा और सालाना करीब 10 लाख इलेक्ट्रिक कारों के लिए बैटरियां बनेंगी. तस्वीर: Marcus Brandt/dpa/picture alliance

बड़ी मुश्किल में नॉर्थवोल्ट

नॉर्थवोल्ट का "कामयाब परचम" अब बड़ी मुश्किल में है. उसे निवेश की सख्त जरूरत है. कर्जदारों का उसपर करीब 580 करोड़ डॉलर बकाया है. कंपनी ने नवंबर में अमेरिका के 'बैंकरप्सी कोड' के तहत "चैप्टर 11" की श्रेणी में सुरक्षा मांगी थी.

अमेरिका में 'बैंकरप्सी' की कई श्रेणियां हैं. मसलन, व्यक्ति के तौर पर, कारोबारों के लिए, किसानों और मछुआरों के लिए बैंकरप्सी फाइल करने की अलग-अलग चैप्टर या श्रेणियां हैं. दिवालिया होने की स्थिति में अगर कोई बिजनस खुद को फिर से गठित करना चाहे, तो उसे चैप्टर 11 के तहत बैंकरप्सी फाइल करनी होगी. इसे आमतौर पर  "रीऑर्गनाइजेशन बैंकरप्सी" भी कहते हैं.

इस फाइलिंग के फौरन बाद कंपनी के सीईओ पेटर कार्लसन ने इस्तीफे का एलान किया. कार्लसन, नॉर्थवोल्ट के सह-संस्थापक थे. उन्होंने एक बयान जारी कर बताया कि चैप्टर 11 के तहत की गई फाइलिंग से कंपनी को समय मिल जाता है. उस दौरान वो पुर्नगठन कर सकती है. साथ-ही-साथ, अपना कामकाज तेज भी कर सकती है.

फैक्ट्री में बैटरी सेल निर्माण की एक तस्वीर
बेटरी सेल के उत्पादन में चीन का दबदबा है. मुकाबले के लिए यूरोप में किफायती दरों पर इतनी बड़ी मात्रा में निर्माण आसान नहीं है

एक के बाद एक दिक्कतें आती गईं

पिछले वर्षों में नॉर्थवोल्ट के एक के बाद एक कई दिक्कतें आ रही थीं. जून 2024 में बीएमडब्ल्यू ने उसके साथ 200 करोड़ यूरो का एक करार रद्द कर दिया क्योंकि नॉर्थवोल्ट बैटरी सेल की तय समय पर डिलिवरी नहीं कर पा रही थी.

सितंबर में कंपनी ने कहा कि वह स्वीडन में अपने कामकाज की समीक्षा करेगी और इसके कारण 1,600 छंटनियां होंगी. फिर अक्टूबर में नॉर्थवोल्ट की एक पूरक कंपनी ने स्टॉकहोम में बैंकरप्सी फाइल की. नॉर्थवोल्ट ने कहा है कि जर्मनी और कनाडा में बैटरी उत्पादन के जो दो कारखाने लगने थे, वो योजना भी आगे खिंच सकती है.

फंड के लिए कुछ यूनिट बेचने की कोशिश

नॉर्थवोल्ट ने कहा है कि लंबी अवधि के लिए उसे बाहर से करीब 120 करोड़ डॉलर का फंड चाहिए. पिछले महीने हितधारकों (शेयरहोल्डरों) से अतिरिक्त रकम जुटाने की उसकी बातचीत नाकाम रही थी. ऐसे में अपना फंड बढ़ाने और सिकुड़ते कारोबार को पटरी पर लाने के लिए अब नॉर्थवोल्ट अपने बिजेनस का एक हिस्सा बेचने की कोशिश कर रही है.

इस सिलसिले में उसकी एक बड़ी कंपनी से बातचीत चल रही है. फिलहाल इस कंपनी का नाम सार्वजनिक नहीं किया गया है. समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, नॉर्थवोल्ट इलेक्ट्रिक बैटरी पैक बनाने वाला अपना कारोबार इस कंपनी को बेचना चाहती है.

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"हम ये भी बनाएंगे, वो भी बेचेंगे" की तर्ज पर पहले जहां कंपनी अपने कामकाज का दायरा बढ़ाते हुए ईवी बैटरियों के निर्माण और रीसाइक्लिंग का एक समूचा हब बनना चाहती थी, वहीं अब वह बैटरी सेल उत्पादन पर ध्यान लगाना चाहती है. 

रॉयटर्स के मुताबिक, 21 नवंबर की अपनी कंपनी फाइलिंग में नॉर्थवोल्ट ने बताया कि वो "नॉर्थवोल्ट सिस्टम्स इंडस्ट्रियल" को बेचने की कोशिश कर रही है. यह कंपनी की 'नॉर्थवोल्ट सिस्टम्स' नाम की इकाई का हिस्सा है और बैटरी व औद्योगिक उपकरण बनाती है. इसका मुख्य काम पोलैंड में है. इसकी कीमत कितनी आंकी गई है, अभी यह जानकारी नहीं है. हालांकि, पूर्व सीईओ कार्लसन ने पिछले ही महीने बताया था कि ये कंपनी के गिने-चुने मुनाफा कमाने वाले हिस्सों में है.

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यूरोप में बैटरी से चलने वाली इलेक्ट्रिक गाड़ियों (ईवी) की बिक्री धीमी है. यूरोप की कंपनियां ना तो अपने बाजार में, ना ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी प्रतिद्वंद्वियों का मुकाबला कर पा रही हैं. चीनी कंपनियों में उत्पादन भी तेज है और लागत भी कम. वो बैटरी तकनीक से जुड़े इनोवेशनों में काफी आगे हैं.

ऐसे में यूरोप की ऑटो इंडस्ट्री, खासतौर पर ईवी सेगमेंट की हालत बहुत खराब है. जर्मनी की कंपनी फोक्सवागन की मौजूदा हालत इसकी एक बड़ी मिसाल है. अपने 87 साल के इतिहास में पहली बार फोक्सवागन अपने ही देश जर्मनी में कम-से-कम तीन कारखाने बंद करना चाहती है और हजारों लोगों को नौकरी से निकालना चाहती है. यह पूरी कवायद इसलिए कि वो अपनी लागत कम कर सके और प्रतिद्वंद्विता में बनी रहे. नॉर्थवोल्ट का संघर्ष दोहरा है. उसके खरीदार ऑटो सेक्टर में हैं, जो खुद ही तंग चल रहा है. कंपनियां उत्पादन घटा रही हैं. ऊपर से, ईवी सेक्टर और इससे जुड़ी तकनीक में पिछड़ने की चोट.

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इसके अलावा यूरोप में श्रम और संसाधन, दोनों महंगा है. कारोबार की प्रक्रिया कठिन है, मापदंड भी सख्त हैं. ये भी अहम पक्ष हैं. हालांकि, नॉर्थवोल्ट का मौजूदा संघर्ष प्रतिद्वंद्विता में बने रहने से ज्यादा अस्तित्व का संकट लगता है. उसे बने रहने के लिए पैसा चाहिए और निवेशक अब चेक साइन करने से कतरा रहे हैं.

बेशक, नॉर्थवोल्ट की आलोचना हो रही है कि उसने उत्पादन तेज करने की जगह बहुत कम समय में बहुत ज्यादा दायरा बढ़ाने पर ध्यान दिया. लेकिन ये भी सच है कि अभी कुछ महीनों पहले तक, जब नॉर्थवोल्ट ये दिक्कतें छलककर जाहिर नहीं हुई थीं, तब तक इसी शैली और ढर्रे की तारीफ हो रही थी. उसे यूरोपियन "इनोवेशन और मैन्यूफैक्चरिंग" के ब्रैंड ऐम्बेसडर की तरह प्रचारित किया जा रहा था.