90 लाख लड़कियां बाल विवाह के खतरे मेंः यूनिसेफ
३ मई २०२३दुनिया में बाल विवाहों की संख्या कम हो रही है लेकिन इनके घटने की रफ्तार इतनी कम है कि इस गति से बाल विवाह को पूरी तरह खत्म करने में 300 साल लग जाएंगे. संयुक्त राष्ट्र की बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था यूनिसेफ ने कहा है कि कमी का यह चलन कभी भी पलट सकता है.
यूनिसेफ की रिपोर्ट में कहा गया है कि बाल विवाहों की कमी की दिशा में कुछ प्रगति हुई है लेकिन यह काफी नहीं है. रिपोर्ट तैयार करने वाले दल की प्रमुख क्लाउडिया कापा कहती हैं, "बाल विवाह की प्रथा को खत्म करने की दिशा में हमने निश्चित रूप से कुछ प्रगति की है, खासकर बीते दस साल में. दुर्भाग्य से यह प्रगति काफी नहीं है.”
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इस रिपोर्ट के मुताबिक यूनिसेफ का अनुमान है कि इस वक्त दुनिया में लगभग 64 करोड़ ऐसी विवाहित महिलाएं हैं जिनकी शादी 18 से कम की उम्र में हुई. यूनिसेफ का अनुमान है कि हर साल लगभग 1.2 करोड़ लड़कियों की शादी 18 वर्ष से कम की आयु में हो रही है. हालांकि बीते 25 साल में यह संख्या लगातार कम हुई है.
90 लाख लड़कियां खतरे में
1997 में 20-24 वर्ष की शादीशुदा महिलाओं में से 25 प्रतिशत ऐसी थीं, जिनका विवाह 18 वर्ष की होने से पहले हो गया था. 2012 तक यह संख्या घटकर 23 प्रतिशत रह गई और 2022 में इनकी संख्या 19 प्रतिशत थी. लेकिन इसका अर्थ यह है कि 2030 में करीब 90 लाख लड़कियों की शादी 18 वर्ष की होने से पहले हो जाएगी.
कापा चेताती हैं, "अगर गिरावट की दर यही रही तो हमें बाल विवाह के समूल सफाये के लिए 300 साल इंतजार करना पड़ सकता है.” उन्होंने कहा कि इन शादियों में अधिकतर लड़कियों की उम्र 12 से 17 साल के बीच होती है. एक और बड़ी चिंता की बात यह है कि यूनिसेफ को डर है कि कमी आ तो रही है लेकिन यह प्रगति भी खतरे में है. खासकर कोविड-19 महामारी, दुनियाभर में कई जगहों पर जारी युद्ध और जलवायु परिवर्तन के कारण खतरे बढ़ रहे हैं.
रिपोर्ट में बताया गया है कि सिर्फ कोविड महामारी के कारण 2020 से 2030 के बीच अतिरिक्त एक करोड़ कम उम्र लड़कियों की शादी कर दी जाएगी. इन संकटों के कारण परिवार सुरक्षा की खातिर बच्चों की शादी करने को मजबूर महसूस करते हैं. यूनिसेफ प्रमुख कैथरीन रसेल ने एक बयान में कहा, "दुनिया एक के बाद एक विवादों में उलझी हुई है जो बच्चों के सपनों को कुचल रहे हैं. इनमें ऐसी लड़कियां भी हैं जो छात्राएं बनना चाहती हैं, दुल्हन नहीं.”
यूनिसेफ रिपोर्ट कहती है कि बाल विवाह स्पष्ट तौर पर बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन है लेकिन कई परिवार इसे लड़कियों की सुरक्षा के एक उपाय के तौर पर देखते हैं, सिर्फ शारीरिक ही नहीं बल्कि वित्तीय सुरक्षा भी. बहुत से परिवारों के लिए बेटी को ब्याहने का अर्थ यह भी है कि अब उन्हें एक कम व्यक्ति का पेट भरना होगा.
भारत में प्रगति
भौगोलिक आधार पर देखा जाए तो दक्षिण एशिया बाल विवाह का सबसे बड़ा केंद्र है. कुल बाल विवाहों का लगभग 45 फीसदी इसी इलाके में हुआ है. हालांकि भारत में इस दिशा में काफी प्रगति हुई है लेकिन दुनिया की 64 करोड़ बाल दुल्हनों में से एक तिहाई तो भारत में ही हैं. यूनिसेफ अफ्रीका के सब-सहारा क्षेत्र को लेकर विशेष रूप से चिंतित है, जहां बाल विवाहों के घटने की रफ्तार बहुत कम है.
रिपोर्ट कहती है, "लड़कियों की कम उम्र में शादी का खतरा बहुत ज्यादा हो गया है और हर तीसरी लड़की की शादी 18 वर्ष से कम आयु में हो रही है.” रिपोर्ट में आशंका जताई गई है कि 2030 तक बाल विवाह का शिकार लड़कियों की संख्या दस प्रतिशत तक बढ़ सकती है.
रिपोर्ट के मुताबिक बाल विवाह के कारण महिलाओं की गैरबराबरी की समस्या और बढ़ती है. वैश्विक स्तर पर लड़कों के बाल विवाह का अनुपात कहीं कम है और छह लड़कियों के बाल विवाह पर एक लड़के की शादी कम उम्र में होती है.
वीके/एए (रॉयटर्स, एपी)