1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाजजर्मनी

जर्मनी में दुगुनी हो चुकी है बेघरों की संख्या

९ नवम्बर २०२३

जर्मनी में बेघरों की संख्या बेतहशा बढ़ी है. 2021 के मुकाबले 2022 में बेघर लोगों की संख्या में सीधे दोगुना उछाल दर्ज किया गया है.

https://p.dw.com/p/4YasW
अर्जेंटीना में बेघर
बेघर होना बुनियादी मानवाधिकारों के खिलाफ है और जीवन को कई संकटों में डालता हैतस्वीर: Rodrigo Abd/AP Photo/picture alliance

जर्मनी में बेघर लोगों की संख्या में बहुत ज्यादा बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है. नए आंकड़ों के मुताबिक 30 जून, 2022 तक बेघर लोगों की संख्या 4,47,000 रही. यह आंकड़े जर्मनी की फेडरल असोसिएशन फॉर होमलेस असिस्टेंस के हैं.

चौंकाने वाली बात यह है कि साल 2021 के मुकाबले यह संख्या दुगुनी हो चुकी है. उस समय 2,68,000 बेघर लोग थे. संस्था का कहना है कि इस बढ़त के पीछ कई कारण हैं, जिसमें यूक्रेनी रिफ्यूजी शामिल हैं क्योंकि उनके पास रहने को घर नहींहैं. बेघर जर्मन लोगों की संख्या में भी 5 फीसदी का इजाफा हुआ है लेकिन यह गैर-जर्मन लोगों से बहुत कम है. उनकी संख्या 118 फीसदी बढ़ी है.

आर्जेंटीना में सड़क पर सोता व्यक्ति
इस बढ़त के पीछ कई कारण हैं, जिसमें यूक्रेनी रिफ्यूजी शामिल हैं क्योंकि उनके पास रहने को घर नहीं हैंतस्वीर: Natacha Pisarenko/AP Photo/picture alliance

क्यों हैं इतने लोग बेघर

बेघर होने की वजहें बहुत विविध हैं. आंकड़ों से पता चलता है कि गैर-जर्मन लोगों के पास जर्मनी के किसी भी इलाके में कभी कोई घर था ही नहीं. जर्मन नागरिकता रखने वाले बेघरों में से ज्यादातर को घरों से निकाल दिया गया.

दूसरा बड़ा कारण है मकान का किराया और ऊर्जा से जुड़े बिल, रिहायश को लेकर झगड़े या तलाक की वजह से अलग होना. होमलेस असिस्टेंस ऑफिस की प्रबंध निदेशक वेरेना रोजेंके कहती हैं कि महंगाई, बढ़ी कीमतें और ऊंचा किराया, लोगों की घरेलू आय पर गहरा असर डाल रहा है.

यह गरीबी, किराया देने में चूक और बेघर होने की वजह बनता है. वह कहती हैं, खासतौर पर कमजोर समुदायों में कम आय वाले अकेले रहने वाले लोग, सिंगल पेरेंट या कई बच्चों वाले पति-पत्नी हैं.

इन आंकड़ों में ना सिर्फ उन लोगों को शामिल किया गया है जो आपातकालीन शेल्टर जैसे किसी संस्था के जरिए सिर छिपाने की जगह पाते हैं बल्कि वो भी शामिल हैं जो दोस्तों और परिवारों के साथ अस्थायी तौर पर रहने की व्यवस्था करते हैं या फिर जिनके पास बिल्कुल ही रहने की कोई जगह नहीं है. यानी वह लोग जो सड़कों पर जिंदगी गुजार रहे हैं. 

जर्मनी में बेघर
बेघर महिलाएं खतरे में जिंदगी बिताती हैंतस्वीर: Emmanuele Contini/IMAGO

दुनिया भर में बेघरों का हाल

पूरी दुनिया में बेघर लोगों की समस्या बहुत गहरी है और लगातार खराब ही होती जा रही है. इसमें दो राय नहीं है कि बेघर जिंदगी बिताना, रहने की सुरक्षित जगह का अभाव, बुनियादी मानवाधिकार का उल्लंघन है.

बेघरों, खासकर महिलाओं के लिए यह ज्यादा खतरनाक साबित होता है क्योंकि यह स्थिति उन्हें हाशिए पर धकेल कर भेदभाव और अपराध झेलने को मजबूर करती है. घर के अभाव में युवा महिलाएं और लड़कियां, यौन हिंसा और तस्करी के खतरे में जीती हैं.

यह स्थिति स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच को तो कम करती ही है, सड़क पर रहने का मतलब है गरीबी, बेरोजगारी और अशिक्षा की दीवारों के बीच घिर जाना.

2011 की भारतीय जनगणना के मुताबिक, 17 लाख भारतवासियों के सिर पर छत नहीं है जिसमें से 9,38,384 शहरी इलाकों में रहते हैं. यह संख्या कितनी सही है इस पर बहस कभी थमती नहीं लेकिन आंकड़े बेहद निराशाजनक हैं, इससे इंकार मुमकिन नहीं.