देश छोड़ना चाहते हैं भारत के बहुत से हताश युवा
२७ जनवरी २०२२छोटे ही सही, सृजन उपाध्याय एक उद्योगपति थे. वह बिहार में छोटी दुकानों और सड़क किनारे लगने वाले ठेलों को पकौड़े और अन्य ऐसी ही चीजें सप्लाई करते थे. फिर कोरोनावायरस महामारी आई और उनके अधिकतर ग्राहकों के धंधे चौपट हो गए. नतीजा यह हुआ कि उनका धंधा भी चौपट हो गया.
धंधा चौपट होने के बाद 31 साल के आईटी ग्रैजुएट उपाध्याय ने इस महीने पंजाब के राजपुरा की यात्रा की. वहां वह ऐसे वीजा कंसल्टेंट से मिले जो कनाडा का वर्क वीजा दिलाने का वादा कर रहे हैं. उनके साथ उनका पड़ोसी भी गया था, जो कॉमर्स में ग्रैजुएट है लेकिन उसकी डिग्री उसे नौकरी नहीं दिला सकी.
सृजन उपाध्याय कहते हैं, "हमारे लिए नौकरियां हैं ही नहीं. जब भी सरकारी नौकरियां आती हैं तो उनमें नकल या पेपर लीक जैसी बातें ही सुनाई देती हैं. शुरू में जैसा भी काम मिले, लेकिन हमें यकीन है कि कनाडा में तो नौकरी मिल ही जाएगी.”
उफान पर बेरोजगारी
भारत में बेरोजगारी उफान पर है. मुंबई स्थित सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के मुताबिक पिछले छह साल में से पांच साल देश की बेरोजगारी दर अंतरराष्ट्रीय दर से ज्यादा रही है. इसमें कोरोनावायरस ने भी अपनी भूमिका अदा की है. अप्रैल 2020 में भारत की बेरोजगारी दर सबसे ऊपर 23.5 प्रतिशत पर पहुंच गई थी. पिछले महीने यह 7.9 प्रतिशत पर थी.
इसके मुकाबले कनाडा में बेरोजगारी दर दिसंबर में 5.9 फीसदी थी जो दुनिया के अन्य धन देशों से भी बेहतर है. सबसे धनी देशों में से अधिकतर ने बीते अक्टूबर में लगातार छठे महीने बेरोजगारी दर में गिरावट दर्ज की थी. अमेरिका आदि कई देश तो कामगारों की कमी से जूझ रहे हैं.
भारत के लिए हालात और खराब हैं क्योंकि इसका आर्थिक विकास पहले जितनी नौकरियां पैदा नहीं कर पा रहा है. इस कारण युवा हताश हैं और अपनी शिक्षा और कौशल के उलट छोटे-मोटे काम करने को मजबूर हैं. जो सक्षम हैं वे विदेशों की ओर रुख कर रहे हैं.
हालात कहीं ज्यादा खराब
सीएमआईई के प्रबंध निदेशक महेश व्यास कहते हैं, "बेरोजगारी दर के आंकड़े जैसे हालात दिखा रहे हैं, असल में स्थिति उससे कहीं ज्यादा खराब है. बेरोजगारी दर सिर्फ यह दिखाती है कि कितने लोग सक्रिय रूप से नौकरी खोज रहे हैं और नौकरी नहीं मिल पा रही है. समस्या ये है कि नौकरी खोजने वाले लोगों की संख्या ही घट रही है.”
आलोचक कहते हैं कि युवाओं के बीच यह हताशा भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सबसे विफलताओं में से एक है क्योंकि वह युवाओं को नौकरियां देने के बड़े वादों के साथ सत्ता में आए थे. इस बारे में जब सरकार के श्रम और वित्त मंत्रालय से टिप्णियां मांगी गईं तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. श्रम मंत्रालय की नौकरियों वाली वेबसाइट पर पिछले महीने नौकरी चाहने वालों की संख्या एक करोड़ 30 लाख थी जबकि नौकरियां थीं दो लाख 20 हजार.
श्रम मंत्रालय ने दिसंबर में संसद को बताया था कि ‘रोजगार पैदा करना और युवाओं को रोजगार पाने में सक्षम बनाना सरकार की प्राथमिकता है.' मंत्रालय ने कहा था कि वह छोटे उद्योगों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है.
रोजगार पर राजनीति
रोजगार की खराब होती स्थिति का फायदा विपक्षी दल आने वाले दिनों में पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में उठाने की कोशिश कर रहे हैं. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने हाल ही में एक जनसभा में कहा, "क्योंकि यहां नौकरियां नहीं हैं, इसलिए हर बच्चा कनाडा की ओर देखता है. मां-बाप उम्मीद करते हैं कि किसी तरह उनका बच्चा कनाडा चला जाए. मैं आपसे वादा करता हूं कि पांच साल के अंदर वे लोग वापस आने लगेंगे क्योंकि यहां उनके लिए इतने सारे मौके पैदा होंगे.”
उन्होंने यह तो नहीं बताया कि ये मौके कैसे पैदा होंगे लेकिन उनकी पार्टी ‘आम आदमी पार्टी' के कार्यकर्ता कहते हैं कि उनकी नीतियां नौकरियां पैदा करने वाले उद्योगों को आकर्षित करेंगी.
पंजाब में एक पार्टी ने वादा किया है कि राज्य में जो नौकरियां पैदा होंगी, उन पर पहला हक स्थानीय युवकों का होगा. पड़ोसी हरियाणा में तो सरकार ने ऐसा आदेश भी जारी कर दिया है. लेकिन विशेषज्ञ इस रणनीति को संदेह की नजर से देखते हैं.
क्या है उपाय?
बेंगलुरु की अजीम प्रेजमी यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सस्टेनेबल इंपलॉयमेंट के प्रमुख अमित बसोले कहते हैं, "अगर कोई खास क्षेत्र ऐसा कर रहा है तो कुछ हद तक ऐसी रणनीति अपनाई जा सकती है. लेकिन जब पूरे देश में ही नौकरियां पैदा नहीं हो रही हों तो यह रणनीति समस्या का हल नहीं हो सकती.”
सीएमआईई के व्यास कहते हैं कि भारत को ऐसे उद्योगों में ज्यादा निवेश की जरूरत है जहां ज्यादा लोगों की जरूरत हो. साथ ही उनकी सलाह बांग्लादेश की तर्ज पर ज्यादा महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराने की भी है.
2018 से 2021 के बीच भारत ने 1991 के बाद अर्थव्यवस्था की सबसे लंबी गिरावट झेली है. इस दौरान बेरोजगारी की औसत दर 7.2 प्रतिशत रही जबकि अंतरराष्ट्रीय दर 5.7 फीसदी थी. जिस देश में सालाना एक करोड़ से ज्यादा लोग रोजगार की आयु में पहुंच रहे हों, उसके लिए यह एक बड़ी समस्या है. अर्थशास्त्री कहते हैं कि अर्थव्यवस्था इतनी तेजी से नहीं बढ़ रही है कि इतने सारे लोगों को रोजगार दे सके.
बसोले कहते हैं कि जीडीपी में हर एक प्रतिशत वृद्धि के साथ कामगारों की संख्या की बढ़ोतरी में भी कमी आई है और एक एक प्रतिशत की दर से नौकरियां बढ़ाने के लिए अर्थव्यवस्था को 10 प्रतिशत की दर से बढ़ना होगा. वह कहते हैं कि 1970 और 1980 के दशक में जब जीडीपी की विकास दर 3-4 प्रतिशत थी, तब रोजगार 2 प्रतिशत की दर से बढ़ा था.
पंजाब में लोगों को विदेश भेजने का काम करने वाले काउंसलर लवप्रीत सिंह कहते हैं कि उनकी एजेंसी ब्लूलाइन के पास रोजाना करीब 40 ग्राहक आ रहे हैं. 27 साल के सिंह कहते हैं, "मैं चार साल से यह काम कर रहा हूं. अब मैं खुद कनाडा रहा हूं. नेता लोग नौकरियों का वादा तो करते रहते हैं लेकिन पूरा कोई नहीं करता.”
वीके/एए (रॉयटर्स)