अरबपतियों की चमक में छुपे अमेरिकी बुजुर्गों के आंसू
१५ मार्च २०२३82 साल के एलेक्स मॉरिसी अमेरिकी राज्य फिलाडेल्फिया के एक नर्सिंग होम में रहते हैं. उनकी खाकी रंग की पैंट फट रही है. शुगर फ्री बिस्किट भी नहीं हैं. हर बार महीने की शुरुआत में एलेक्स को लगता है कि अबकी बार ये दोनों चीजें खरीद लेंगे लेकिन पैसा आते ही खत्म हो जाता है. बीच बीच में एलेक्स नर्सिंग स्टाफ से पूछते हैं, "मेरे पास कितने साल बचे हैं? मैं जितना हो सके उन्हें ढंग से जीना चाहता हूं, लेकिन मैं आत्मसम्मान खो रहा हूं."
पूरे अमेरिका के नर्सिंग होमों में रहने वाले हजारों बुजुर्ग, एलेक्स जैसी तंगहाली में जी रहे हैं. अपनी पूरी कमाई केयरटेकिंग संस्था को देने के बाद इन बुजुर्गों को लगा कि उनका बुढ़ापा आराम से कटेगा लेकिन हालात बहुत अलग हैं. अमेरिका में एक तिहाई नर्सिंग होम मेडिकऐड नाम की संस्था चलाती है. लंबे समय के प्लान के तहत मेडिकऐड, बुजुर्गों से उनकी पूरी सोशल सिक्योरिटी और पेंशन लेती है. इसके बदले नर्सिंग होम में रहना और मेडिकल केयर की सुविधा दी जाती हैं.
इससे अलग खर्चे के लिए महीनेवार भत्ता दिया जाता है जो फिलहाल न्यूनतम 30 डॉलर है. बुजुर्गों को इसी भत्ते से टेलीफोन का बिल, पोते-पोतियों और नाती-नातिनों के लिए तोहफे और अपनी जरूरत का सामान खरीदना पड़ता है.
अमेरिकी संसद जिम्मेदार
सैम ब्रुक्स नेशनल कंज्यूमर वॉयस फॉर क्वालिटी लॉन्ग टर्म केयर के अटॉर्नी हैं. उनके मुताबिक अमेरिकी संसद ने कई दशकों से महीनेवार मिलने वाले भत्ते को बढ़ाया ही नहीं है. बुजुर्गों की तंगहाली का जिक्र करते हुए ब्रुक्स कहते हैं, "यह उनके लिए सबसे शर्मिंदगी वाले कारणों में से एक है." ब्रुक्स की संस्था लंबे समय से इस भत्ते को बढ़ाने की मांग करती आ रही है.
जिन बुजुर्गों के कोई रिश्तेदार नहीं हैं, उनकी स्थिति खासी बुरी है. मार्ला कार्टर अक्सर ओवेंसबोरो के नर्सिंग हाउस में अपनी सास से मिलने जाती हैं. मार्ला के मुताबिक, "वहां के हालात मध्य 19वीं शताब्दी जैसे लगते हैं."
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अमेरिका में अकेले रहने वाले एक इंसान का औसतन खर्च महीने में कम से कम 2000 डॉलर आंका जाता है. जबकि मार्ला की सास को नर्सिंग होम में हर महीने सिर्फ 40 डॉलर का भत्ता मिलता है. उसी नर्सिंग होम में ऐसे कई बुजुर्ग हैं जिनके पास ना तो जूते हैं और ना ही मोजे. कई बार तो लेटर लिखने के लिए वे पेन और पैड भी नहीं खरीद पाते हैं. मार्ला कार्टर कहती हैं, "ये गरीबी बहुत ही चौंकाने वाली है."
36 साल बाद भी नहीं बढ़ी एक पाई
1965 में मेडिकऐड की स्थापना की गई और इसके 7 साल बाद एक सुधार कर पर्सनल नीड्स अलाउंस बनाया गया. उस समय यह भत्ता न्यूनतम 25 डॉलर प्रतिमाह रखा गया. अगर इस रकम को महंगाई दर के अनुपात में बढ़ाया जाता तो आज यह भत्ता कम से कम 180 डॉलर होता. बीते चार दशकों में अमेरिका में भी लगातार महंगाई बढ़ती गई लेकिन पर्सनल नीड्स अलाउंस सिर्फ एक बार 1987 में बढ़ाया गया. आज 36 साल बाद भी ज्यादातर राज्यों में यह भत्ता न्यूनतम 30 डॉलर है.
2019 में वर्जीनिया प्रांत की डेमोक्रैट नेता जेनिफर वेक्स्टन ने न्यूनतम भत्ते को बढ़ाकर 60 डॉलर की करने की कोशिश की लेकिन कोई असर नहीं हुआ. वेक्स्टन कहती हैं, "मैं हैरान रह गई. यह उन लोगों के आत्मसम्मान की बात है."
संघीय सरकार की उदासीनता देखते हुए कुछ राज्यों ने खुद इस भत्ते को बढ़ाने का फैसला किया, लेकिन आज भी अमेरिका के 28 राज्यों में यह भत्ता 50 डॉलर या उससे कम है. पूरे अमेरिका में सिर्फ पांच राज्य ऐसे हैं जहां यह भत्ता 100 डॉलर या उससे ज्यादा है. इस मामले में सबसे आगे अलास्का है, जहां न्यूनतम भत्ता 200 डॉलर प्रतिमाह मिलता है.
एक टूथपेस्ट की असली कीमत
उत्तरी कैरोलाइना प्रांत में डरहम के एक नर्सिंग होम में रहने वाले 74 साल के क्रिस हैक्नी कहते हैं, "पैसा मिलते ही गायब हो जाता है." क्रिस के मुताबिक उन्हें मिलने वाला 30 डॉलर का भत्ता टूथपेस्ट, वाइप्स, डायपरों, साबुन और डियोडरेंट में ही खत्म हो जाता है.
क्रिस के साथ ही उसी नर्सिंग होम में रहने वाले जैनी कॉक्स कहती हैं, "ये तो हर दिन जिंदा रहने की लड़ाई जैसा है."
कई महीनों की बचत के बाद ही कुछ बुजुर्गों को कोई किताब खरीदने, टैक्सी लेकर कहीं जाने या फिर बाहर का खाना खाने का मौका मिलता है. फिलाडेल्फिया के नर्सिंग होम में रहने वाले एलेक्स अपने 45 डॉलर के भत्ते को महीने के अंत तक नहीं बचा पाते हैं. वह ट्यूब काटकर टूथपेस्ट निकालने और अंगुलियां मोड़कर, जार के कोने कोने से पीनटबटर निकालने के आदी हो चुके हैं. मायूसी भरे अंदाज में एलेक्स कहते हैं, "ये बहुत छोटी छोटी चीजें हैं, लेकिन आपको इनका अहसास तभी होता है जब ये आपके पास नहीं होती हैं."
एलेक्स के मुताबिक उन्होंने पूरी जिंदगी बड़ी सादगी से गुजारी और हर परिस्थिति को मुस्कुराते हुए स्वीकार किया. यह बताने के बाद वह पूछते हैं कि कभी कभार एक सोडा ड्रिंक की उम्मीद करना, कहीं बहुत ज्यादा तो नहीं है.
ओंकार सिंह जनौटी (एपी)