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बस आईएमएफ पैकेज से नहीं उबर सकती पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था

हारून जंजुआ (इस्लामाबाद से)
२७ मार्च २०२४

पाकिस्तान में प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ की गठबंधन सरकार के आगे खस्ताहाल अर्थव्यवस्था की बड़ी चुनौती है. देश की आर्थिक मुश्किलों ने सरकार को ढांचांगत दिक्कतों का समाधान तलाशने के लिए मजबूर कर दिया है.

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पाकिस्तान में विदेशी मुद्रा के भंडार में कमी के कारण विदेशों से आयात करना भी बड़ी चुनौती बन गया है.
आसमान छूती महंगाई के बीच कई पाकिस्तानियों को जरूरी चीजों की बढ़ती कीमतों से जूझना पड़ रहा है, जबकि उनकी आमदनी में बहुत गिरावट आई है. तस्वीर: Rizwan Tabassum/AFP

पाकिस्तान लंबे समय से आर्थिक उतार-चढ़ाव का सामना कर रहा है. राजनीतिक अस्थिरता, भ्रष्टाचार, कुप्रबंधन, कोरोना महामारी, वैश्विक ऊर्जा संकट और जलवायु परिवर्तन से उभरी प्राकृतिक आपदाओं ने अर्थव्यवस्था को तगड़ी चोट पहुंचाई है.

प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ की सरकार अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से राहत पैकेज की मांग कर रही है, ताकि गंभीर आर्थिक संकट से निपटा जा सके. पिछले हफ्ते राजधानी इस्लामाबाद में लाइव प्रसारित हुई एक बैठक में शरीफ ने कहा, "आईएमएफ से एक और राहत पैकेज के बिना हम गुजारा नहीं कर सकते हैं."

शरीफ की इस टिप्पणी से एक दिन पहले ही आईएमएफ, पाकिस्तान के साथ एक अस्थायी समझौते पर राजी हुआ था. अगर यह समझौता बोर्ड की ओर से मंजूर हो जाता है, तो तीन अरब डॉलर देने की मौजूदा व्यवस्था के तहत पाकिस्तान को 1.01 अरब डॉलर की अंतिम किस्त दी जाएगी. तीन अरब डॉलर के पैकेज की अवधि 11 अप्रैल को खत्म हो रही है.

आईएमएफ पहले ही कह चुका है कि अगर पाकिस्तान इस कर्ज के लिए आवेदन करता है, तो इसके लिए वह एक मध्यम अवधि का कार्यक्रम तैयार करेगा. पाकिस्तान सरकार ने अभी आधिकारिक तौर पर इस अतिरिक्त फंड की रकम का एलान नहीं किया है, लेकिन वह लंबे समय के बेल आउट पैकेज के रूप में यह फंड लेना चाहता है.

कैसे उबरेगी अर्थव्यवस्था?

पाकिस्तान की 24 करोड़ जनता इस वक्त बुनियादी जरूरतें पूरी करने के लिए भी संघर्ष कर रही है. गरीबों की हालत खासतौर पर खराब है. बढ़ती महंगाई के बीच मुद्रास्फीति 30 फीसदी तक पहुंच गई है. ऐसे में जरूरी चीजों की कीमतें बहुत बढ़ गई हैं और लोगों की आमदनी में भारी गिरावट आई है. विदेशी मुद्रा भंडार भी गिरकर महज आठ अरब डॉलर पर पहुंच गया है. इतनी रकम बमुश्किल आठ हफ्तों के आयात का ही बंदोबस्त कर सकती है.

फरवरी में हुए आम चुनाव के बाद एक कमजोर गठबंधन सरकार का गठन हुआ. इसके सामने उन व्यवस्थागत दिक्कतों से पार पाने की चुनौती है, जो गहराई तक पैठ बना चुकी हैं. करीब 3,5000 करोड़ डॉलर की पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए यह बेहद जरूरी है.

मुहम्मद सोहेल, कराची की एक ब्रोकरेज फर्म टॉपलाइन सिक्यॉरिटीज के सीईओ हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "अगर सरकार को आईएमएफ से लंबे समय के लिए पैकेज मिल जाता है और समझौते की शर्तों का पालन किया जाता है, तो अर्थव्यवस्था को सुधारा जा सकता है."

हालांकि, आईएमएफ के कार्यक्रम के लिए अमूमन सख्त कदम उठाने और बड़े स्तर पर सुधार लागू करने की जरूरत पड़ती है. ऐसे फैसले आमतौर पर लोकप्रिय नहीं होते. पाकिस्तान के मामले में गैस और बिजली पर सब्सिडी खत्म करना और टैक्स के आधार में विस्तार करना इन सख्त फैसलों की परिधि में आ सकता है. साथ ही, घाटे में चल रहे सरकारी नियंत्रण वाले कारोबारों को बेचने जैसे कदम भी उठाए जा सकते हैं. 

इन उपायों के मद्देनजर सरकार नियंत्रित पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइन को बेचने का फैसला लिया गया है. लंबे समय से इस एयरलाइन पर कुप्रबंधन का आरोप लगता आया है. अर्थशास्त्री और नीति विश्लेषक साफिया आफताब ने डीडब्ल्यू को बताया, "मेरी राय में निजीकरण की जरूरत है और ये बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था."

आफताब रेखांकित करती हैं, "निजीकरण और नौकरियों में छंटनी वगैरह पर अब तक जो बातें होती आई हैं, उनमें अक्सर यह बात छूट जाती है कि गरीबों समेत हम सबको ही सरकार के स्वामित्व वाले ऐसे उद्योगों को चलाने की कीमत चुकानी पड़ती है, जो कुछ नहीं कर रहे हैं और घाटे में चल रहे हैं." वह आगे कहती हैं, "हम ये कीमत इसलिए चुकाते हैं कि सरकार बजट में फंड देकर और कर्ज लेकर उनके घाटे की भरपाई करती है."

सोहेल भी इस बात से सहमति जताते हुए कहते हैं, "एयरलाइन और अन्य घाटे में चल रही कंपनियों के निजीकरण से पाकिस्तान को फायदा होगा क्योंकि इससे सरकार का घाटा कम होगा." सोहेल ध्यान दिलाते हैं, "हमने 1990 के दशक के आखिर में भी बैंकों के साथ इस तरह की स्थितियां देखी हैं. निजीकरण के बाद बैंकों ने सरकार को फायदा पहुंचाना शुरू किया था."

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मिलिट्री ओलिगोपॉली की ओर बढ़ता पाकिस्तान?

लेकिन सरकार जिस तरह निजीकरण अभियान को बढ़ा रही है, उसकी आलोचना भी हो रही है. बीते साल पाकिस्तान में 'स्पेशल इन्वेस्टमेंट फेलिसिटेशन काउंसिल' का गठन हुआ. सरकार ने कहा कि यह निवेश को ज्यादा तेज और आसान बनाएगा. कानून के विशेषज्ञ ओसामा मलिक कहते हैं, "आईएमएफ की ओर से की गई निजीकरण की मांग तार्किक है, लेकिन पाकिस्तान में जो हो रहा है, वो शायद वैसा नहीं है जिसकी बात आईएमएफ कर रहा है."

मलिक आरोप लगाते हैं कि यह काउंसिल सेना के नियंत्रण में है. वह इस काउंसिल की बॉडी में पाकिस्तान के सेना प्रमुख को शामिल किए जाने की ओर ध्यान दिलाते हैं. वह बताते हैं, "हमने हाल ही में देखा कि केंद्र सरकार के स्वामित्व वाली प्रमुख पर्यटन कंपनियों को सेना के स्वामित्व वाली एक नई कंपनी में शामिल कर दिया गया. इस तरह का 'निजीकरण' देश में मिलिट्री ओलिगोपॉली (सैन्य अल्पाधिकार) की स्थिति पैदा कर सकता है, जबकि सशस्त्र बलों के पास विभिन्न कॉर्पोरेट उद्योगों में पहले से ही बड़ी हिस्सेदारी है."

धीमे आर्थिक सुधार की उम्मीद

अर्थशास्त्रियों ने चेतावनी दी है कि आर्थिक सुधारों की सूरत में कुछ समय के लिए लोगों की तकलीफें और बढ़ सकती हैं. अर्थशास्त्री आफताब बताती हैं, "आयात में प्रतिबंध लगाने का मतलब है कि विनिर्माण पर विशेष रूप से असर पड़ेगा, जबकि सार्वजनिक क्षेत्र में विकास कार्यों को कम करने का अर्थ है कि घरेलू अर्थव्यवस्था में गतिविधियां घट रही हैं."

उन्होंने चेताया कि अर्थव्यवस्था में सुधार धीमी रफ्तार से होगा और विकास की गति को वापस लाने में कुछ साल लग सकते हैं. वह कहती हैं, "आईएमएफ कार्यक्रम कम समय में बड़ी प्रगति नहीं ला पाएगा, लेकिन इसकी वजह से चालू खाते और राजकोषीय घाटे कम होंगे. इसके कारण मुद्रास्फीति को स्थिर होने में मदद मिलेगी. आईएमएफ कार्यक्रम विकास को बढ़ाने के लिए नहीं, बल्कि स्थिरता पाने के लिए है."