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राजनीतिभूटान

भूटान चुनाव में किन मुद्दों पर वोट डाल रही है जनता

स्वाति मिश्रा
९ जनवरी २०२४

9 जनवरी को भूटान में नई सरकार के लिए हुए मतदान हुआ. संसदीय व्यवस्था अपनाने के बाद से अब तक भूटान का लोकतांत्रिक सफर कमोबेश सेहतमंद रहा है. बीते चुनावों की तरह इस बार भी चुनावी प्रक्रिया नियमित, स्थिर और शांतिपूर्ण रही.

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भूटान का झंडा
खुशहाली को वरीयता देने वाले "ग्रॉस नेशनल हैपीनेस" मापदंड के लिए मशहूर भूटान में इस बार आर्थिक संकट चुनावों की मुख्य थीम बना रहा. तस्वीर: Valerio Rosati/Zoonar/picture alliance

भूटान में नई संसद के चुनाव के लिए मतदान हो रहा है. मुकाबला दो पार्टियों के बीच है. इनमें से एक पूर्व प्रधानमंत्री शेरिंग तॉबगे की पीपल्स डेमोक्रैटिक पार्टी है और दूसरा राजनीतिक दल है पूर्व अधिकारी पेमा चेवांग की भूटान टेंड्रेल पार्टी. यह भूटान का चौथा आम चुनाव है. पूरी तरह से राजशाही व्यवस्था वाले भूटान ने 2008 में संवैधानिक राजतंत्र को अपनाया था.

राजा देंगे नई सरकार बनाने का न्योता

भूटान में चुनाव दो चरणों में होते हैं. नवंबर 2023 में हुए मतदान के शुरुआती राउंड में भूटान की पांच प्रमुख पार्टियों के बीच मुकाबला हुआ. इनमें से तीन पुरानी पार्टियां- ड्रुक न्यामरूप त्शोग्पा (डीएनटी), ड्रुक फुएनसम त्शोग्पा (डीपीटी) और पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) ने अब तक एक-एक बार भूटान में सरकार बनाई है.

इनके अलावा दो नई पार्टियां भी हैं: भूटान टेंड्रेल पार्टी (बीटीपी) और ड्रुक थुएंड्रेल त्शोग्पा (डीटीटीपी). शुरुआती राउंड में सबसे ज्यादा वोट पाकर पीडीपी और बीटीपी मुख्य चरण में पहुंचीं. इन दोनों में से जिसे भी सबसे ज्यादा वोट मिलेंगे, उसे भूटान के राजा जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक नई सरकार बनाने का न्योता देंगे.

भूटान पर्यटन
भूटान की अर्थव्यवस्था पर्यटन पर बहुत ज्यादा निर्भर है, लेकिन इस क्षेत्र का दायरा भी सीमित है. तस्वीर: Prabakar Mani Tewari/DW

कोरोना का असर अब तक

खुशहाली को वरीयता देने वाले "ग्रॉस नेशनल हैपीनेस" मापदंड के लिए मशहूर भूटान में इस बार आर्थिक संकट चुनावों की मुख्य थीम बना रहा. अर्थव्यवस्था की बेहद धीमी रफ्तार भूटान के आगे एक बड़ा संकट है.

कोरोना महामारी के कारण भूटान की अर्थव्यवस्था पर बहुत असर पड़ा. महामारी को फैलने से रोकने के लिए भूटान ने अपनी सीमा बंद कर दी थी. विश्व बैंक की सालाना "भूटान डेवलपमेंट अपडेट" के मुताबिक, 2018-19 के वित्तीय वर्ष में जहां उसकी आर्थिक तरक्की की दर 3.8 फीसदी थी, वहीं 2019-20 में यह घटकर 1.5 प्रतिशत पर आ गई.

कोरोना के असर से उबरने की रफ्तार भी यहां काफी धीमी रही. इकॉनमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट ने अनुमान जताया कि पनबिजली क्षेत्र और पर्यटन से होने वाली कमाई के कारण 2023-24 में जीडीपी विकास 4.4 प्रतिशत रहेगा. यानी 2022-23 के 4.2 प्रतिशत से मामूली ज्यादा.

आर्थिक सुधार की रफ्तार में फिलहाल किसी बड़े बदलाव के आसार नहीं हैं. वित्तीय घाटा बढ़ा है और इसके कारण विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव भी बढ़ा है. एशियन डेवलपमेंट बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, भूटान को अपने विकास लक्ष्य हासिल करने के लिए ज्यादा विविध और सक्रिय प्राइवेट सेक्टर की जरूरत है.

आर्थिक चुनौतियों के मद्देनजर ही भूटान के राजा वांगचुक ने दिसंबर 2023 में एक मेगासिटी बनाने की योजना का एलान किया था. यह मेगासिटी असम से सटी सीमा के पास बनाई जाएगी. यहां विदेशी निवेश से जीरो-कार्बन वाले उद्योग-धंधे लगाए जाने की योजना है.

भूटान
ग्रामीण इलाकों में अच्छी सड़कों और पीने के साफ पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं की कमी है. साथ ही, स्वास्थ्य ढांचे को भी बेहतर किए जाने की जरूरत है. तस्वीर: Prabakar Mani Tewari/DW

बेरोजगारी और युवाओं का पलायन बड़ी चिंता

इसके अलावा रोजगार के मौके पैदा करना भी बड़ी चुनौती है. विश्व बैंक के मुताबिक, भूटान में बेरोजगारी दर 29 फीसदी है. बेहतर मौकों की तलाश में युवा प्रतिभाएं विदेश जा रही हैं. पिछले कुछ सालों में यहां से रिकॉर्ड संख्या में युवा बाहर गए हैं.

सबसे ज्यादा संख्या ऑस्ट्रेलिया जाने वालों की है. स्थानीय खबरों के मुताबिक, जुलाई 2022 से जुलाई 2023 के बीच करीब 15,000 भूटानी युवाओं को ऑस्ट्रेलिया का वीजा मिला. लगभग आठ लाख की आबादी वाले देश में यह एक बड़ी संख्या है.

भूटान की अर्थव्यवस्था पर्यटन पर बहुत ज्यादा निर्भर है, लेकिन इस क्षेत्र का दायरा भी सीमित है. उस पर यह क्षेत्र अब भी कोरोना महामारी में आए धीमेपन से पूरी तरह नहीं उबर सका है. ऐसे में देश का आर्थिक भविष्य मुख्य चुनावी मुद्दा रहा है.

शुरुआती चरण के मतदान से पहले सभी मुख्य पार्टियों के अध्यक्षों के बीच हुई बहस में भी आर्धिक सुधार की रूपरेखा पर काफी फोकस रहा. प्रत्याशियों ने विदेशी निवेश आकर्षित करने, पनबिजली परियोजनाओं के विकास और पर्यटन क्षेत्र में विस्तार जैसे उपायों पर जोर दिया. सभी पार्टियों ने आर्थिक संकट से निपटने को वरीयता देने की बात कही.

आर्थिक संकट और बेरोजगारी युवा मतदाताओं के लिए भी सबसे अहम मुद्दे हैं. राजधानी थिंपू के एक मतदान केंद्र में वोट डालकर निकले 22 साल के छात्र उगयेन शेरिंग ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "मतदान में हिस्सा लेना हमारे बेहतर भविष्य से जुड़ा है. भूटान में रोजगार के बहुत कम मौके हैं और नई सरकार को इसके समाधान पर ध्यान देना चाहिए, ताकि बेहतर भविष्य की खोज में युवा विदेश ना जाएं." 

भूटान में एक पनबिजली परियोजना
पनबिजली परियोजनाओं में काफी संभावनाएं हैं. इस चुनाव में प्रत्याशियों ने हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स में और विस्तार करने की बात भी कही है. हालांकि इस क्षेत्र में और तरक्की के साथ-साथ कार्बन नेगेटिव बने रहने के लिए भूटान को बड़े स्तर पर ग्रीन फंडिंग की जरूरत होगी. तस्वीर: AFP via Getty Images

मूलभूत सुविधाओं में भी सुधार चाहिए

25 साल की आर्किटेक्ट संध्या प्रधान भी यही मानती हैं. उन्होंने एएफपी से कहा, "मैं उम्मीद करती हूं कि ग्रामीण इलाकों में तरक्की आएगी." बतौर मतदाता संध्या मानती हैं कि शिक्षा के साथ-साथ स्वास्थ्य सेवाओं में भी बेहतरी की जरूरत है.

दोनों उम्मीदवारों पर अपनी राय बताते हुए संध्या कहती हैं, "दोनों ही प्रत्याशियों में काफी क्षमता है. वो ऑस्ट्रेलिया गए हमारे युवाओं को वापस लौटने और भूटान में काम करने के लिए प्रोत्साहित कर पाएंगे."

भूटान में बुनियादी ढांचा भी अच्छी हालत में नहीं है. ग्रामीण इलाकों में खासतौर पर अच्छी सड़कों और पीने के साफ पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं की कमी है.

पीडीपी ने सरकारी आंकड़ों के हवाले से अपने चुनावी घोषणापत्र में लिखा है कि हर आठ में से एक इंसान भोजन जैसी बुनियादी जरूरतें पूरी करने के लिए संघर्ष कर रहा है. पीडीपी के मुताबिक, भूटान में आर्थिक संकट और लोगों के देश छोड़कर बाहर जाने की स्थिति अभूतपूर्व स्तर पर है.

जलवायु परिवर्तन खत्म कर देगा भूटान का पानी

एक तरफ भारत, एक तरफ चीन

आर्थिक मुश्किलों के अलावा देश के लिए विदेश नीति के स्तर पर भी चुनौतियां हैं. भारत और चीन के बीच सीमा से जुड़े अनसुलझे दावों और विवादों ने हालिया वक्त में नाटकीय मोड़ लिया है. दोनों देशों के सैनिकों में हिंसक हाथापाई जैसी घटनाओं ने तनाव बढ़ाया है. यह स्थिति भूटान के लिए चिंताजनक है क्योंकि डोकलाम पर बना गतिरोध अब तक नहीं सुलझाया जा सका है.

सिलिगुड़ी गलियारे की सुरक्षा और उत्तरपूर्वी हिस्से के साथ संपर्क के लिहाज से भारत के लिए डोकलाम काफी संवेदनशील है और भूटान पर नई दिल्ली के सामरिक हितों के मुताबिक पेश आने का दबाव है. हालांकि अब भूटान का रवैया अपेक्षाकृत ज्यादा स्वायत्त है. वह भारत की छाया से निकलने की कोशिश करता दिख रहा है. पिछले साल भूटान के प्रधानमंत्री ने कहा था कि डोकलाम विवाद सुलझाने में उनका देश, भारत और चीन बराबर के साझेदार हैं और तीनों को मिलकर इसका हल निकालना होगा.  

भारत और चीन, दोनों ही बड़ी शक्तियां भूटान में अपने सामरिक और सीमाई हित देखते हैं. भूटान पारंपरिक तौर पर भारत के करीब रहा है. लेकिन बीते सालों में यहां नई दिल्ली से निर्भरता घटाने और अपने हितों में विस्तार के लिए भारत से इतर भी संभावनाएं तलाशने पर राय बन रही है.