बीजेपी अभी से जुट गई है गुजरात के चुनाव में
११ मार्च २०२२10 मार्च को पांच राज्यों में हुए हालिया विधानसभा चुनावों के नतीजे आए. पंजाब को छोड़कर बाकी चार राज्यों- यूपी, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में बीजेपी सरकार बना रही है. एक तरफ जहां पार्टी की प्रदेश ईकाईयां अभी भी नतीजों का जश्न मनाने में जुटी हैं, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात में चुनाव तैयारियां शुरू कर चुके हैं. मोदी दो दिन के दौरे पर गुजरात पहुंचे हैं. उन्होंने अहमदाबाद में 10 किलोमीटर लंबे रोडशो के साथ अपने दौरे की शुरुआत की.
बीजेपी कार्यकर्ताओं ने फूल-मालाओं से उनका भव्य स्वागत किया. मोदी ने हवाईअड्डे से गांधीनगर के बीजेपी मुख्यालय तक रोडशो निकाला. इस दौरान उनके साथ गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल भी थे.
मोदी अगले दो दिनों तक गुजरात में कई कार्यक्रमों में भाग लेंगे. वह पार्टी कार्यालय में प्रदेश नेताओं के साथ बैठक करेंगे, फिर पंचायतों के प्रतिनिधियों की एक सभा में भाग लेंगे. 12 मार्च को मोदी राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय की इमारत को राष्ट्र के नाम समर्पित करेंगे और विश्वविद्यालय के पहले दीक्षांत समारोह को संबोधित करेंगे. उसके बाद वह अहमदाबाद के सरदार पटेल स्टेडियम में खेल महाकुंभ के उद्घाटन समारोह में हिस्सा लेकर देर शाम दिल्ली लौट जाएंगे.
मोदी को इन कार्यक्रमों के जरिए वहां पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं में चुनाव की तैयारियों के लिए उत्साह भरने का अवसर मिलेगा. राज्य में इतनी लंबी उपस्थिति के जरिए यह संदेश भी जाएगा कि वह खुद चुनाव की तैयारियों को निजी रूप से देख रहे हैं. हालांकि गुजरात विधान सभा चुनाव में अभी काफी समय बचा है.
विधान सभा का कार्यकाल फरवरी 2023 में खत्म होगा, इसलिए चुनाव दिसंबर 2022 में होने की उम्मीद है. मगर उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में पांच राज्यों में हुए हालिया चुनाव के तुरंत बाद बीजेपी समय गंवाए बिना गुजरात चुनाव की तैयारियों में जुट गई है.
क्या है चुनावी गणित?
गुजरात नरेंद्र मोदी और अमित शाह, दोनों का गृह राज्य है. यहां के चुनाव नतीजों को इन दोनों नेताओं की राजनैतिक साख के तौर पर देखा जाता है. बीजेपी 1995 से गुजरात की सत्ता में है. केशुभाई पटेल के इस्तीफे के बाद अक्टूबर 2001 में मोदी पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने. मई 2014 में प्रधानमंत्री बनने तक वह 12 साल से ज्यादा समय तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. बतौर मुख्यमंत्री मोदी के कार्यकाल के दौर से ही बीजेपी को गुजरात में अजेय समझा जाने लगा.
हालांकि जानकारों के मुताबिक, मोदी के दिल्ली आने के बाद गुजरात में बीजेपी की स्थिति पहले जैसी नहीं रही है. इसका संकेत 2017 के चुनाव से पहले दिखने लगा था. मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद आनंदीबेन पटेल को प्रदेश का सीएम बनाया गया था. वह मोदी की भरोसेमंद मानी जाती थीं, मगर पाटीदार आंदोलन के कारण उनकी स्थिति कमजोर होती गई.
जून 2016 में उन्होंने पहली बार पद से इस्तीफा दिया, लेकिन तब मोदी ने उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया. जुलाई 2016 में ऊना में दलितों के साथ हुई हिंसा और इसके बाद खड़े हुए दलित आंदोलनों ने आनंदीबेन को और कमजोर किया. अगस्त 2016 में उन्होंने जब दूसरी बार इस्तीफा दिया, तो शीर्ष नेतृत्व ने इसे मंजूर कर लिया.
आनंदीबेन पटेल की जगह विजय रूपाणी नए मुख्यमंत्री बनाए गए. प्रदेश नेतृत्व में हुए इस बदलाव के बाद भी 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन पहले के मुकाबले कमजोर रहा. इससे पहले हुए पांच विधानसभा चुनावों- 1995, 1998, 2002, 2007 और 2012 में प्रदेश की कुल 182 असेंबली सीटों में बीजेपी 115 से 127 सीटों के बीच थी.
लेकिन 2017 वह 99 सीटें ही जीत सकी थी. इससे पहले 1990 में बीजेपी ने प्रदेश में 100 से कम सीटें जीती थीं. 2017 में कांग्रेस का प्रदर्शन भी सुधरा. उसके खाते में 77 सीटें आई थीं. वोट प्रतिशत में बीजेपी को जहां लगभग 49 फीसदी मत मिले, वहीं कांग्रेस को करीब 41 प्रतिशत वोट मिले.
नया नेतृत्व
पिछले साल, सितंबर 2021 में विजय रूपाणी ने भी इस्तीफा दे दिया. उनकी जगह भूपेंद्र पटेल मुख्यमंत्री बनाए गए. जानकारों का मानना था कि यह बदलाव 2022 चुनाव के मद्देनजर किया गया है. रूपाणी को हटाकर यह संकेत देने की कोशिश की गई है कि पार्टी नेतृत्व कोविड की दूसरी लहर के दौरान उनके कामकाज से अंसतुष्ट है. गुजरात, कोविड की दूसरी लहर से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले प्रदेशों में से था.
मेडिकल ऑक्सीजन, दवाएं, अस्पताल में बिस्तरों की कमी रही थी. यहां तक कि हाई कोर्ट ने भी टिप्पणी की थी कि महामारी का सामना करने की राज्य सरकार की तैयारियां संतोषजनक और पारदर्शी नहीं हैं. आधिकारिक आंकड़ों से हिसाब से गुजरात में कोविड से करीब 10,000 लोगों की मृत्यु हुई, लेकिन ये आंकड़े विवादित हैं. कोविड मौतों के मुआवजों के लिए ही राज्य सरकार के पास एक लाख से ज्यादा आवेदन आ चुके हैं.
विशेषज्ञों के मुताबिक, चुनौतियों को भांपते हुए बीजेपी शीर्ष नेतृत्व को विधानसभा चुनाव के लिए रूपाणी नेतृत्व पर भरोसा नहीं रह गया था. कई जानकारों ने जातिगत समीकरणों को भी इसका एक कारण बताया. रूपाणी जैन समुदाय से आते हैं. गुजरात की कुल आबादी में जैन समुदाय की मौजूदगी करीब दो प्रतिशत है. यह समुदाय प्रभावी, लेकिन अल्पसंख्यक है.
पार्टी के भीतर पटेल-पाटीदार समुदाय का खासा दबदबा माना जाता है. मौजूदा सीएम भूपेंद्रभाई पटेल इसी समुदाय से आते हैं. अगर बीजेपी अगला चुनाव जीतती है, तो प्रदेश में उसकी यह लगातार सातवीं जीत होगी. बीजेपी चाहेगी कि वह अपनी जीत का सिलसिला जारी रखे. केवल जीत नहीं, बल्कि वापस 115 प्लस सीटों पर पहुंचना भी उसका लक्ष्य होगा.
शायद इसीलिए नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी महीनों पहले से चुनावी तैयारियों में सक्रिय हो गई है. वहीं विपक्ष, खासतौर पर कांग्रेस के ऊपर हालिया चुनावों में मिली बड़ी हार के असर से उबरने की चुनौती है. इस करारी हार के कारण पार्टी में पहले से ही उभर रही असंतोष की आवाजें और मजबूत हो सकती हैं. उसके आगे इससे उबरने, अपने संगठन में मनोबल भरने और पिछले चुनाव के प्रदर्शनों को दोहराने की बड़ी चुनौती है.