पोलैंड में महिलाओं और नौजवानों ने बदल दी सत्ता
१६ अक्टूबर २०२३पोलैंड की राजधानी वॉरसा में 16 अक्टूबर की सुबह साढ़े छह बज रहे हैं. अंधेरा विदा हो रहा है और हर मिनट रोशनी धीरे धीरे बढ़ रही है. कामकाजी लोगों की भीड़ तेज कदमों के साथ हर दिशा में फैलने लगी है. इनमें ज्यादातर महिलाएं हैं, नौजवान और उम्रदराज. पुरुष बहुत कम दिख रहे हैं. जाहिर है हम एक ऐसे देश में हैं, जहां वर्कफोर्स में महिलाओं की हिस्सेदारी 58 फीसदी है. देश में 1,000 महिलाओं के मुकाबले 932 पुरुष हैं.
पोलैंड में आप कहीं भी जाएं, ज्यादातर जगहों पर आपको महिलाएं ही काम करती नजर आएंगी. बड़े शहरों में कुछ जगहों पर इक्का दुक्का उम्रदराज या गरीबी झेल रही महिलाएं भले ही फूल, पोलिश ब्रेड या गर्म मोजे बेचतीं दिखेंगी, लेकिन आपको यहां भीख मांगते लोग बहुत ही कम दिखेंगे.
पोलैंड की इन्हीं महिलाओं ने रविवार, 14 अक्टूबर को हुए चुनावों में देश की भविष्य बचा लिया. दो पुरुषों को पोस्टर बॉय बनाकर लड़े गए चुनावों में सत्ताधारी पार्टी पीआईएस की सत्ता छिनने जा रही है. रविवार रात नौ बजे वोटिंग खत्म होने के बाद एग्जिट पोल आने शुरू हुए. सोमवार सुबह होते होते पता चलने लगा कि देश में 1989 के बाद सबसे ज्यादा मतदान हुआ है. पोलिश मीडिया के मुताबिक रविवार को करीब 74 फीसदी लोगों ने नई संसद के लिए वोट डाले. इसमें युवाओं की भागीदारी करीब 72 फीसदी रही.
पोलैंड की संसदीय प्रणाली
पोलैंड में चार साल के लिए संसद चुनी जाती हैं. संसद के निचले सदन को सेम कहा जाता है. चुनाव में इसकी 460 सीटों के लिए मतदान हुआ. सेम में बहुमत वाली पार्टी या गठबंधन सरकार बनाते हैं. वहीं ऊपरी सदन को सीनेट कहा जाता है. यह भारत की राज्य सभा की तरह है. इसकी 100 सीटों के लिए भी इतवार को वोट डाले गए.
एग्जिट पोलों के मुताबिक, 2015 से सत्ता में मौजूद यारोस्लाव काचिंस्की की लॉ एंड जस्टिस पार्टी (पीआईएस) को सेम में करीब 200 सीटें मिलने का अनुमान है. पीआईएस को लगभग 36.8 फीसदी वोट मिले हैं. रुझानों के मुताबिक कंफेडरेशन कही जाने वाली नई धुर दक्षिणपंथी पार्टी को करीब 12 सीटें मिलने की संभावना है. इन दोनों को मिलाकर भी सेम में बहुमत के लिए जरूरी 231 का आंकड़ा पूरा नहीं हो रहा है.
दूसरी तरफ पूर्व प्रधानमंत्री और यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष रह चुके डॉनाल्ड टुस्क की पार्टी सिविक प्लैटफॉर्म को 31.6 फीसदी वोट मिलने का अनुमान हैं. यह आंकड़ा भले ही पीआईएस से कम हो, लेकिन द थर्ड नाम की नई मध्यमार्गी पार्टी और न्यू लेफ्ट वामपंथी पार्टी के साथ मिलकर टुस्क का गठबंधन 248 सीटों तक पहुंचता दिख रहा है. डॉनाल्ड टुस्क को पोलैंड से ज्यादा यूरोपीय संघ का नेता माना जाता है.
काचिंस्की और टुस्क को सीधा व स्पष्ट संदेश
चुनाव प्रचार के दौरान मैंने पोलैंड के दो बड़े शहरों, क्रकाओ और वॉरसा में कई युवाओं से बात की. अलग अलग राजनीतिक रुझानों के बावजूद उनमें कई समानताएं थीं. कुछ नई दक्षिणपंथी पार्टी की तरफ थे, तो कुछ द थर्ड और न्यू लेफ्ट की तरफ. समानता यह थी कि वे काचिंस्की और टुस्क से उकताए से दिखे. पोलैंड की राजनीति बीते 20 साल से इन्हीं दोनों चेहरों के इर्द गिर्द घूम रही है. इस बार महिलाओं और युवाओं ने द थर्ड और न्यू लेफ्ट को निर्णायक वोट देकर, इन दोनों के साफ संदेश दिया है.
काचिंस्की की राष्ट्रवादी पार्टी को सत्ता से बेदखल कर दिया है और टुस्क को अकेले इतनी सीटें नहीं दी हैं कि वह बेलगाम हो जाएं. द थर्ड और न्यू लेफ्ट के पास टुस्क नियंत्रण में रखने के लिए पर्याप्त सीटें हैं.
पीआईएस के साथ साथ चर्च को भी संदेश
पोलैंड में पीआईएस की सरकार ने 2020 में गर्भपात के कानूनी बहुत ही कड़े कर दिए. इन कानूनों ने गर्भपात को करीबन अंसभव सा बना दिया. देश में बीते एक दशक में इसे लेकर कई बार महिला संगठन प्रदर्शन कर चुके हैं. देश के ताकतवर कैथोलिक चर्च और उसका कहना मानने वाली काचिंस्की की पार्टी ने इसकी अनुमति नहीं दी.
पोलैंड में प्रवासन के मुद्दे पर रेफरेंडम
2023 के चुनावों में टुस्क की पार्टी, द थर्ड और न्यू लेफ्ट ने साफ कहा कि वे गर्भपात के कानून को लचीला बनाएंगे. इन पार्टियों के एजेंडे में टीचरों की सैलरी बढ़ाना, मीडिया को आजाद रखना, स्वास्थ्य और शिक्षा पर ज्यादा पैसे खर्च करने के वादे हैं.
न्यू लेफ्ट ने तो चर्च और सत्ता को अलग अलग रखने का वादा भी किया. वामपंथी पार्टी ने एलान किया है कि वह पोलैंड के ताकतवर चर्च पर टैक्स भी लगाएगी. साथ ही युवाओं के लिए सस्ते घर भी उसकी प्राथमिकता में हैं.
चुनाव में इन मुद्दों की जीत हुई है. रविवार को वोटिंग के दौरान एक चुनाव अधिकारी ने बताया कि आधिकारिक रूप से नतीजों का एलान मंगलवार तक ही हो सकेगा. इसके बाद 14 नवंबर तक नई सरकार का गठन होना है. चुनाव के साथ साथ हुए जनमत संग्रह के बारे में आधिकारिक जानकारी भी मंगलवार तक ही सामने आ सकेगी.