इस त्योहार के लिए सैकड़ों मील की यात्रा करती हैं भेड़ें
पोलैंड में सदियों पुरानी परंपरा के तहत सर्दियों का मौसम शुरू होने पर चरवाहे अपनी भेड़ों को सर्दी से बचाने के लिए सुरक्षित स्थान पर ले जाते हैं. हफ्तों तक चलने वाली इस यात्रा का समापन 'रेडिक' के रूप में मनाया जाता है.
क्या है ‘रेडिक’?
यूरोपीय देश पोलैंड में पहाड़ों पर रहने वाले चरवाहे सर्दियां शुरू होने पर अपनी भेड़ों को लेकर वापस मैदानी इलाकों में लौटते हैं. यात्रा खत्म करके जब ये लोग गांव पहुंचते हैं तो इस खुशी में रेडिक नाम का त्योहार मनाया जाता है.
चरवाहे करते हैं पूरी तैयारी
भेड़ों को वापस लाने की यात्रा लंबी और थकाने वाली होती है. कई बार इसमें हफ्तों लग जाते हैं. ऐसे में चरवाहे दिन खत्म होने पर अपनी गाड़ियों में रात गुजारते हैं और आराम करते हैं.
भेड़ों को खिलाते हैं भरपेट खाना
इस लंबी यात्रा के लिए चरवाहों के साथ-साथ भेड़ों को भी तैयारी करनी पड़ती है. सफर से पहले भेड़ें भरपेट खाना खाती हैं ताकि चलने के लिए उन्हें पर्याप्त ताकत मिल सके. सफर के दौरान खाने के लिए कुछ मिलने की गुंजाइश कम ही होती है.
सबकी होती है गिनती
यात्रा पर निकलने से पहले भेड़ों को एक जगह इकट्ठा करके उनकी गिनती की जाती है. चरवाहे कुत्तों की मदद से उन्हें झुंड में इकट्ठा करते हैं और जांचते हैं कि कहीं वे किसी बीमारी से तो नहीं जूझ रही हैं.
कभी पहाड़, कभी मैदान
हफ्तों तक चलने वाली इस यात्रा के दौरान भेड़ें घाटी के अलग-अलग रास्तों से होकर गुजरती हैं. इसके लिए कई बार सार्वजनिक सड़कों को कुछ समय के लिए बंद कर दिया जाता है ताकि भेड़ें और चरवाहे आसानी से आ सकें.
आराम का पूरा ध्यान
चरवाहे इस यात्रा के दौरान गांवों के पास रुककर आराम करते हैं. पहले चरवाहों की मदद के लिए गांव के लोग साथ चलते थे लेकिन अब लोग इस काम के लिए आगे नहीं आते हैं. चरवाहे अब इस काम के लिए प्रशिक्षित कुत्तों की मदद लेते हैं.
होता है भव्य स्वागत
भेड़ों के झुंड के साथ गांव लौटने पर चरवाहों का भव्य स्वागत किया जाता है. चरवाहे पारंपरिक पोशाक पहनते हैं और लोग कतार में खड़े होकर उनका स्वागत करते हैं. इस दिन उत्सव का माहौल होता है जिसे देखने के लिए पर्यटक भी इकट्ठा होते हैं.