राज्यसभा चुनाव: खुलेआम क्रॉस-वोटिंग कैसे कर पाते हैं विधायक
२७ फ़रवरी २०२४यूपी में राज्यसभा की 10 सीटों पर चुनाव होने थे. विधायकों की संख्या के हिसाब से बीजेपी के सात और समाजवादी पार्टी के तीन उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित थी. दोनों ही दलों ने पहले इतने ही उम्मीदवार उतारे भी थे, लेकिन बीजेपी ने आखिरी मौके पर एक और उम्मीदवार को उतारकर मतदान को जटिल बना दिया.
बताया जा रहा है कि इस चुनाव में समाजवादी पार्टी (सपा) के सात विधायकों ने क्रॉस-वोटिंग की है, जबकि एक विधायक वोट डालने नहीं आईं. वहीं नेशनल डेमोक्रैटिक अलायंस (एनडीए) में शामिल ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के एक विधायक ने भी क्रॉस-वोट किया. सपा विधायकों की क्रॉस-वोटिंग के चलते बीजेपी के सभी आठ उम्मीदवारों की जीत तय मानी जा रही है.
हालांकि, इस क्रॉस-वोटिंग को लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. सपा के नेता अखिलेश यादव ने आरोप लगाया है कि बीजेपी ने विधायकों को प्रलोभन देकर और धमकाकर अपने उम्मीदवार के पक्ष में मतदान कराया है. वहीं, बीजेपी का कहना है कि विधायकों ने अपनी मर्जी से वोट दिया है. क्रॉस-वोटिंग करने वाले विधायकों का कहना है कि उन्होंने अपनी ‘अंतरात्मा की आवाज' पर मतदान किया है.
नियम क्या कहते हैं
क्रॉस-वोटिंग का मतलब है कि किसी पार्टी का विधायक किसी दूसरे दल के उम्मीदवार को वोट करे. हालांकि, मतदान करते समय पहले वोट को पार्टी के अधिकृत एजेंट को दिखाया जाता है और उसके बाद सभापति के पास जमा किया जाता है. राज्यसभा चुनाव, विधान परिषद चुनाव और राष्ट्रपति के चुनाव में अक्सर क्रॉस- वोटिंग होती है.
साल 1998 में क्रॉस-वोटिंग के चलते कांग्रेस उम्मीदवार के चुनाव हारने के कारण ओपन बैलेट का नियम लाया गया. इसके तहत हर विधायक को अपना वोट पार्टी के मुखिया या अधिकृत एजेंट को दिखाना होता है. हालांकि उसके बाद भी क्रॉस-वोटिंग होती रही और आज भी हुई.
राज्ससभा चुनाव में खरीद-फरोख्त, दल-बदल, क्रॉस-वोटिंग जैसी शिकायतें अक्सर होती हैं, लेकिन साल 2016 में एक दिलचस्प मामला सामने आया जब गलत पेन के इस्तेमाल के कारण एक दर्जन से ज्यादा विधायकों के वोट रद्द कर दिए गए. यह मामला था हरियाणा का, जब कांग्रेस पार्टी के 13 विधायकों के वोट गलत पेन के इस्तेमाल की वजह से रद्द कर दिए गए.
कहा गया कि पीठासीन अधिकारी जिस पेन की अनुमति दे, उसी का इस्तेमाल मतपत्र पर करना था जबकि इन विधायकों ने दूसरी कलम का इस्तेमाल किया था. वहीं, पार्टी के विधायक रणदीप सुरजेवाला का वोट इसलिए रद्द कर दिया गया कि उन्होंने अपना वोट कांग्रेस विधायक दल की नेता किरण चौधरी को दिखा दिया था. नियमों के मुताबिक मतदान गुप्त होता है और बैलेट बॉक्स में डालने से पहले इसे किसी को दिखाने की अनुमति नहीं होती.
दरअसल, क्रॉस-वोटिंग इसलिए भी विधायकों के लिए आसान हो जाती है कि ऐसा करने वाले विधायक की सदस्यता पर इससे आंच नहीं आती. क्रॉस-वोटिंग करने वाले विधायक के खिलाफ उसकी पार्टी कोई कार्रवाई जरूर कर सकती है. साल 2017 में गुजरात में कांग्रेस पार्टी ने क्रॉस वोटिंग करने के लिए अपने 14 विधायकों को छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया था.
लेकिन क्रॉस-वोटिंग करने वाले विधायक की सदस्यता पर कोई फर्क नहीं पड़ता, यानी उसके ऊपर दल-बदल कानून लागू नहीं होता. जब तक कोई सदस्य अपनी मूल पार्टी, जिससे वो विधायक है, उससे इस्तीफा देकर दूसरी पार्टी में शामिल नहीं होता, तब तक वह दल-बदल कानून के दायरे में नहीं आता.
कैसे होता है राज्यसभा का चुनाव
राज्यसभा के चुनाव में राज्यों की विधानसभाओं के विधायक हिस्सा लेते हैं. इसमें विधान परिषद के सदस्य वोट नहीं डालते. राज्यसभा चुनाव की वोटिंग का एक फॉर्मूला होता है और यह लोकसभा के मतदान से अलग होता है.
विधायकों को चुनाव के दौरान प्राथमिकता के आधार पर वोट देना होता है. उन्हें कागज पर लिखकर बताना होता है कि उनकी पहली पसंद कौन है और दूसरी पसंद कौन. सबसे पहले पहली पसंद के वोटों की गिनती होती है और जिसे ज्यादा मत मिलते हैं, यानी जो मतदान का कोटा पूरा कर लेगा, वही जीता हुआ माना जाएगा. अगर प्रथम वरीयता के वोटों से जीत सुनिश्चित नहीं होती है, तो दूसरी वरीयता के मतों की गणना होती है.
मतों का कोटा कैसे तय होता है, ये जानना भी जरूरी है. दरअसल, किसी राज्य में जितनी राज्यसभा सीटें खाली हैं, उसमें सबसे पहले एक जोड़ा जाता है, फिर उसे उस राज्य की कुल विधानसभा सीटों की संख्या से भाग दिया जाता है. इससे जो संख्या आती है, उसमें एक जोड़ दिया जाता है.
जैसे, यूपी में राज्य सभा की कुल 31 सीटें हैं. फिलहाल 10 सीटें खाली थीं, जिन पर आज चुनाव हुए हैं. 10 में एक जोड़ने पर संख्या आती है- 11. यूपी में विधानसभा सीटों की संख्या 403 है, लेकिन मौजूदा समय में चार सीटें खाली हैं, इसलिए कुल 399 विधायकों को मतदान करना था. अब 399 को 11 से भाग देने पर यह संख्या करीब 36 आती है. इसमें एक जोड़ने पर यह संख्या होती है- 37. यानी एक उम्मीदवार को जीतने के लिए 37 वोटों की जरूरत थी.
सपा के कुछ विधायक पार्टी से नाराज थे
यूपी के राज्यसभा चुनाव में क्रॉस-वोटिंग की चर्चा इसलिए भी हो रही है कि आने वाले दिनों में लोकसभा चुनाव हैं. राजनीतिक दलों के नेताओं का इधर-उधर जाने का क्रम जारी है. पिछले दिनों अयोध्या में राम मंदिर दर्शन को लेकर समाजवादी पार्टी के कुछ विधायकों में अपनी पार्टी के रुख को लेकर नाराजगी जरूर थी, लेकिन ये विधायक पार्टी के खिलाफ चले जाएंगे, ऐसी उम्मीद नहीं थी.
अमेठी के गौरीगंज से समाजवादी पार्टी के विधायक राकेश सिंह ने मतदान से ठीक पहले ‘जय श्रीराम' कहकर अपना रुख स्पष्ट कर दिया था. हालांकि, सबसे चौंकाने वाला नाम रहा समाजवादी पार्टी के मुख्य सचेतक और रायबरेली जिले की ऊंचाहार विधानसभा सीट से विधायक मनोज पांडेय का. मनोज पांडेय समाजवादी पार्टी सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं.
अमेठी और रायबरेली की लोकसभा सीटें कांग्रेस का गढ़ मानी जाती हैं और यहां पिछले कई चुनाव से समाजवादी पार्टी अपने उम्मीदवार नहीं उतारती. हाल ही में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच हुए गठबंधन के कारण ये सीटें गठबंधन के पक्ष में और मजबूत हुई हैं, जबकि बीजेपी किसी भी कीमत पर इन सीटों को जीतना चाहती है.
अमेठी सीट को तो वो 2019 में जीत भी चुकी है, जब केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को हराया था. लेकिन रायबरेली सीट अभी भी बीजेपी से दूर रही है. हालांकि इस बार सोनिया गांधी ने यहां से चुनाव न लड़ने की घोषणा की है.