किसानों की सही मदद कर सकें तो बचाई जा सकती है धरती
२९ नवम्बर २०२२न्यूजीलैंड का कृषि उद्योग मेमने के मांस के लिए मशहूर है. दक्षिण कैंटरबरी के किसान एक्टिविस्ट विलियम रोलस्टोन बताते हैं, एक समय ऐसा था कि बूचड़खाने के कर्मचारियों की कमाई एयरलाइन पायलटों से ज्यादा हुआ करती थी. वजह था कृषि उद्योग को मिलने वाली अच्छी खासी सब्सिडी.
कुछ दशक पहले, भारी सब्सिडी मिलने से बड़े पैमाने पर सीमांत भूमि को चारागाह बनाने के लिए साफ कर दिया गया, खाद का ज्यादा इस्तेमाल होने लगा और भेड़ों की आबादी इतनी बढ़ गई की मीट को नष्ट करना पड़ा.
जैव विविधता पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (सीबीडी) की एक स्टडी के मुताबिक पूरे न्यूजीलैंड में सब्सिडी कार्यक्रमों का प्रकृति पर असर पड़ा, नदियां प्रदूषित हुईं और मिट्टी का कटाव हुआ.
सब्सिडी सुधार से पर्यावरण रक्षा
रोलस्टोन बताते हैं, ''फिर, 1984 में, सब कुछ बदल गया.'' एक क्रांतिकारी बदलाव हुआ, सब्सिडी हटा दी गई या कम कर दी गई. सीबीडी की रिपोर्ट के मुताबिक, इसके बाद खेती ज्यादा आसान हो गई, खेती के नुकसानदेह तरीके घट गए, उर्वरक के इस्तेमाल में 50% की गिरावट आई और कई पहाड़ी इलाकों में फिर से जंगल लगाए गए.
हालांकि, यहां कृषि अभी भी ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का एक प्रमुख स्रोत बनी हुई है. प्रकृति और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली सब्सिडी में सुधार को लेकर जैव विविधता एक्टिविस्ट न्यूजीलैंड को 'पोस्टर चाइल्ड' करार देते हैं.
इस मुद्दे के संयुक्त राष्ट्र कॉप15 शिखर सम्मेलन में उठने की उम्मीद है. यह अगले सप्ताह कनाडा के मॉन्ट्रियल में शुरू होगा. इस सम्मेलन में देश जैव विविधता की रक्षा के लिए एक रूपरेखा पर सहमत होने की कोशिश करेंगे. नए मसौदे में कृषि समेत सभी क्षेत्रों में सालाना कम से कम 500 अरब डॉलर सब्सिडी घटाने के सुधार का लक्ष्य शामिल है.
सब्सिडी से नुकसान
बिजनेस फॉर नेचर एडवोकेसी ग्रुप की फरवरी में प्रकाशित एक स्टडी के मुताबिक, हर साल दुनिया भर में सरकारी सब्सिडी से करीब 1.8 ट्रिलियन राशि के बराबर प्रकृति को नुकसान पहुंचता है. यह वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के 2% बराबर है. इसमें कहा गया है कि 520 अरब डॉलर सालाना की कृषि सब्सिडी ईकोसिस्टम के विनाश का सबसे बड़ा कारण है.
जलवायु परिवर्तन और तापमान में वृद्धि को रोकने को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं. डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की रिपोर्ट बताती है कि पिछले एक दशक में प्रकृति ने मानव से संबंधित 54% कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन अवशोषित किया है.
मांस उत्पादन और उर्वरक जैसी चीजों पर कृषि सब्सिडी लंबे समय में फूड सिक्योरिटी के लिए भी खतरा माना जाता है. ग्लोबल एनवायरमेंट फैसिलिटी के मुताबिक उपजाऊ मिट्टी में कमी का मतलब है 2050 तक दुनिया भर में 95% भूमि काम लायक नहीं रह पाएगी. गायों की डकार पर न्यूजीलैंड में सरकार और किसानों के बीच तकरार
सब्सिडी का पर्यावरण पर असर और राजनीति
सब्सिडी सुधार को लेकर सरकारों के लिये यह दिलचस्प है कि इसमें बजट की कमी के बीच नये पैसे लाने की जगह मौजूदा फंडों का फिर से इस्तेमाल करना शामिल है. हालांकि ये सब्सिडी जटिल हैं. इसमें कई चीजें शामिल हैं जैसे कृषि उत्पादन आधारित भुगतान, माल के लिए न्यूनतम मूल्य की गारंटी, और किसानों के लिए आय समर्थन.
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंटरनेशनल में खाद्य नीति की प्रमुख मार्टिना फ्लेकेंस्टीन बताती हैं, देशों को सबसे पहले उनकी सब्सिडी की पूरी सीमा और प्रकृति पर उनके प्रभाव का आकलन करना और समझना चाहिए.
विश्व संसाधन संस्थान की रिसर्च कहती है कि कृषि सब्सिडी छोटे किसानों की कीमत पर बड़े किसानों को मदद करती हैं.
संरक्षण समूह द नेचर कंजरवेंसी में नीति और वित्त निदेशक एंड्रयू ड्युट्ज कहते हैं, कृषि को लेकर राजनीति जीवाश्म ईंधन से अलग रखकर होनी चाहिए, ताकि सकारात्मक तरीकों को प्रोत्साहित करने के लिए सब्सिडी को सेक्टर से पूरी तरह से निकाले जाने के बजाय फिर से इस्तेमाल किये जाए.
किसानों को आश्वस्त करना जरूरी
जो भी नई कृषि पहल प्रकृति के संरक्षण के लिए लाये गए उन्हें लेकर विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे बदलाव रातों-रात नहीं होते और कृषि क्षेत्र के लोगों को समर्थन की जरूरत होगी ताकि वे इसे अपना सकें. डब्ल्यूआरआई में अर्थशास्त्री और सब्सिडी विशेषज्ञ हेलेन डिंग का कहना है कि "आपको मुकाबला करने वाली रणनीतियों की जरूरत है, यह चांदी की गोलियों की तरह नहीं है कि सभी समस्याओं का समाधान कर दें. किसानों को आश्वस्त करने की जरूरत है कि प्रकृति की रक्षा करने वाले उपायों को लागू करके भी वे अपनी खेती और परिवारों का समर्थन करना जारी रख सकते हैं.''
उदाहरण के लिए, कोस्टा रिका में, उन्होंने किसानों से बात की थी जो पारंपरिक उत्पादन के साथ में अपनी जमीन के एक हिस्से पर ऑर्गेनिक कॉफी उगा रहे थे ताकि पैदावार में उतार-चढ़ाव होने पर और अंतरराष्ट्रीय कॉफी व्यापार करने की सुरक्षा मिल सके.
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रोलस्टोन बताते हैं कि न्यूजीलैंड में 1980 के दशक में किसान सब्सिडी सुधारों के पक्ष में थे, लेकिन उसे अपनाने और अभ्यास में लाने के लिए उचित समर्थन की जरूरत है, "किसानों के लिए, वह काफी कठिन समय था क्योंकि यह बहुत जल्दी हुआ."
उन्होंने कहा कि सरकार ने विशेष रूप से उन लोगों को सहयोग दिया जो व्यवसाय से बाहर हो गए - करीब 1% किसानों ने खेती छोड़ दी थी. उनका कहना है कि बैंक जैसे अन्य संस्थानों से भी सहयोग पर जोर देना जरूरी है.
फिलहाल, जैसा कि देश कॉप15 में गैरजरूरी सब्सिडी पर चर्चा करने के लिए तैयार हैं, रोलस्टोन का मानना है कि वैश्विक स्तर पर खाद्य पदार्थों की ऊंची कीमतें इसे आसान बना सकती हैं. वह कहते हैं, "इन सुधारों को कर दिए जाने का सबसे अच्छा समय है- बीता हुआ कल, और दूसरा सबसे अच्छा समय तब होता है जब कीमतें बदलाव को वहन करने में सक्षम हों.''
केके/एनआर (रॉयटर्स)